India Cooperatives : भारत में बेरोजगारी एक लंबे समय से एक बड़ा मुद्दा रही है, और विपक्ष अक्सर इस पर सरकार से तीखे सवाल पूछता है। हालांकि, अब एक नई रिपोर्ट से यह संकेत मिलते हैं कि सहकारी क्षेत्र (Cooperative Sector) में अपार संभावनाएं हैं, जो आने वाले वर्षों में बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक हल करने में मदद कर सकती हैं। एक प्रमुख मैनेजमेंट कंसल्टेंसी कंपनी ‘प्राइमस पार्टनर्स’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सहकारी क्षेत्र वर्ष 2030 तक 5.5 करोड़ नौकरियां और 5.6 करोड़ स्वरोजगार (self-employment) के अवसर उत्पन्न कर सकता है। इस प्रकार, अगर सरकार इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करती है, तो यह बेरोजगारी से जुड़ी समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सहकारी क्षेत्र का वैश्विक महत्व
प्राइमस पार्टनर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सहकारी तंत्र का वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान में, भारत 30 लाख सहकारी समितियों में से लगभग 9 लाख समितियों का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैश्विक सहकारी क्षेत्र का 30% हिस्सा हैं। यह आंकड़ा भारत के सहकारी तंत्र की वैश्विक प्रभावशीलता को दर्शाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सहकारी क्षेत्र का योगदान आर्थिक वृद्धि, सामाजिक समानता और समावेशी विकास में महत्वपूर्ण होगा, जिससे यह क्षेत्र न केवल रोजगार के अवसर उत्पन्न करेगा, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाएगा।
सहकारी क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ता योगदान
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सहकारी क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान आने वाले समय में बढ़ने की संभावना है। 2030 तक यह योगदान 3% से बढ़कर 5% तक जा सकता है। यह सहकारी क्षेत्र की महत्वता और इसके विकास की संभावनाओं को रेखांकित करता है। इसके अलावा, रोजगार और स्वरोजगार के मोर्चे पर सहकारी क्षेत्र का योगदान 10% से भी ज्यादा हो सकता है। इस बढ़ते योगदान के कारण, भारत की 2030 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में सहकारी क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण रहेगा। रिपोर्ट में इसे भारतीय अर्थव्यवस्था का शक्तिशाली इंजन बताया गया है, जो प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा देगा।
सहकारी क्षेत्र में रोजगार की बढ़ती संख्या
प्राइमस पार्टनर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सहकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं। 2016-17 तक इस क्षेत्र का कुल रोजगार में योगदान 13.3% था, जो 2007-08 के मुकाबले 18.9% की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है। यह दिखाता है कि सहकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर तेज़ी से बढ़ रहे हैं और आने वाले वर्षों में इसमें और अधिक वृद्धि हो सकती है।
स्वरोजगार के अवसरों में भी योगदान
सहकारी क्षेत्र का योगदान सिर्फ नियमित नौकरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्वरोजगार (self-employment) के अवसर भी उत्पन्न कर रहा है। 2006-07 में सहकारी क्षेत्र ने 15.47 मिलियन स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न किए थे, और 2018 तक यह आंकड़ा 30 मिलियन तक पहुँच गया। यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि सहकारी क्षेत्र ने न केवल बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा किया है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाले स्वरोजगार के अवसर भी मुहैया करवा रहा है।
प्रमुख सहकारी संस्थाएं
रिपोर्ट में प्रमुख सहकारी संस्थाओं का भी जिक्र किया गया है, जो इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इनमें प्रमुख नाम हैं इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव (IFFCO), अमूल, आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड, और सुधा डेयरी। ये संस्थाएं सहकारी क्षेत्र की सफलता और इसके द्वारा उत्पन्न रोजगार अवसरों का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
कुल मिलाकर सहकारी क्षेत्र का भविष्य उज्जवल
प्राइमस पार्टनर्स की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सहकारी क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में एक शक्तिशाली इंजन के रूप में कार्य कर सकता है। यदि सरकार इस क्षेत्र पर ध्यान देती है और इसे विकसित करने के लिए नीतियां बनाती है, तो यह बेरोजगारी और स्वरोजगार की समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। 2030 तक सहकारी क्षेत्र का योगदान न केवल नौकरियों में बल्कि स्वरोजगार के अवसरों में भी महत्वपूर्ण होगा, जिससे लाखों भारतीयों को आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।