राजेश ज्वेल
दुनिया भर में कोरोना मरीजों के लिए कोई मान्य मेडिसिन उपलब्ध नहीं है , एंटीबायोटिक, निमोनिया से लेकर लाइफ सेविंग ड्रग्स और अन्य उपलब्ध दवाइयों से ही मरीजों का उपचार किया जा रहा है और जान भी बच रही है ,यही कारण है कि औसत मृत्यु दर डेढ़-दो फीसदी ही रही है अभी जरूर बढ़ गई है , अगर रेमडेसीवीर इंजेक्शन की बात की जाए तो इससे अधिक संक्रमित कोरोना मरीजों को काफी फायदा हुआ है। देशभर में सारे डॉक्टर इन इंजेक्शनों का इस्तेमाल कर रहे हैं और इंदौर में भी गत वर्ष अरविंदो सहित अन्य हॉस्पिटल ने ही सबसे अधिक इन इंजेक्शनों का इस्तेमाल कर कई मरीजों की जान बचाई थी।
यह बात अलग है कि अभी कुछ डॉक्टरो को शासन के दबाव प्रभाव में इन इंजेक्शन को जरूरत के मुताबिक लगवाने की सलाह देना पड़ी , जबकि हकीकत यह है कि 25% या उससे अधिक संक्रमित मरीजों को अगर यह इंजेक्शन शुरुआत में ही लगा दिए जाते हैं तो उनका इंफेक्शन बढ़ना तो रुकता ही है वही 5 से 6 दिन में है वह ठीक होने भी लगते हैं और लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती होने या ऑक्सीजन की जरूरत भी नहीं पड़ती , अगर शासन अस्पतालों के साथ बाजार में भी इंजेक्शन की आपूर्ति करवा दे तो मरीजों की जान बचने के साथ-साथ अभी जो ऑक्सीजन सप्लाई की किल्लत हो रही है।
उसमें भी 40 से 50% तक की कमी आ जाएगी . इंजेक्शन मिलने में अगर आसानी हो जाती है तो जहां मरीजों का संक्रमण बढ़ने से रुकेगा वहीं उन्हें आईसीयू ,ऑक्सीजन बेड की जरूरत भी नहीं रहेगी , दरअसल मुख्यमंत्री को किसी ने कह दिया कि यह इंजेक्शन अधिक उपयोगी नहीं है ,जिसके चलते शासन इस पर अधिक गंभीर नहीं है ,जबकि मेरी उन डॉक्टरों से भी चर्चा हुई जो पिछले 1 साल से कोरोना मरीजों का ही इलाज कर रहे हैं , उनका स्पष्ट कहना है कि उन्होंने खुद सैकड़ों मरीजों की जान यह इंजेक्शन लगाकर बचाई है ,अभी शासन ने सरकारी अस्पतालों के लिए 25000 इंजेक्शन इंदौर के मेडिकल कॉलेज को भिजवाए थे जो प्रदेश भर में बांटे जा रहे हैं।
अभी भी मेडिकल कॉलेज के पास जो इंजेक्शन बचे है अगर वे अरविंदो , इंडेक्स या अन्य छोटे अस्पतालों को उपलब्ध करा दिए जाए तो अगले दो-तीन दिनों में ही काफी मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी और इससे जो सबसे बड़ा ऑक्सीजन का संकट है वह भी कम हो जाएगा , ये इंजेक्शन कोविड डे केयर सेंटरों में भी लग सकते है , उससे भी बहुत से मरीजो को भर्ती नही करना पड़ेगा ।