भारतीय शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित सार्थक एडुविज़न एडुकेशनल एक्ज़ीबिशन में सम्मलित सभी विद्वान मित्र, श्रद्धेय शिक्षाविद एवं राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्रों में अग्रणी उपस्थित विशिष्ट एवं गरिमामय प्रतिभागी, मुख्यमंत्री महोदय शिवराज सिंह चौहान , केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी , एवं सभी मंत्रिगणों की गरिमामयी उपस्थति एवं यहां असंख्य तारे नहीं असंख्य सूरज उपस्थित हुए हैं जिनमें से प्रत्येक का अपना आभामंडल है।
सार्थक एडुविज़न एडुकेशनल एक्ज़ीबिशन में शामिल होना मेरे लिए गौरव का विषय है –
यह बहुत ही शुभ संकेत है कि भारत और मध्यप्रदेश की कई अग्रणी शैक्षणिक संस्थाएं इस “एक्सपो” को साकार रूप देने में अपना योगदान दे रही हैं – जैसे: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE), राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन, एम.एम. ऐक्टिव साइ-टेक कम्युनिकेशन।
एक तरह से यह एक “तीन-दिवसीय शिक्षा मेला” है लेकिन इसका असर किसी भी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मेले से कहीं ज्यादा दूरगामी होगा क्योंकि इस आयोजन में “कॉन्फ्रेंस” और “एक्ज़ीबिशन” दोनों का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया जा रहा है। कॉन्फ्रेंस हमें विचारों के आदान-प्रदान का अवसर देता है और एक्ज़ीबिशन के माध्यम से हम यह जानते हैं कि विचारों ने किस तरह रूप धारण कर लिए हैं।
हर परिवर्तन की शुरुआत विचार से होती है। जब भारत में लॉर्ड मैकॉले की शिक्षा-नीति अपनी जड़ें जमा रही थी तो गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने “शांति निकेतन” के माध्यम से एक अद्भुत एवं शुद्ध रूप से भारतीय शिक्षा-पद्धति की स्थापना का विचार किया था। आज “विश्व भारती विश्वविद्यालय” के रूप में वह विचार दुनिया के सामने अपना रूप ग्रहण कर चुका है।
टैगोर और पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे आधुनिक विचारक भारत की अपनी खास जरूरतों के अनुरूप एक क्रांतिकारी शिक्षा मिशन को आगे बढ़ाना चाहते थे और इसमें वे काफी सफल भी रहे। लेकिन ऐसे इक्के-दुक्के प्रयास हमारे इस विशाल देश की शिक्षा की तस्वीर बदलने के लिए नाकाफी थे।
भारत का मतलब है वह देश जहां 8400 से भी ज्यादा विश्वविद्यालय हैं और इस तरह वह अमेरिका से भी आगे है। भारत का मतलब है वह देश जहां का इंदिरा गांधी नेशनल ओपन युनिवर्सिटी (IGNOU) दुनिया का सबसे बड़ा शैक्षणिक संस्थान है जो 40 लाख से भी ज्यादा छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का संचालन करता है। अनुमान लगाया गया है कि बहुत ही जल्द भारत दुनिया का सबसे बड़ा उच्चतर शिक्षा का केन्द्र बनकर उभरेगा।
एक ओर ये सच्चाइयां और ये संभावनाएं हैं तो दूसरी ओर हमें यह भी टटोलने की जरूरत है कि क्या हम लोग इतनी बड़ी जनसंख्या को, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जाने वाले करोड़ों छात्रों को वैसी गुणात्मक शिक्षा देने को तत्पर हैं कि जब दुनिया के टॉप 5 विश्वविद्यालयों का नाम आए तो उसमें भारत भी शामिल हो?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे दूरदर्शी नेता समय से आगे सोचते हैं और उनकी इसी सोच का परिणाम है भारत की नई शिक्षा नीति (2020)।
नई शिक्षा नीति “भारतीय ज्ञान का जयघोष” है। यह हमारी प्राचीन गुरुकुल प्रणाली को अत्याधुनिक ’टेक्नोलॉजिकल एरा’ से जोड़ने वाला सेतु है।
नई शिक्षा नीति का जोर इस बात पर है कि स्कूलों से ड्रॉप-आउट हो जाने वाले बच्चों की संख्या में कमी हो और यह वही प्रयास है जिसके लिए माननीय शिवराज सिंह चौहान जी के नेतृत्व में मध्यप्रदेश की सरकार पिछले 15 सालों से भी ज्यादा समय से संकल्पित है। नई शिक्षा नीति कहती है कि बच्चों पर ज्ञान थोपो नहीं। उन्हें जिस आकाश में उड़ान भरना है, वह आकाश उन्हें खुद तलाशने दो। जरूरी नहीं कि हर कोई डॉक्टर, इंजीनियर या आई.ए.एस. ऑफिसर ही बने।
कोई सचिन तेंदुलकर या लता मंगेशकर बनना चाहे तो उसकी प्रतिभा को उसी दिशा में विकसित होने में सहायता दो। और मुझे गर्व है कि मध्यप्रदेश की युवा कल्याण, खेल, तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय में अपनी विनम्र सेवा प्रदान करते हुए मैंने नई शिक्षा नीति की इस चेतना को जिया है, प्रधानमंत्री श्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज जी के इस शिक्षा-दर्शन को साकार करने का पूरा प्रयास किया है।
नई शिक्षा नीति में कई अनूठी बातें हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है “भारतीयता का समावेश”। विश्वगुरु बनने का कोई शॉर्ट-कट रास्ता नहीं है। वह रास्ता शिक्षा से होकर गुजरता है। हमें भारत के उस अपार ज्ञान, उस गहन कला, वैज्ञानिक सोच की उस पराकाष्ठा, भाषाओं की उस समृद्धि, धर्म और दर्शन की उस विविधता को शिक्षा में सन्निनिहित करना होगा जिसके बारे में जर्मनी के विद्वान मैक्समूलर ने कहा था:
“यदि कोई मुझसे पूछे कि इस आसमान के नीचे वह कौन-सी जगह है जहां मनुष्य के मस्तिष्क ने अपने श्रेष्ठतम उपहारों का सृजन किया है और जीवन की गंभीरतम समस्याओं का समाधान खोजा है तो मेरा उत्तर होगा – भारत।“
मध्यप्रदेश युवा प्रतिभाओं की धरती है। मुझे पूरा विश्वास है इसमे सम्मलित सभी विद्वान, शिक्षाविद, राजनेता, समाजसेवी एवं भारत से प्रेम करने वाले लोग नई शिक्षा नीति के आलोक में ऐसे महत्वपूर्ण विचारों, सुझावों और क्रियाओं को जन्म देंगे जिससे भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर होगा। “सार्थक” ने सचमुच बहुत जो सार्थक पहल की है। उसके लिए हार्दिक शुभकामनाएं हैं। कार्यक्रम के सहयोगी विभाग राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग था।
यशोधराराजे सिंधिया