लोकमान्य तिलक की वो कृति जिसे पढ़कर गाँधी ने जीवन पथ बदल लिया

Piru lal kumbhkaar
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‘गीता रहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र'(‘Gita Rahasya or Karmayogashastra’)-एक सर्व प्रिय पुस्तक हैं जिसके रचयिता हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक। इस अमरकृति ने महात्मा गांधी जैसे महापुरुष की जीवनदृष्टि को बदला है। बापू कहते थे माता जन्म देती है तो धरतीमाता हमें धारण करती है, गोमाता पोषण करती है तो गीतामाता धर्मसंस्कार देती है, और गंगा माता मोक्षदायिनी है ही।

कागज स्याही के आभाव के बीच उन्होंने इस महान पुस्तक को मंडाले की जेल में लिखा था। लोकमान्य ने इस पुस्तक में मोक्ष की कामना की बजाय कर्म की महत्ता की मीमांसा की। वे मानते थे कि गुलाम भारत में मोक्ष की कामना निरर्थक है।

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लोकमान्य ने इसे मराठी में लिखा। हिंदी में सबसे प्रामाणिक अनुवाद माधवराव सप्रे ने किया है। उनके द्वारा अनूदित संस्करण का ही मैंने पारायण किया है।

पुस्तक सन्यास या वानप्रस्थियों के लिए नहीं अपितु धर्म के ऊपर कर्म की सत्ता की स्थापना के लिए है। महात्मा गांधी स्वीकार करते हैं कि भगवद्गीता को समझने में लोकमान्य की इस टीका ने मेरा पथ प्रशस्त किया।

यह पुस्तक चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू आदि क्रांतिकारियों की प्रेरणा पुंज रही है। क्रांतिकारी उन दिनों इस पुस्तक को अपने साथ रखते थे।

प्रथम प्रकाशन के बाद इस पुस्तक की अपार लोकप्रियता और इसके अनुयायियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अँग्रेजों ने ‘गीता रहस्य’ की बिक्री और प्रसार पर प्रतिबंध लगा दिया। पर गीता रहस्य वाचिक परंपरा के माध्यम से जनजन तक पहुंचने लगी।

इस पुस्तक की जीवनदृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संसार की हर मुश्किलों का समाधान इसमें है। यह पुस्तक भले ही आम बुकस्टाल्स पर न मिल पाए पर आन लाइन खरीद सकते हैं। वैसे पूरी पुस्तक की विषयवस्तु भी नेट पर मौजूद है।

लेकिन अनुरोध है कि इसे पुस्तक रूप में ही क्रय करें और एक बार संपूर्ण पारायण अवश्य करें। इसके पारायण का फल श्रीमद्भागवत, रामायण, रामचरितमानस से अधिक ही प्राप्त होगा।