नई दिल्ली: चीन लगातार अपने दुश्मन देशो को घेरने की कोशिश कर रहा है। टेक्नोलॉजी के जरिए चीन तमाम देशों पर नजर रखा है। इसी बीच चीन की एक खतरनाक चाल को लेकर अमेरिकी सरकार ने बड़ा खुलासा किया है। अमेरिका ने इस बाबत 200 पेज की एक रिपोर्ट US कांग्रेस में जमा की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अब दुनिया में मौजूद अपने दुश्मन देशों को ‘अंधा और बहरा’ करना चाहता है. इसके लिए वह अंतरिक्ष से हमला करेगा।
इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऐसी तकनीक विकसित करने में लगी है, जिससे दुश्मन देश किसी भी तरह का हमला या संचार न कर सके। चीन काइनेटिक किल मिसाइल, ग्राउंड बेस्ड लेजर और स्पेस रोबोट्स बना रहा है। इनकी वजह से वह अंतरिक्ष में दुश्मन के सैटेलाइट्स मार गिरा सकता है या फिर उनकी निगरानी कर सकता है।
साल 2018 के अंत तक चीन ने निगरानी और जासूसी के लिए 120 सैटेलाइट्स स्पेस में छोड़े, इनमें से आधे सेना के हैं। ये नागरिक, व्यावसायिक और रक्षा से संबंधित डेटा जुटाने में मदद करते हैं। साथ ही दुश्मनों की निगरानी करने में भी चीन सरकार की मदद करते हैं।
भारत की बात करें तो इन मामलों में भारत की तकनीक और सुविधाएं बेहद कम हैं। वह चीन से इस मामले में काफी ज्यादा पीछे चल रहा है। इसरो और डीआरडीओ दोनों ही इन मामलों में अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं। भारत के पास चीन की तुलना में सिर्फ 10 फीसदी जासूसी और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स हैं।
फिलहाल, भारत के पास कार्टोसैट-3 के अलावा 19 ऐसे सैटेलाइट्स हैं जो जासूसी और रिमोट सेंसिंग में काम आते हैं। ये सैटेलाइट्स धरती के ऊपर अपना काम कर रहे हैं। पिछले साल भारत ने अपनी एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. जबकि, चीन यह परीक्षण साल 2007 में ही कर चुका है।
चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर भारत से सात गुना ज्यादा पैसा खर्च करता है। चीन ने साल 2019-20 का अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट कुल मिलाकर 80,633 करोड़ रुपये रखा है, जबकि भारत के स्पेस प्रोग्राम्स का कुल बजट 10,995 करोड़ रुपये है। इस राशि और निवेश से ही स्पेस प्रोग्राम्स के भविष्य का पता चल जाता है।
चीन की PLA जिसके हाथ में ही उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम है। वह उसे लगातार अत्याधुनिक कर रही है। वह जासूसी, निगरानी, नेविगेशन और संचार को तेजी से मजबूत कर रही है। पीएलए की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स लगातार साइबर, स्पेस और साइकोलॉजिकल युद्ध की क्षमताओं को विकसित करने में लगी है। इसके लिए ये कई बार अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन भी कर देते हैं।