ना ना कहते कहते बहुत कुछ बोल गए सत्तन गुरु

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कीर्ति राणा

इंदौर। दीपक जोशी के आ जाने के बाद से बल्लियों उछल रहे कांग्रेस के नेताओं को एक तरह से सत्तन गुरु ने पटखनी ही दे दी है। शिवराज से मुलाकात के बाद उनका चेहरा कमल सा खिला हुआ है और फोटो सेशन में सीएम के साथ खड़े रहे पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता और पार्षद मनोज मिश्रा फूले नहीं समा रहे हैं।हकीकत खुद गुरु ने बताई है कि बंद कमरे में शिवराज के साथ हुई मुलाकात के वक्त ये सारे लोग बाहर ही थे। गुरु यह कहना भी नहीं भूले कि दिग्विजय सिंह उस्ताद तो है, लंबे समय बाद पट्ठे ने फोन पर मेरे हालचाल ऐसे समय पूछे कि राजनीति में तूफान पैदा कर दिया।

उनसे जब पूछा गुरुजी, भोपाल में शिवराज सिंह ने गरम तवे पर पानी के छींटें डाल दिए क्या?
-गुरु बोले देखो भई, छींटें नहीं उसे तो पूरा लोटा डालना पड़ेगा।

अंदर की बात बाद में इधर-उधर से धीरे धीरे बाहर आएगी या आप ही कुछ बताओगे?
-गुरु का कहना था मैं पार्टी की मयार्दा से बंधा हूं, बंद कमरे में शिवराज की और मेरी क्या चर्चा हुई मैं तो कभी नहीं कहूंगा। मैं अपने लिए तो कुछ मांगने गया नहीं था। मैं सौदेबाजी करने वालों में से नहीं हूं।

गुरु का कहना था कार्यकताओं के मान-सम्मान की लड़ाई लड़ रहा हूं। मेरा शिवराज से कोई विरोध नहीं है, जब मैं विधायक था तब वो विद्यार्थी परिषद अध्यक्ष था।मुझे जिंदाबाद-मुदार्बाद करने वाले उन कार्यकर्ता की चिंता है जिनकी बात सुनने का शिवराज सिंह के पास समय नहीं है। ठीक है कि एक मुख्यमंत्री की अपनी व्यस्तता रहती है लेकिन पार्टी को खड़ा करने, नेता को गढ़ने वाले तो कार्यकर्ता ही हैं ना, उनकी नहीं सुनेंगे, उनसे नहीं मिलेंगे। हर बार कुछ लोग ही घेरे रहेंगे तो नाराज कार्यकर्ता कहेगा कुछ नहीं लेकिन चुनाव के वक्त जब वो घर बैठ जाएगा तो क्या होगा?

ये सलाह देने के लिए आप को इतना लंबा इंतजार करने के साथ ऐसे तेवर दिखाने पड़े! शिव राज सिंह ने आप की सारी बातें मान ली, और क्या चर्चा हुई उनसे?
-देखो प्यारे तुम जो घूमा फिरा कर खबर निकालने की कोशिश कर रहे हो, तुम्हें खूब अच्छी तरह जानता हूं? बंद कमरे की चर्चा हुई है, मेरा मुंह खुलने वाला नहीं है।

तो आपने कार्यकर्ताओं की नाराजी की बात कही और उन्हें समझ आ गई?
-मैं उनसे कहने नहीं गया, मैंने तो यहीं तुम सब लोगों से कहा था। शिवराज सिंह ने मिलने को बुला लिया तो दूसरे दिन चले गया। जो यहां बोला था, उनसे भी वही बोला। उन्होंने माना भी गुरुजी आप सही कह रहे हो।मैं आऊंगा कार्यकर्ताओं के बीच, उनसे सीधे मिलूंगा।

तो कब आ रहे हैं शिवराज सिंह? वो आएंगे तो हर बार घेरने वाले चेहरे उन्हें फिर घेर लेंगे?
-गुरु का कहना था जब हम बुलाएंगे, तब आएंगे शिवराज।वो आएंगे तो उन्हें सोचना है क्यों आ रहे हैं, किनसे मिलना है।कार्यकर्ता को सम्मान चाहिए। मैंने कोरोना में काम करने वाले उन डॉक्टरों की परेशानी भी बताई जिन्हें अब घर बैठा दिया है।मेरी इस बात से भी वो सहमत हैं।

आप के नाराजी वाले बयान के और शिवराज सिंह के मुलाकात के अनुरोध को एक दिन टालने से यह क्यों माना जा रहा था कि आप और भंवर सिंह शेखावत कांग्रेस ज्वाइन करने के मूड में हो?
-देख प्यारे, मेरे मूड का तो मुझे पता है, भंवर सिंह उसकी जाने। मैंने तो उससे भी कहा तुझे अपने लिए टिकट मांगना है तो सीधे जा कर मांग, ये फोकट की बयानबाजी कर के माहौल बनाने का क्या मतलब है। सब जानते हैं तेरा ये विरोध अपने टिकट के लिए है।

रही बात मेरी तो मैं आज जाऊं ना कल जाऊं कांग्रेस में।भोपाल में भी तुम्हारे लोग पूछ रहे थे दिग्विजय सिंह का फोन क्यों आया, क्या बात हुई? यार, दिग्विजय सिंह है तो उस्ताद। उसने मेरा बयान, माहौल देखा तो फोन पर बात कर ली। मुझे तो केके मिश्रा ने फोन किया और कहा कि ये दिग्विजय सिंह जी बात करेंगे। मेरा उससे कोई अभी का तो परिचय है नहीं क्रिश्चियन कॉलेज के वक्त से महेश जोशी, दिग्विजय सिंह से परिचय है।फोन कर लिया तो तूफान क्यों आना चाहिए?

गुरु जी कैलाश जोशी परिवार से तो आप के घनिष्ठ संबंध रहे हैं, दीपक जोशी ने कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले आप से चर्चा नहीं की?
-तुम बताओ, कैलाश जी के बिना दीपक जोशी का अस्तित्व क्या है? तुझे जहां जाना है, जा। साथ में उनका फोटू ले गया? क्या इस दिन के लिए उन्होंने भाजपा खड़ी की थी? उसका यह कदम गलत है।

मेरे चुनाव का किस्सा सुनाऊ? कृपा पंडित के सामने मैं चुनाव लड़ रहा था, कैलाश जी भी आए हुए थे। किसी कार्यकर्ता ने उसी वक्त आकर कहा कुछ लोग पार्टी का झंडा लगाने से रोक रहे हैं। कहां तो कैलाश जी मुझ से बात कर रहे थे, उन्होंने कार्यकर्ता से कहा चलो बताओ, कहां, कौन रोक रहा है? उसके साथ तो गए ही, खंबे पर चढ़ गए और झंडा बांध कर ही नीचे उतरे।पार्टी के लिए ऐसे समर्पित और संत पुरुष की फोटो लेकर दीपक का जाना बचकाना कदम है।

खाने से ज्यादा खिलाने की शौकीन
पश्चिम क्षेत्र के ठियों की मंडली

पश्चिम क्षेत्र के मशहूर ठिये में से एक मालगंज में आदरणीय पान वाले अशोक राठौर के यहां लगभग हर शाम राजनीति, मीडिया, साहित्य, व्यापारिक जगत के जाने-पहचाने चेहरों का उठना-बैठना, चाय-नाश्ते का दौर चलता रहता है। राजबाड़ा पर अन्ना भैया की दुकान पर पटिये वाली बैठक तो दशकों पहले व्यावसायिकता की भेंट चढ़ गई लेकिन मालगंज, टोरी कार्नर आदि ठिये आज भी जिंदा हैं। शहर से लेकर देश तक के ज्वलंत मुद्दे यहां बहस-चर्चा में रहते हैं। खाने-खिलाने में इन ठियों की मंडली का जवाब नहीं। रविवार को गुमाश्ता भवन में मालगंज के ठिये ने मित्रों का भोज आयोजित किया था।

एक सप्ताह में यह दूसरा आयोजन था। इससे पहले प्रेम स्वरूप खंडेलवाल (उस्ताद) की स्मृति में उनके चहेतों ने मालगंज धर्मशाला में उस्ताद को याद किया था। इस बार के भोज में हॉट टॉपिक सत्तन-शिव की मुलाकात थी ही, मित्रों में चल रही चर्चा के दौरान ही पत्रकार-मित्र तपेंद्र सुगंधी ने बताया कि फोन पर गुरु से ही चर्चा चल रही थी, पांच मिनट में आ रहे हैं। कुछ पल बाद ही शेखर गिरि और टोरी कार्नर के अन्य साथियों के साथ सत्तन जी आ ही गए।ये सारी चर्चा उनसे उसी दौरान हुई।