ऑटोइम्यून बीमारी है रूमेटाइड अर्थराइटिस जागरूकता से स्थिति हो सकती है बेहतर

Deepak Meena
Published on:

इंदौर : आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में कई तरह की बीमारियाँ घर कर रही है। ऐसे कई रोग है जिनसे पीड़ित होने के बाद भी लोगों को जानकारी नहीं है। इन रोगों के अधिक लोगों में पाए जाने के अलावा एक चिंता का विषय यह भी है कि लोगों को इसकी जानकारी न के बराबर है उदहारण के लिए रूमेटोलॉजिकल रोग जिन्हें आम भाषा में संधिवात या गठिया रोग कहा जाता है। इन रोगों को लेकर जागरूकता बढाने और लोगों के मन में बैठे गलत अवधारणा को दूर करने के लिए भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन ने अप्रैल को जागरूकता माह के रूप में घोषित किया है।

इंदौर के मेदांता सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के कंसल्टेंट रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. गौतम राज पंजाबी के अनुसार, ” रूमेटाइड अर्थराइटिस/गठिया एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इसमें शरीर की इम्यूनिटी गलती से अपनी ही कोशिकाओं और अंगों पर हमला कर देती है। इस रोग के लक्षण दिखने से कई साल पहले ही रक्त में एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाते हैं। रूमेटाइड अर्थराइटिस का असल कारण अभी पता नहीं है, लेकिन इसके कई कारण माने जाते हैं जिनमें आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक, जैसे धूम्रपान और संक्रमण(वायरल एवं बैक्टेरियल) शामिल हैं। ये कारक एंटीबॉडी (उदाहरण के लिए रूमेटाइड फैक्टर) को बनाते हैं और कई तरीकों से ऑटोइम्यून प्रोसेस से ही जोड़ों और अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।

रूमेटाइड अर्थराइटिस एक आमतौर पर लंबे समय तक चलने वाला, सिस्टेमिक और इंफ्लेमेटरी रोग है जिसमें रोगियों को सामान्यतः पर कई जोड़ों में दर्द और सूजन होती है, साथ ही जकड़न और प्रभावित जोड़ों में गर्माहट महसूस होती है। रूमेटाइड अर्थराइटिस कुल आबादी के लगभग 1-1.5% हिस्से को प्रभावित करता है और यह आम तौर पर क्रोनिक इंफ्लेमेटरी अर्थराइटिस का एक मुख्य कारण है। यह महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 2-3 गुना अधिक प्रभावित करता है। ख़ासतौर पर यह समस्या 40-60 वर्ष के आयु वर्ग को ज्यादा प्रभावित करती है, लेकिन ये समस्या किसी भी उम्र में प्रभावित कर सकता है।“

रूमेटोलॉजिकल रोगों के लक्षण एवं उपचार के उपायों के बारे में डॉ. पंजाबी ने बताया, “मरीजों में आम तौर पर हाथ और पैरों के जोड़ों में दर्द, सूजन और जकड़न की शिकायत होती है, जिनका अगर सही समय पर इलाज न किया जाए तो इससे उँगलियों में टेड़ापन, जोड़ क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और दैनिक जीवन की गतिविधियों में बाधा आ सकती है। रूमेटाइड अर्थराइटिस सिर्फ जोड़ों के दर्द तक ही सीमित नहीं है। अगर समय पर इसका इलाज ना कराया जाए तो ये न केवल जोड़ों और हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि आंखों, त्वचा, फेफड़ों, दिल और नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है। अर्थराइटिस/गठिया का निदान आमतौर पर रक्त में एंटीबॉडी की जांच कर(रूमेटाइड फैक्टर, एंटी सीसीपी एंटीबॉडी ) के माध्यम से किया जाता है। रूमेटाइड अर्थराइटिस को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है।

लेकिन कुछ सावधानियां रखकर, और दवाओं के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि आप धूम्रपान करते हैं तो धूम्रपान बंद करें। डिसीज मोडिफाइंग एंटी-रूमेटिक ड्रग्स (डीएमएआरडी) लेते रहना चाहिए और नियमति रूप में लेते रहें। इसका उपचार दवाओं या इंजेक्शन के माध्यम से किया जा सकती है। दिन में दो बार सक्रिय फिजियोथेरेपी लें, जिसमें सभी जोड़ों को हिलाने डुलाने वाले व्यायाम शामिल हों। रूमेटोलॉजिकल डिसीज़ से जुड़ी अन्य बीमारियों या जटिलताओं उदहारण के ह्रदय रोग, हड्डियों का कमजोर होना, कैंसर, किडनी रोग की जांच एवं उपचार समय समय पर करवाते रहना जरुरी है। मेडिकल साइंस ने काफी तरक्की कर ली है आज की दुनिया में नई दवाएं उपलब्ध हैं जो गंभीर लक्षणों वाले या पारंपरिक डीएमएआरडी दवाओं का कोई असर न होने वाले रोगियों के लिए भी कारगर हो सकती हैं। यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें नजरअंदाज न करें और जल्द से जल्द रुमेटोलॉजिस्ट से सलाह लें।“