डॉ. वेदप्रताप वैदिक
किसी देश का कोई नागरिक अपना या अपने बच्चों का नाम क्या रखे, इस पर तरह-तरह की पाबंदियां कई देशों में हैं। सउदी अरब ने तो ऐसे 51 नामों की सूची जारी कर रखी है, जिन्हें उसका कोई नागरिक नहीं रख सकता। वह सुन्नी राष्ट्र है। इसीलिए कई शिया नामों पर वहां प्रतिबंध है। लातीनी अमेरिका के कुछ राष्ट्र ऐसे हैं, जिनमें आप अपनी बेटी का नाम मरियम (ईसा मसीह की मां) तो रख सकते हैं लेकिन बेटे का नाम जिसस (मसीह) नहीं रख सकते। तुर्की में कुर्द लोग बगावती माने जाते हैं।
उनके नाम के साथ आप आरमेनियाई प्रत्यय (इयान) आदि नहीं लगा सकते। इस्राइल में काफी समय तक यह परंपरा चलती रही कि रुस और पूर्वी यूरोप से आनेवाले यहूदियों के नाम हिब्रू भाषा में रखे जाते थे। तुर्की में भी राष्ट्रवाद ने इतना जोर मारा था कि अरबी, फारसी, फ्रांसीसी नामों की बजाय नागरिकों, मोहल्लों और बाजारों के नामों का तुर्कीकरण किया गया था। भारत के आजाद होने के बाद बहुत से शहरों, मोहल्लों, सड़कों, स्मारकों, बागों और भवनों के अंग्रेजी नामों को हटाकर भारतीय नामों को रखा गया है।
ईरान में जब से आयतुल्लाहों का राज हुआ है, ईरान के शाहों और बदशाहों के नामों को दरी के नीचे सरका दिया गया है। अल्जीरिया के मुस्लिम शासकों से लड़नेवाली यहूदी योद्धा बेरबरा रानी का वहां अब कोई नाम भी नहीं लेता। चीन के शिनच्यांग (सिंक्यांग) प्रांत में उइगर मुसलमान रहते हैं। उन्हें भी कई इस्लामी नाम नहीं रखने दिए जाते हैं। मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में इस्लामी या अरबी नामों पर प्रतिबंध है। जब तक वह सोवियत संघ का हिस्सा था, वहां के लोग अपने नाम रुसी शैली में रखते थे लेकिन ज्यों ही वह राष्ट्र स्वतंत्र हुआ, वहां इस्लाम धर्म और अरबी संस्कृति ने जबर्दस्त आकर्षण पैदा किया लेकिन अब ताजिक सरकार ने ऐसे नाम रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है और कहा कि आप ताजिक भाषा और संस्कृति के नाम क्यों नहीं रखते ? आप अरबों की नकल क्यों करते है ? वैसे इंडोनेशिया के मुसलमान अपने नाम प्रायः संस्कृत भाषा में रखते हैं और अपने साहित्य और कला-कर्म में भारतीय नायकों का गुणानुवाद करते हैं लेकिन वे पक्के मुसलमान हैं।
अब सवाल यही है कि हम भारतीयों के नाम कैसे रखे जाएं ? वैसे भारत में भी अश्लील नाम रखने पर रोक जरुर है लेकिन नागरिकों को पूरी छूट है। वे अपना और अपने बच्चों का जैसा चाहें, वैसा नाम रखें। इस प्रक्रिया में न मजहब, न जाति, न भाषा और न ही सामाजिक-आर्थिक हैसियत का कोई प्रतिबंध है लेकिन मेरा अपना विचार है कि अपने बच्चों के नाम ऐसे रखने चाहिए, जो सार्थक हों, प्रेरणादायक हों और लोकप्रिय हों। ऐसे नाम या उपनाम क्यों रखे जाएं, जिनसे आपका मजहब, आपकी जाति, आपकी नस्ल और आपकी हैसियत का विज्ञापन होने लगे ? आपका नाम, नाम है या विज्ञापन ? सामान्य नामों पर सरकारी प्रतिबंध उचित नहीं है लेकिन क्या हमारे नाम और उपनाम जाति-निरपेक्ष और मजहब निरपेक्ष नहीं हो सकते ? क्या वे स्वदेशी भाषाओं में नहीं रखे जा सकते ?