रूपगर्विता

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तुम शताब्दी एक्सप्रैस
गर्व से भरी
सुख सुविधा संपन्न
नित्य गुजर जाती हो
मुझ पर से ।

मैं एक छोटा सा
गुमनाम सा
रेलवेस्टेशन
तनिक भी कभी
देखा नही तूने
मेरी और

मैं नित्य
तुझ रूपगर्विता को
निहारता हूँ
अनगिनत भावो के साथ
तुम मुझ में प्रतिदिन
लघु होने का भाव
तीव्रता से जगा जाती हो

आज कुछ आतताई यो ने
तेरे पथ पर अवरोध
उत्पन्न कर दिया है ,
तू खड़ी है मुझ पर
मजबूरी वश
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा
अपलक
तुझे निहार रहा हूँ
कभी तुझे तो कभी स्वयं
को देख रहा हूँ

आनंदविभोर हो
इस क्षण को
अक्षुण्य रखूंगा ह्रदय में
जीवन भर
मुझे पता है कुछ ही क्षणों में
तुम चली जाओगी
और नित्य गुजरोगी
मेरे ऊपर से मुझे देखे बगैर ।
तुम रूपगर्विता
दर्प से भरी
मैं अकिंचन
छोटा गुमनाम सा
रेलवेस्टेशन ।

धैर्यशील येवले इंदौर