आसान थे इंदौर के राहत

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इंदौर: किस्सा तब का है जब मैं और शहर के जाने-माने पत्रकार हिदायतुल्लाह खान जश्न ए राहत का अरमान लिए डॉ राहत इंदौरी के घर पहुंचे हालांकि उनके बेटे सतलाज राहत से हमारी बात पहले ही हो गई थी और हिदायत भाई को राहत साहब काफी पसंद भी किया करते थे पहुंचते ही बात शुरू हुई और जब हमने जश्न ए राहत का खाका उनके सामने रखा तो उस अजीम शख्सियत की सादगी इस कदर मेरी आंखों के सामने आई कि देखकर हैरान रह गया वो जानते थे कि शहर के हजारों लोग इस जलसे को देखने के लिए टूट पड़ेंगे लाखों सोशल मीडिया पर देखेंगे और अरसे तक इसे याद रखा जाएगा लेकिन फिर भी उन्होंने ये कहकर पहला इंकार कर दिया कि मेरे इस्तकबाल में इसे करने की कोई जरूरत नहीं है एक बड़ा मुशायरा करते हैं

 

बताओ किसे बुलवाना है हालांकि पहले भी अदबी कुनबा के कई मुशायरों में राहत साहब अपनी फन कारी का नमूना पेश कर चुके थे इसलिए इस बार तो हम लोग कसम खाकर पहुंचे थे कि अब तो महफिल उनके नाम से ही सजेगी तब तक हिदायत भाई उनके लिए कलंदर नाम की गज़ब किताब भी लिख चुके थे उसका फीता भी कटना था और उसी का जश्न होना था जब उनकी एक न सुनी तो कहने लगे अच्छा बताओ किसे बुलाना है और फोन लगना शुरू हो गए एक-एक कर देश-विदेश के कई शायरों को महज 15 मिनट में मानो उन्होंने अपने घर की चार दीवारीओं में बुला लिया हो,इन बड़े बड़े शायरों की आवाज लाउडस्पीकर पर सुन के मैं फूला नहीं समा रहा था जिनको अब तक यूट्यूब और मोबाइल के वीडियो में देखा है उसे यू सुनना मेरे लिए मानो सपना पूरा होने जैसा था इसी तरह की सादगी के कई किस्से राहत साहब के मशहूर हैं हालांकि इंदौर वालों के लिए तो वो कभी भी मुश्किल नहीं रहे जब भी जिसे मिलना रहा आसानी से उनसे मिल लिया ना ही साथ में बॉडीगार्ड रखते थे और ना ही उनसे मिलने का कोई प्रोटोकॉल था ज्यादा पसंद करने वाले नए उम्र के युवा सतलज भाई से संपर्क कर लिया करते थे और उन्हें सीधे घर का टिकट मिल जाता था इस तरह के शानदार फनकार को खो देना सिर्फ मेरी या किसी एक का नुकसान नहीं बल्कि इस इंदौर ने आज अपना बेटा खोया दिया, इतना कह गए हैं इतना कर गए हैं और देश विदेशों में हमारे शहर का नाम इतना रोशन कर गए हैं कि सदियों तक उन्हें भूल पाना तो अब मुमकिन नहीं है
अभिषेक कानूनगो