दिनेश निगम ‘त्यागी’
कमलनाथ का कृष्ण बनना कितना जायज….
– देवी-देवताओं का किसी फिल्म, पेंटिंग या पोस्टर आदि में उपयोग होता है तो हंगामा खड़ा हो जाता है लेकिन राजनीति में जब किसी नेता को भगवान, देवी-देवता और विरोधी नेता को राक्षस के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है तब कोई बवाल नहीं, आखिर क्यों? हाल ही में कांग्रेस ने पार्टी मुख्यालय के सामने एक पोस्टर लगाया। इसमें कमलनाथ को कृष्ण के रूप में प्रदर्शित किया गया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कंस दर्शाया गया। कमलनाथ खुद बताएं, क्या यह जायज है? क्या वे भगवान हो गए हैं? क्या उन्हें ऐसा करने वाले अपने पार्टी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहिए?
न कमलनाथ ने ऐसा कुछ किया और न ही हिंदू नेताओं ने इस पर कोई हंगामा खड़ा किया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पहले भी कभी नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को भगवान राम के रूप में दिखा दिया जाता है, कभी सोनिया गांधी को दुर्गा के रूप में। विधानसभा चुनाव के दौरान मप्र में कमलनाथ और शिवराज के बीच यह प्रतियोगिता जैसी चली थी। बाकायदा फिल्म बनाकर वीडियो सोशल मीडिया में डाले गए थे। नेता भले इससे खुश हों लेकिन जनता को यह पसंद नहीं। इसलिए राजनीति में देवी-देवताओं का इस तरह उपयोग बंद होना चाहिए।
दिग्विजय को फिर मुख्य धारा में लार्इं सोनिया….
– प्रदेश में दस साल तक मुख्यमंत्री रहे राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह बढ़ती उम्र के साथ कांग्रेस की मुख्यधारा में लौटते दिख रहे हैं। भाजपा जब उन्हें अपने वोट बैंक के लिए तुरुप का इक्का मानती है, तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन पर एक बार फिर भरोसा किया है। पहले राज्यसभा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की तुलना में उन्हें वरीयता दिए जाने की खबरें थीं। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की एक वजह यह भी बनी। इसके बाद सोनिया की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की समिति में उन्हें सदस्य बनाया गया।
अब जब चार राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तब दिग्विजय सिंह को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के आंदालनों की रूपरेखा बनाने के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। समिति में 9 सदस्यों के साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी सदस्य के तौर पर शामिल हैं। साफ है, दिग्विजय अब राज्यों के विधानसभा चुनावों और इसके बाद लोकसभा चुनाव में मुख्य भूमिका में होंगे। कांग्रेस के आंदोलनों का सबसे ज्यादा असर मप्र में दिख सकता है। आखिर, वे इस प्रदेश से हैं। प्रदेश में बिजली संकट पर तीखा ट्वीट कर दिग्विजय ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। उन्होंने सवाल उठाया है कि ‘अब बंटाढार कौन’?
सिर दर्द बन गई कमलनाथ की घोषणा….
– प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की एक घोषणा पार्टी के लिए सिर दर्द साबित हो रही है। यह है ‘बाल कांग्रेस का गठन’। कमलनाथ ने घोषणा तो कर दी लेकिन इसका अध्यक्ष ढूंढ़ने में पार्टी नेताओं को खासी मशक्कत करना पड़ रही है। बाल कांग्रेस का सदस्य बनने की उम्र सीमा 16 से 20 वर्ष रखी गई है। पहले तो अधिकांश नेता इस उम्र में बच्चों को राजनीति में लाने के पक्ष में नहीं हैं। ज्यादा खास यह कि बाल कांगे्रस का अध्यक्ष बनाने के लिए इस आयु सीमा का अच्छा बोलने और राजनीतिक समझ रखने वाला सक्रिय बालक चाहिए। यह तलाश ही कांग्रेस नेताओं के सिर दर्द का कारण बन गई है। अध्यक्ष के लायक बालक ढूंढ़ने के लिए एनयूएसआई के पदाधिकारी सक्रिय हैं।
कमलनाथ ने कुछ निजी एजेंसियों को इस काम में लगा रखा है। कमलनाथ वैसे भी प्रायवेट एजेंसियों के जरिए सर्वे पर भरोसा करते हैं। इतनी कसरत के बावजूद अब तक कांग्रेस को ऐसा बालक नहीं मिल सका है, जिसे बाल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सके। अध्यक्ष ही नहीं मिल रहा तो बाल कांग्रेस कैसे गठित हो पाएगी, यह बड़ा सवाल है। कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि हर कोई बच्चों को राजनीति में लाने के खिलाफ रहता है, इसलिए कमलनाथ को ऐसी घोषणा नहीं करना चाहिए थी।
‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की राजनीति….
– प्रदेश में पिछड़े वर्गों को आकर्षित करने के लिए भाजपा-कांग्रेस के बीच ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर रानजीति चल रही है। दोनों एक दूसरे को पिछड़ों का विरोधी और खुद को सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में लगे हैं। कमलनाथ की तत्कालीन सरकार ने अचानक पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया था। जिस पर कोर्ट का स्टे लग गया था। भाजपा सत्ता में आई तो उसने कहा कि कमलनाथ ने स्टे विकेट कराने की गंभीर कोशिश नहीं की।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली में तुषार मेहता और रविशंकर प्रसाद जैसे वरिष्ठ वकीलों से इस मामले की पैरवी करने के लिए बात की तो कमलनाथ ने अभिषेक मनु सिंघवी और इंद्रा जयसिंह से बात कर डाली। आरक्षण मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने साफ किया कि वह कोई अंतरिम आदेश नहीं देगा, अंतिम निर्णय सुनाएगा। बावजूद इसके प्रदेश सरकार ने कोर्ट में विचाराधीन विषयों से अलग हटकर शेष विभागों को 27 फीसदी आरक्षण लागू करने के निर्देश जारी कर दिए। यह आदेश भी लगभग कमलनाथ जैसा ही। यह कोर्ट में टिकने वाला नहीं। बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। पिछड़े वर्ग के लोग कोर्ट के निर्णय के इंतजार में हैं।
शिवराज ने फिर जताया भूपेंद्र पर भरोसा….
– इस बार के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे के मंत्रियों की संख्या कम है। भाजपा में अब तक लोधी, यादव, पटेल तथा कुर्मी जैसी जातियों के नेता पिछड़ों की राजनीति के अगुआ रहे हैं। इस मसले पर कांग्रेस के साथ चल रही तनातनी के बीच मुख्यमंत्री को अपने भरोसे के मंत्री की जरूरत थी। लिहाजा, उन्होंने इसके लिए अपने खास नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह को चुना। भूपेंद्र पिछड़े वर्ग के दांगी ठाकुर हैं और शिवराज के साथ युवा मोर्चा के समय से जुड़े रहे हैं। पिछड़ों को आरक्षण के मसले पर हालांकि भाजपा सरकार का हर मंत्री कांग्रेस को एक्सपोज करने के लिए बयान दे रहा है लेकिन असली मोर्चे पर शिवराज के बाद भूपेंद्र सिंह ही हैं।
शिवराज की पहल पर वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता मामले की पैरवी भी सरकार की ओर से करने लगे हैं। दूसरी तरफ भूपेंद्र ने कांग्रेस द्वारा लाए गए अध्यादेश की प्रति जारी कर कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा और कोर्ट में पिछड़ों की आबादी 27 फीसदी बताकर दोहरे चरित्र का परिचय दिया है। इसकी वजह से कोर्ट ने तत्काल स्टे दे दिया। इस तरह का दस्तावेज कोई अन्य नेता लेकर नहीं आया था। पिछड़ों की इस लड़ाई में किसकी जीत होती है और किसकी हार, देखने लायक होगा।