चंदशेखर शर्मा
महापौर ठीक है, लेकिन फर्ज कीजिए आज यदि लोकसभा का चुनाव हो और संजय शुक्ला कांग्रेस के उम्मीदवार हों तो ? चुनाव का क्या नतीजा हो ?
अव्वल तो निजी रूप से मुझे लगता है कि महापौर के आगामी चुनाव में ही भाजपा को पसीने आ जाएंगे। वो चाहे अब कभी भी हो। एक समय जीतू पटवारी कांग्रेस की स्थानीय राजनीति में स्वर्ण मृग समान चौकड़ी भर रहे थे। अलबत्ता कोरोना महामारी के दौरान उनकी चुप्पी और ओझलता ने जैसे उन्हें राजनीति के परिदृश्य से ही खदेड़ दिया। फिर उनके पार्टी को लेकर और अन्य बयानों ने तो ये अंदेशा ही खड़ा किया है कि ये स्वर्ण मृग छलावा भी हो सकता है। पता चला है कि अभी वो दमोह में एड़ियां घिस रहे हैं। बेशक संजू भाई उनसे बहुत आगे निकल गए हैं।
दरअसल विधायक का टिकट लाने और चुनाव जीतने के बाद से अब तक संजू भाई की राजनीति में एक नया रवैया सामने आया है। वो है लोगों की बेहतरी के लिए अपना खजाना लुटाना ! इंदौर की राजनीति में ऐसा पहले कभी न देखा गया था। तब भी, जब एक से बढ़कर एक धन्ना सेठों ने राजनीति में हाथ आजमाए। हालांकि ये सिर्फ अनुमान है कि धन संपदा के मामले में अभी इंदौर का कोई भी जनप्रतिनिधि संजू भाई के सामने शायद ही ठहरे। फिर उस धन संपदा को लोगों की बेहतरी के लिए लुटाने या खर्च करने की बात तो और दूर की है।
कुछ माह पहले एक निजी कार्यक्रम में संजू भाई अपने किए कामों को गिना रहे थे। इस दौरान उनको वो काल याद आया जब वो पार्षद होते थे और तब के किए काम भी उनको अब तक याद। वो गिनाए उन्होंने। फिर विधायक होने के बाद वाले काम भी उन्होंने गिनाए। गौरतलब ये कि उनमें से कई घर फूंक तमाशा देख वाले हैं। हालांकि सुविधा के चलते किसी को इसमें राजनीति का तमाशा नुमायां हो, लेकिन उसमें अपने इलाके के लोगों की समस्याओं को हल करने की सरहानीय और अनुकरणीय उदारता असल बात है।
कोरोना महामारी के इस दौर को देखिए कि जब हर तरफ कोहराम है, उन्होंने कोरा (ब्लेंक) चेक व्यवस्था के मुंह पर दे मारा कि ये लीजिये और जो चाहे रकम उसमें भर लीजिए, लेकिन मुझे 5000 रेमडेसिविर इंजेक्शन दे दीजिए। किसलिए ? इसलिए ताकि कोरोना से दम तोड़ते लोगों को वो इंजेक्शन वो मुफ्त उपलब्ध करा सकें। यहीं नहीं, बाद में उन्होंने अपना दो सौ कमरों वाला विशाल होस्टल भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए देने की पेशकश की। ये भी एक मिसाल है कि इंदौर में बेशुमार होस्टल्स हैं, लेकिन दूसरी ऐसी मिसाल नहीं मिलती। पता नहीं जिम्मेदारों ने संजू भाई की इन उदारताओं को कैसे लिया। यदि उन्होंने व्यवस्थागत या व्यवहारिक दिक्कतों से उन पर अमल न किया तो बात अलहदा है, लेकिन किसी राजनीतिक कपट से उनको ठुकराया है तो एक बड़ा पाप और किया है।
हालांकि उससे संजू भाई की राजनीति और कद का कुछ भी न बिगड़ना है। शहर के विकट हालात में ऐसी पेशकशों और सक्रियता से उनका कद खुद एक नये मकाम पर जा पहुंचा है। उस मकाम पर, जहां से लोगों को शहर के तमाम दूसरे विधायक और जनप्रतिनिधि बौने नजर आ रहे हैं। यों भाजपा में दो नम्बरी विधायक को लोग बड़ी ठसक और ठसके से दादा दयालु बुलाते हैं और उन्हें बहुत रिसोर्सफुल माना जाता है, लेकिन शहर को जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है तब उधर से भी बहुत खटकने वाली चुप्पी है। जो हो, संजू भाई में बहुत लोगों को एकाएक कांग्रेस का बड़ा और सामर्थ्यवान नेता दिखने लगा है। ये शहर के लिए बहुत अच्छी बात तो है ही, कांग्रेस के लिए भी बहुत गुण करने वाली है। हां, कांग्रेस और उसके नेता माने तो।