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Ekadashi 2023: इस दिन रखा जाएगा परमा एकादशी व्रत, धन प्राप्ति के लिए करें ये खास उपाय, हमेशा के लिए दूर हो जाएगी पैसों की कंगाली, भरे रहेंगे धन-धान्य के भंडार

Ekadashi 2023: इस दिन रखा जाएगा परमा एकादशी व्रत, धन प्राप्ति के लिए करें ये खास उपाय, हमेशा के लिए दूर हो जाएगी पैसों की कंगाली, भरे रहेंगे धन-धान्य के भंडार

Parma Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अभी मौजूदा समय में अधिक मास चल रहा है। दरअसल अभी भगवान विष्णु के 4 महीनों के शयन निद्रा का समय है। ऐसे में अधिकमास में आने वाली परमा एकादशी का काफी अधिक महत्व माना जाता है। हालांकि अधिक मास की दूसरी एकादशी अर्थात परमा एकादशी का उपवास 12 अगस्त 2023, शनिवार को रखा जाएगा। परमा एकादशी का उपवास पांच दिन तक करने का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह एकादशी दुर्लभ सिद्धियों की दाता है। इसलिए इसे परमा भी कहा जाता है। ऐसी हिंदू मान्यता है कि जो भी मनुष्य परमा एकादशी का उपवास रखता है, उसके समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष मिलता है।

परमा एकादशी का शुभ मुहूर्त

अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारम्भ 11 अगस्त, 2023 को सुबह 05 बजकर 06 मिनट पर होगा। एकादशी तिथि का व्रत 12 अगस्त 2023 सुबह 06 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगा। ऐसे में परमा एकादशी व्रत 12 अगस्त 2023, शनिवार के दिन को किया जाएगा। साथ ही इस व्रत के पारण का समय 13 अगस्त सुबह 05 बजकर 49 से 08 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।

परमा एकादशी का महत्व

वहीं पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब इस उपवास को कुबेर जी ने किया था तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें धनाध्यक्ष बना दिया था। इतना ही नहीं, इस व्रत को करने से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी। साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस उपवास के बीच पांच दिन तक सोना दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गौ दान अवश्य ही करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को माता लक्ष्मी का असीम आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसे धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती।

परमा एकादशी पर न करें ये काम

परमा एकादशी पूजा विधि

वहीं अधिकमास की दूसरी परमा एकादशी के दिन प्रातकाल जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का प्रण लें। इसके सबके पश्चात भगवान श्री हरि विष्णु का पंचोपचार विधि से पूजन कीर्तन करें। फिर निर्जला व्रत रखकर विष्णु पुराण का श्रवण या पठन करें। इस दिन रात में भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। इस दिन दान-दक्षिणा अवश्य करें। द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करने के बाद व्रत खोलें।

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