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कौए की मनुहार का अवसर होता है पितृ पक्ष

Pitru paksh

निशिकांत मंडलोई

पक्षी जगत में संभवतः कौआ ही एक ऐसा पक्षी है जो अपने काले रंग, कर्कश आवाज और काइयाँपन के कारण मनुष्य द्वारा ऊपरी तौर पर तो पूरी तरह उपेक्षित है तथापि इसका संबंध मनुष्य जीवन में अत्यंत घनिष्ठ और निकट का है। कौए की ऐतिहासिकता तथा गुणावगुण को हम नकार नहीं सकते क्योंकि कौआ हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के संदर्भ में पूरी तरह से जुड़ा हुआ है ,, खासकर श्राद्ध पक्ष में ,, काक बलि,, में इसका सर्वाधिक महात्म्य है। इसके अलावा शकुन अपशकुन के क्षेत्र में भी कौए का बहुत महत्व होता है।

आओ,,, आओ,,, से होती है मनुहार

भारतीय साहित्य एवं संस्कृति में कौए का विशेष स्थान है। कौआ एक घरेलू और सामाजिक पक्षी है। काला, बदसूरत, कर्कश आवाज का, शैतान और चालाक पक्षी माने जाने के बावजूद कौए का अपना अनूठा महात्म्य है। अश्विन माह के प्रारंभिक दिनों में जब श्राद्ध पक्ष चलते हैं, हमे कौए की लाख मनुहार करनी पड़ती है तब वह आता है। कौए का संबंध भारतीय संस्कृति से अत्यंत निकट का है। पौराणिक ग्रंथों में कौए का गुणगान और महात्म्य मिलता है। भारत मे पितृ पक्ष और भाद्र के दिनों में कौए की पूछ परख होती है। इन दिनों उसे पकवान खिलाए जाते हैं और वह नहीं आता। कई बार तो घंटों ,,कांव कांव,,, आओ आओ,, करने के बाद ही वह दर्शन देता है। श्राद्ध पक्ष में हिन्दू परिवारों में जो पितरों के श्राद्ध किए जाते हैं उनमें पहला ग्रास(भोग) कौए को खिलाया जाता है। उसके बाद ही अन्य ब्राह्मण व घर के सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

यमराज का प्रिय पक्षी

ऋषि पंचमी पर भारतीय बहनें कौए को आदर पूर्वक पकवान खिलाकर अपनी साध पूरी करती हैं। ऋषिपंचमी की एक कथा के अनुसार एक बहन के भाई के कत्ल हुए शरीर के एक एक टुकड़े(अंगों) को कौवों ने एक स्थान पर एकत्रित कर पुनः जीवित करने में मदद की थी, इसीलिए आज भी बहनें उस खुशी में ऋषि पंचमी पर कौए को पूजती हैं। इसी कारण श्राद्ध पक्ष में भी कौए का महत्व बढ़ जाता है। कौए को यमराज का प्रिय पक्षी माना जाता है। कौआ प्रसन्न होगा तो यमराज भी प्रसन्न होंगे और काक बलि देने वालों के दिवंगत पूर्वजों की आत्माओं को कष्ट नहीं होने देंगे ऐसी मान्यता है। कौए की इसी महत्ता के कारण श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन से पूर्व ,, काक बलि,, अर्थात प्रथम ग्रास कौए को खिलाया जाता है।

और भी प्रसंग हैं मान्यताओं में

शगुन अपशगुन विचार करने वाले भी कौए का बड़ा महत्व मानते हैं। उनके अनुसार कौआ अगर दाई ओर से चक्कर काटे और अनवरत कांव कांव करते रहे तो शुभ माना जाता है। यदि वह किसी पेड़ की शाखा अथवा कुएं से सिर रगड़ता दिखे तो शीघ्र ही वहां मिलने की संभावना रहती है।

मंदिर के शिखर पर अथवा अनाज के ढेर पर बैठा कौआ भी शुभफलदायक होता है। कौआ आपकी छत या मुंडेर पर बैठ कर कांव कांव करता रहता है तो इसका अर्थ यह माना जाता है कि आपके यहाँ आपका कोई अतिथि या प्रिय आने वाला है। ऐसे कौए को गृहलक्ष्मयां चुरी या दूध चावल भी खिलाया करती हैं। महाकवि तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य रामचरित मानस में काक भुसुंडि रावण संवाद के माध्यम से इस जाति का एक उज्ज्वल पक्ष प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में काक भुसुण्डी ने अपना प्राणान्त कर लिया था लेकिन, वह बुराई के खिलाफ लड़ा , जिसकी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने भी बाद में हृदय से प्रशंसा की थी।

इसके अलावा भी श्रीराम की माता कौशल्या ने श्रीराम के वन से लौट आने के लिए काग उड़ाए और उसके मुंह में घी शकर डालने और चोंच को सोने से मँड़ने की अभिलाषा प्रकट की। प्राचीन ग्रंथों में ऐसे प्रसंग हैं जब विरहनियाँ अपने परदेशी प्रीतम के बुलावे के लिए कौए की मनुहारे करती पाई गई हैं।

32 पद्धत्तियों का वर्णन काक भाषाओं में

कौए की अपनी भाषा होती है। खग ही जाने खग की भाषा का विज्ञान के प्राचीन लेखकों ने काक भाषा की 32 पद्धत्तियों का वर्णन किया है। पश्चिम मान्यता के अनुसार एक कौए का दिखाई देना सामान्यतः अशुभ माना जाता है और यदि बहुत से कौए किसी व्यक्ति के चारों ओर फड़फड़ाने लगें तो उसका अंतकाल निकट जाना जाता है। कौए यदि सामूहिक रूप से किसी जंगल को छोड़ दें तो उसे सूखा या अन्य प्राकृतिक प्रकोप का आभाष माना जाता है। युद्ध के लिए जाते समय सैनिकों को सामने से कौए जस्ते दिखाई दें तो यह उनके युद्ध में हारने के संकेत होता है। इस प्रकार से कौए से जुड़ी और भी कई अवधारणाएं हैं जो शगुन अपशगुन के लिए प्रचलित हैं।

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