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क्यों है सावन में बेलपत्र भगवान शिव को चढ़ाना अनिवार्य?– जानें पूजा के विधि और लाभ

बेलपत्र

बेलपत्र

सावन का महीना हिन्दू कैलेंडर का सर्वाधिक पवित्र मास माना जाता है। इस दौरान शिवलिंग पर बेलपत्र (बिल्वपत्र) चढ़ाना अनिवार्य माना गया है। ये न केवल परंपरा बल्कि उसके पीछे भगवान शिव से जुड़ी गहरी मान्यताएं, वैज्ञानिक गुण और सतोगुण समेटे हैं।

आइए जानें क्यों हैं बेलपत्र भोलेनाथ को अतिप्रिय

समुद्र मंथन की घटना में निकले विष (कालकूट) को शांत करने के लिए देवताओं ने शिवलिंग पर शांतिदायक जल और बेलपत्र चढ़ाया। इससे शिवजी को राहत मिली, और तब से बेलपत्र उनकी पूजा का प्रधान अंश बन गया। दूसरी ओर एक अन्य कथा के अनुसार, माता पार्वती अपनी तपस्या के दौरान बेलपत्र चढ़ाकर भोलेनाथ को प्रसन्न करती रही थीं। इसी भक्ति के कारण उन्हें शिवजी का स्वरूप मिला, और आज भी बेलपत्र पूजन की परंपरा चले आ रही है

त्रिगुण-तीन देवताओं का प्रतीक और त्रिनेत्र की झलक

बेलपत्र का अत्यधिक महत्व इसकी त्रिदलीय संरचना में निहित है। जिसका प्रतीक त्रिनेत्र और त्रिशूल के तीन डंठल भी माना जाता है। प्रत्येक त्रिपल पेटल ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश (शिव) को दर्शाता है, और सत्त्व, रजस, तमस तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है।

वास्तुविज्ञान और लक्ष्मी का निवास

स्कंद पुराण की मान्यता के अनुसार, बेल वृक्ष माता पार्वती/लक्ष्मी के पसीने से उत्पन्न हुआ था। इसलिए इस वृक्ष में लक्ष्मी का वास माना जाता है। वास्तु-शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा में बेल का पेड़ लगाने से घर में धन-समृद्धि आती है, और श्री-शांति बनी रहती है। बेलपत्र में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, और एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं। यह पाचन, त्वचा रोग, श्वसन एवं मधुमेह में लाभकारी है। गर्मी और जलन कम करने के गुणों के कारण यह विष से तड़प रहे शिवलिंग को ठंडक प्रदान करता है और औषधीय दृष्टि से भी उपयोगी है।

सावन में बेलपत्र की विशेष महत्ता

सावन माह में बेलपत्र चढ़ाने से अक्षय पुण्य की मान्यता है। चांदनी रात में शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाया जाए तो समुद्र मंथन की स्मृति के साथ भक्त का मन-भाव आध्यात्मिक ऊर्जा से विभोर हो उठता है। सावन सोमवार को बेलपत्र अर्पित करने से स्वास्थ्य, सौभाग्य और मानसिक शांति मिलती है।

नियम विवरण

ताजा और साबुत पत्ते गड्ढा, कट या फटी हुई पत्तियां न लगाएं। समुचित-अभिनिषेध चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति आदि तिथियों में बेलपत्र काटना वर्जित माना जाता है। गणना–अजीब संख्या 3, 5, या 11 पत्तियां चढ़ाना शुभ माना जाता है। 4 पत्ते दुर्लभ लेकिन बेहद पुण्यदायी माना जाता है। शिवपुराण में लिखा है कि बेलपत्र के दर्शन, स्पर्श और समर्पण से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। बेलपत्र की पूजा से भक्त को त्रिगुण संतुलन मिलता है। वह सत्त्व, रजस और तमस में सामंजस्य स्थापित कर अध्यात्मिक जागृति की ओर अग्रसर होता है। बेलपत्र सिर्फ पूजा की एक वस्तु नहीं, बल्कि एक धर्म, विज्ञान, और आध्यात्मिक दर्शन का संगम है। यह भोलेनाथ को खुश कर दूर करता है पाप, विष के ताप को शांत करता है, और भक्त को समृद्धि, संतुलन व शांति प्रदान करता है।

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