आदरणीय कमल दिक्षितजी, सवालों के चक्रव्यूह से मुक्ति दिलाने वाले पत्रकारिता के संत थे वे

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पत्रकारिता की संत परंपरा के ध्वजवाहक आदरणीय गुरुदेव कमल दिक्षितजी के चले जाने से कल से ही भीतर एक खालीपन सा हो गया है। अपने ही सवालों से जब भी घिरा उस चक्रव्यूह से उन्होंने बाहर निकाला, सही मार्गदर्शन दिया, कभी सकारात्मक पत्रकारिता के पथ से भागने नहीं दिया। कभी-कभी राष्ट्रवादी विचारधारा और प्रगतिशील विचारधारा के बीच की महीन लकीर को लेकर आपसी संवाद में प्यार भरी डांट पड ही जाती थी।

माणिकचंद वाजपेयी और कमल दिक्षित जैसे गुरुओं की सीख मुझे कभी इधर कभी उधर की विचार लहरों में से भी मार्ग दिखा ही देती थी, यह उनका ही प्रताप था। छात्र जीवन में अपनी खबरें, अपनी कविता, लेख लेकर नवभारत की चौखट तक ले जाती रही। वे गलतियाँ भी निकालते, सिखाते भी और ठीक कर छाप भी देते। वे स्वयं एक पत्रकारिता के विश्श्वविद्यालय थे।

संस्मरण, उद्धरण और अनुभव के सहारे हजारों पत्रकारों को योग्य बनाया। सबको उपकृत किया। उनके आशीर्वाद की पोटली मेरे जैसे कई साथियों के पास है। सीधे, सज्जन, सरल, मृदुभाषी और आध्यात्मिक शक्ति दूत की तरह रहे वे। पत्रकारिता की चादर कभी मैली नहीं होने दी। ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रति लगाव रहा। आज के दौर की पत्रकारिता से वे व्यथित थे पर निराश नहीं थे, कहते रहे इस दौर से भी पत्रकारिता बाहर आएगी और अपने अस्तित्व की रक्षा ही नहीं करेगी बल्कि वह समाज को सही मार्ग भी दिखाएगी। गुरुदेव आपके पावन चरणों में नमन, विनम्र पुष्पाजलि। – सतीश जोशी