राजस्थान की रेतीली आँधी, प्रजातंत्र का पराभव

Akanksha
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एन के त्रिपाठी

सदैव समस्याओं से घिरे इस देश के लिए राजस्थान का घटनाक्रम कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। यह राजनीतिक मूल्यों की गिरती हुई एक लंबी यात्रा का एक और पड़ाव है। राजस्थान में मुझे जो अवलोकित हो रहा है उसे मैं सीधे और स्पष्ट शब्दों में बिन्दुवार प्रस्तुत कर रहा हूँ :-

यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। इस बीमारी से नियमित तरीक़े से समय समय पर इसका क्षरण हो रहा है। दुर्भाग्यवश इससे भारत की राजनीति एक ध्रुवीय होती जा रही है।

गांधी परिवार कांग्रेस का हाई कमान है। इतना अयोग्य और अक्षम कांग्रेस नेतृत्व इसके सवा सौ साल से अधिक के इतिहास में कभी नहीं रहा है।मध्य स्तर के कांग्रेसियों पर अब इस परिवार का कोई नियंत्रण नहीं बचा है। गांधी परिवार ने पार्टी में अनुशासन लागू करने का अधिकार इसलिए खो दिया है क्योंकि वह अपनी पार्टी के लिए वोट और उसके माध्यम से सत्ता सुनिश्चित करने में अब असमर्थ है।

परिवार के इर्द गिर्द दरबारियों की एक कोटरी पार्टी के सभी निर्णय ले रही है। अहमद पटेल के नेतृत्व में यह कोटरी गहलोत के पीछे इतनी ताक़त से लगी हुई है कि गेहलोत सचिन पायलट की प्रारंभ से ही उपेक्षा करने का साहस दिखा रहे थे।

सचिन पायलट को अपनी योग्यता पर दंभ हो सकता है परंतु उन्हेंने पार्टी को चुनौती देते समय राज्य और देश की गंभीर परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा। इस कोरोना संक्रमण काल में तथा चीन सीमा पर संघर्ष के समय राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्य में अस्थिरता उत्पन्न करना अनैतिक कार्य है। ग़लत समय पर उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया की तर्ज़ पर बीजेपी के भरोसे अपनी पार्टी को धोखा दिया है।

गहलोत ने अपनी पार्टी के हितों की अवहेलना करते हुए सचिन पायलट को इतना भला बुरा कहा है कि हाई कमान के न चाहते हुए भी सचिन पायलट के वापस लौटने के सभी रास्ते बंद हो गए हैं।

बीजेपी पूरे देश में इतनी हावी है कि उसे अब कोई और राजनैतिक प्रतिद्वंदी असहनीय है।राज्य सरकारों को गिराना अब उसकी महत्वाकांक्षा का एक खेल हो गया है।कांग्रेस ने अपनी सत्ता के लंबे इतिहास में अनेकों राज्य सरकारों को बिना किसी उत्तेजना या कारण के गिराया है। राजीव गांधी ने अपने पूर्वजों के कृत्यों की पुनरावृत्ति न होने देने के लिए दल बदल क़ानून में संवैधानिक परिवर्तन किए लेकिन फिर भी बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद उत्तर भारत की बीजेपी सरकारों को एक आदेश से बर्खास्त कर दिया गया था। देश को यह आशा थी कि अब देश के धीरे धीरे परिपक्व हो जाने के कारण राजनीतिक दल और विशेष रूप से बीजेपी इस खेल को बंद कर देंगी। अब तो बीजेपी को खून लग चुका है। अंतर केवल इतना आया है कि अब सरकार गिराने का रास्ता काफ़ी जटिल और दुरूह हो गया है।

राजनैतिक सत्ता द्वारा सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग को आज देश केवल अवाक हो कर खड़ा देखता रहता है। गहलोत द्वारा जो ऑडियो टेप प्रस्तुत किए गए हैं उससे स्पष्ट है कि राजस्थान की पुलिस और इंटेलिजेंस विभाग नियमों को ताक पर रखते हुए टैपिंग यंत्र को खिलौने की तरह खेल रहा था। किसी व्यक्ति के फ़ोन टैप करने के लिए पूरी एक प्रक्रिया है और वह केवल सुरक्षा कारणों से हैं।गहलोत ने अपने खुफिया तंत्र को भी अपने घरेलू सेवकों की तरह प्रयोग करते हुए टैपिंग को एक ऐसा माध्यम बना दिया है जिसका भविष्य में और भयंकर दुरुपयोग होना निश्चित है।

आडियो टेप यद्यपि पूरी तरह से ग़ैर क़ानूनी थे परन्तु फिर भी उसमें यह सामने आया है कि किस प्रकार बीजेपी विधायकों को ख़रीदने का धंधा कर रही थी।प्रथम दृष्ट्या बीजेपी के षड्यंत्र का भंडाफोड़ हो चुका है।लेकिन जनता को इस साक्ष्य के बिना भी स्थिति पहले से ही मालूम थी।

केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों का खुला तांडव करने में कोई कमी नहीं रखी है। कर्नाटक की तरह यहाँ भी तुरंत इनकम टैक्स और ED ने हाथ पैर फेंकने शुरू कर दिये। ये एजेंसियां लगता है कि केवल विशेष क्षणों की ही प्रतीक्षा करती हैं।कुल मिलाकर गेहलोत और केंद्र दोनों ने विधि सम्मत एजेंसियों का व्यक्तिगत लाभ के लिए खुला दुरुपयोग किया है।

कार्यपालिका और विधायिका के वे मुद्दे जिन्हें हल करने के प्रावधान बने हुए हैं उसके लिए बार बार न्यायालय के दरवाज़े खटखटाए जाते है। न्यायालय की स्थिति उन माँ बाप की तरह हो गई है जो अपने शैतान झगड़ने वाले बच्चों के मामले सुलझाते रहते हैं।

राजस्थान में जो भी हुआ है वह देश में अंतिम बार नहीं हो रहा है।चीन की तुलना में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े होने के बावजूद हम केवल इसी बात पर गर्व करते है कि भारत एक प्रजातंत्र है। हमारे राजनीतिक दल हमें हमारे प्रजातंत्र पर गर्व करने लायक भी नहीं रखेंगे।