नीलम तोलानी
कबीर ने नई नोंकरी शुरू करी थी स्कूल में ,कला संकाय में। अच्छा सिखा रहे थे बच्चों को..मित्रता हुई ,और घर आना जाना भी ।
कबीर का ‘आर्ट कलेक्शन’ भी देखा ।
सब कुछ सामान्य और अच्छा था, मम्मी ,पापा,सुशील बीवी ,छोटा खुशहाल परिवार।
पर कुछ था जो मुझे अटक रहा था, कबीर की पेंटिंग्स। सभी में एक चीज समान थी,किसी न किसी रूप में,सूर्य की तेज ज्वलंत किरणें आदमी के भीतर से निकलती हुई। दोस्ती अच्छी थी, पर नई ही थी ,पूछ नही पाई,पर बहुत ज्यादा दिन रुक भी नहीं पाई।
एक दिन उसके अच्छे मूड को देख कर पूछ ही लिया था मैंने.. जवाब मिला “यह पश्चाताप है ..और वह आदमी मैं हूँ, जलता हुआ..”
एक और पहेली! मेरी सवालिया नज़रों को देख कर पूछा..”कभी प्यार किया है आपने? और निभाया है? मैं जवाब देती उससे पहले ही उसने कहना शुरू किया,”बहुत प्यार किया था हम दोनों ने एक दूसरे को।”
पापा मम्मी पहले तो राजी न थे, पर जब राजी हुए, तो सगाई की तारीख निकाली गई.. फिर वह अचानक बीमार हो गई.. इंफेक्शन लीवर तक पहुँच चुका था। पता चला कि उसे भी उसकी अनुवांशिक बीमारी मधुमेह है ।
डॉक्टर ने कहा कि इंसुलिन के डोज देने होंगे रोज। फिर सब ठीक रहेगा। पर माँ पापा ने इंटरनेट पर पढ़ा और पता किया कि ऐसी बीमारी में बहुत दिक्कत है ,माँ भी नहीं बन सकती ,और लीवर भी अंततः खराब हो जाएगा।
मुझ पर दबाव बनाया गया ,और बस कुछ समय के लिए मैं व्यवहारिक हो गया,और इतने ही समय में उसने खुद को खत्म कर लिया । चिट्ठी छोड़ी..”जब तुम ही न निभा सके तो और कौन निभा सकेगा?” कबीर! भूल जाना मुझे।
तुम्हारा निर्णय सही है,कोई ग्लानि न रखना।
वो अब सुकून से हैं,और मैं जलता हूँ रोज!