संजीव ! तुम इस तरह नहीं जा सकते

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राजेश बादल

कभी तड़के चार बजे मैं फ़ोन नहीं देखता। आज नींद टूट गई। बहुत कोशिश की। फिर नहीं आई। हारकर फ़ोन उठा ही लिया। देखा तो शशि केसवानी का सन्देश। बड़ा झटका। संजीव सिंह नहीं रहे। मेदांता में डेंगू के उपचार के दरम्यान ब्रेन हेमरेज हुआ और यह जांबाज़ अफ़सर महाकाल का भक्त महाकाल से हार गया। भारतीय पुलिस सेवा ने ही नहीं ,देश ने एक शानदार और बेजोड़ अधिकारी खो दिया है ।उफ़ ! मुझे तो अभी भी यक़ीन नहीं आ रहा।

एक के बाद एक यादों की फ़िल्म चल रही है। शायद छब्बीस या सत्ताईस बरस पहले हम मिले थे। इंदौर के डेली कॉलेज में।स्पिक मैके का कार्यक्रम था। मैं टीवी यूनिट लेकर कवरेज के लिए गया था। गेट पर ही एक नौजवान बुलेट मोटर साइकल से आ रहा था। मैंने उसे रोककर कार्यक्रम स्थल के बारे में पूछा। उसने कहा ,चलिए मैं आपको ले चलता हूँ और मैं उसके पीछे बैठ गया। हमारी कार पीछे पीछे।वह संजीव सिंह था। उसने बताया कि वह राजगढ़ में एडीशनल एस पी है और सांस्कृतिक दिलचस्पी के कारण स्पिक मैके से जुड़ा है।

उसके सगे भाई राजीव सिंह भी वहाँ थे।समान दिलचस्पी होने की वजह से जल्द ही हमारी दोस्ती हो गई। वह जहाँ भी रहा ,हमारा संपर्क बना रहा। रायसेन ,भोपाल ,दिल्ली और एन आई ए के देशव्यापी गोपनीय मिशनों के दौरान भी हमारी नियमित मुलाक़ातें होती रहीं। दिल्ली में उसके बहाने भाई राजीव सिंह से भी गाढी मित्रता हो गई। राजीव ओएनजीसी में शिखर पद पर थे।राजीव जब सेवानिवृत हुए ,तो उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रात्रिभोज रखा। उसमें उनके माता जी पिताजी भी शामिल हुए। भोज में दोनों भाइयों का प्यार और माता पिता के लिए सम्मान ने मुझे भावविह्वल कर दिया था। दिल्ली में जब भी कभी मैं अकेला होता या संजीव ख़ाली होते तो हम घंटों साथ रहते। कभी कभी राजीव भी साथ होते।

हम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अड्डा जमाते। कभी कभी मैं किसी अन्य मित्र के साथ वहाँ जाता तो पाता कि दोनों भाई बार में डटे हुए हैं। दोनों को किसी तीसरे की दरकार ही नहीं थी। इस जुगल जोड़ी को देखकर कोई भी ईर्ष्या कर सकता था। दोनों घंटों बतियाते थे। मेरा कोई सगा भाई नहीं है। मैं सोचता – काश मेरा भी ऐसा ही कोई भाई होता। राजीव की क्या हालत होगी ,मैं अनुमान लगा सकता हूँ। हमने पिछली बार बात की थी ,तो संजीव कोलकाता में थे। हम कुछ दिन बांग्लादेश सीमा पर उसके पास जाना चाहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

हमारी उमर में अधिक अंतर नहीं था। मुझसे दो तीन बरस छोटे थे।अभी सेवानिवृत होने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के एक गोपनीय मिशन में थे। जब एनआईए में थे और मैं राज्य सभा टीवी का एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर था तो कई बार कश्मीर के ख़ुफ़िया मिशनों के लिए उसे भरोसे के कैमरामैन की ज़रुरत होती थी ,तो वह मेरे पास आता। किसी को कानों कान ख़बर नहीं होती और वह मिशन पूरा हो जाता। हमारी दोस्ती में पत्रकारिता कभी आड़े नहीं आई। वह बेझिझक मुझसे संवेदनशील सूचनाएँ शेयर करता था और कभी कभी परामर्श भी लेता था।

मैंने कभी उन जानकारियों का पेशेवर इस्तेमाल नहीं किया।बीच में अपने बेटे के भविष्य के लिए चिंतित था। मेरे पास उसे अक्सर भेजता था और उसके करियर के बारे में लगातार बात होती थी।फिर चार साल पहले मेरी बेटी के ब्याह के रिसेप्शन में उसने कहा था, राजेश जी ! आप कोई भी मदद हो ,बेहिचक कहिए .आप मित्रों से सहायता लेने में संकोच करते हैं ? उसका विश्वास अगाध था। एक अक्टूबर को ही हमने बात की थी। नहीं लगा था कि उसने इतनी जल्दी हमसे दूर जाने की गुप्त योजना बना ली है।


कभी कभी लगता है कि नियति ऐसा क्यों करती है ? कुछ बरस पहले उसकी प्यारी बेटी चली गई। फिर बीते दिनों माँ ने भी इस लोक से विदाई ले ली। अभी पिता भी राजीव के पास देहरादून में लंबी बीमारी से लड़ रहे हैं। उनका डायलिसिस चल रहा है। ऐसे में संजीव का अचानक जाना भारी सदमें से कम नहीं है।कुछ समय पहले कोरोना संक्रमण का शिकार हुए थे और सफलता पूर्वक उसे परास्त किया था। हम सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा जांबाज़ योद्धा इस तरह ख़ामोशी से अलविदा कह देगा।यह देश उसकी सेवाओं को कैसे भूल सकेगा ? आतंकवादी अभियानों में ,नक्सल विरोधी मुहीम में और अपराध नियंत्रित करने में उसकी प्रतिभा के सभी क़ायल थे। उसे कभी भी अपनी सेवा के लिए पदम सम्मान नहीं मिला लेकिन वह परदे के पीछे का महानायक था।

संजीव ! जाते तो सभी हैं।हम सभी कतार में हैं। लेकिन इस तरह तुम्हारा जाना अखर गया। हमने तो अभी साथ मिलकर बिहार में तुम्हारे गांव जाने का तय किया था ,जहां तुम्हारे घर के पीछे सट कर विशाल नदी बहती है ।नहीं ।अब मैं वहां नहीं जाऊंगा ।क्या करूंगा ।
जहाँ भी रहो ,मेरे दोस्त – खुशियाँ बाँटते रहो। मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।