मच्छरकांड पर एक पुरानी टीप को पढ़ते हुए!

Akanksha
Published on:
jayram shukla

जयराम शुक्ल

 

हाल ही घटित गेस्टहाउस  मच्छर कांड पर विचार करते हुए अपनी लिखी हुई एक पुरानी टीप याद आ गई।

 

छह सात पहले का वाकया है एक मंत्री को रातभर मच्छरों ने काटा तो सुबह होते ही मंत्री ने नाश्ते की मेज पर पहले केयरटेकर की नौकरी काटी फिर छूरी-काँटे से आमलेट।

जिस अखबार ने यह खबर छापी उसके रिपोर्टर की नौकरी भी जाते जाते बची क्योंकि उसने इस प्रकरण को किसी बड़े कांड की तरह रच मारा था। अखबार के मालिक को मंत्री के विभाग का ठेका पाना था सो जरूरी था कि पहले रिपोर्टर की नालायकी पर उसे सजा दे उसके बाद मंत्री से मिले।

मंत्री के लिए यह मामला मच्छर के बराबर ही था सो उसने ज्यादा नोटिस नहीं ली और रिपोर्टर की नौकरी बच गई।,गेस्टहाउस में वो दिहाड़ी का केयरटेकर इतना भाग्यशाली नहीं था चुनांचे वह फिर सड़क पर बेकारों की कतार पर आ खड़ा हुआ। “एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है” नाना पाटेकर का यह चर्चित फिल्मी डायलाग अब डस्टबिन में डाल देने लायक हैं। नया संवाद यह कि एक मच्छर आदमी को बेरोजगारी की सड़क पर ला देता है।

कायदे से अब एक ऐसी आचार संहिता बन देनी चाहिए कि मच्छरों को किसे डसने दिया जाए और किसे नहीं, इसका प्रोटोकाल हो। हर वीआईपी को रात में भी अलग से चार एक की गार्ड उपलब्ध कराई जाए जो उन्हें मच्छरों से डसने से बचाए।

मुझे याद है कि साठ-सत्तर के दशक में डब्लूएचओ का मच्छरों के खिलाफ व्यापक अभियान चला था। मलेरिया इन्सपेक्टर हुआ करते थे जिनके निर्देश पर हर घर की दीवार में गेरू से एक सारणी बनाई जाति थी। विधिवत दर्ज किया जाता था कि किस घर में कितनी बार डीडीटी का छिडक़ाव हुआ।

अच्छा खासा धंधा फला- फूला था। विदेशी कम्पनियों से डीडीटी की आपूर्ति का अरबों का ठेका था। उन दिनों स्वास्थ्य विभाग में मलेरिया महकमा सबसे कमाऊ माना जाता था।

मच्छरहीन करऊँ, महि भुज उठाइ प्रण कीन्ह…, टाइप के संकल्प के इश्तहार अखबारों में आते, दीवारों में लिखे जाते।  बाद में पता चला केन्द्र सरकार के एक मंत्री की बोफोर्स टाइप की डील हुई थी। इस डील का असर दिल्ली से जिलों तक ऐसा हुआ कि घोटालों की बाढ़ सी आ गई। मलेरिया घोटाला काण्डों की कई फाइलें अब भी जांच दफ्तरों में दफन हैं।

पर इस अभियान के कुछ स्वास्थकारी परिणाम भी निकले। अदना सा मलेरियाकर्मी भी दस साल में मोटल्ला होकर लाखों-करोड़ों का असामी बन गया था।

डीडीटी से मच्छर तो नहीं मरे पर जिन्दगी से आजिज आकर इतने लोग-लुगाइयों ने डीडीटी पीकर जान दे दी कि सरकार के परिवार नियोजन का कोटा बिना परिश्रम के पूरा हो गया। सो जाने अनजाने ये मच्छर देश की इकोनॉमी और व्यवस्था के लिए अनिवार्य जन्तु हैं बशर्ते ये किसी वीआईपी को न डसें। दुनिया के पैमाने पर देखें तो मच्छरों की वजह अरबों -खरबों की अर्थव्यवस्था धडक़ रही है। दवाएं, पैथालाजी लैब, अस्पताल मच्छरदानी, मच्छरमार फ्यूम्स,अगरबत्तियां।

आप गहराई पर जाएं त पाएंगे कि एयरो या आटोमोबिल इन्डस्ट्री का जितना कारोबार नहीं, कहीं उससे कई गुना मच्छर केन्द्रित अर्थव्यवस्था है।

अर्थव्यवस्था की गति से ही विकास दर नापी जाती है, सो ये मच्छर देश और दुनिया की आर्थिक विकास दर के महत्वपूर्ण कारक है।

कल्पना करें यदि दुनिया वाकई मच्छरहीन हो जाए तो खरबों का धंधा, करोड़ों लोगों का रोजगार चौपट हो जाएगा। इसके साथ ही ये जनसंख्या नियंत्रण का यमदूतीय कर्तव्य निभा रहे हैं उस पर भी लगाम लग जाएगी।

आबादी का विस्फोट हो जाएगा, लिहाजा मच्छरों का बने रहना जरूरी है बशर्ते ये किसी वीआईपी को न डसें।

मुझे एक अर्थशास्त्री ने बताया था कि महामारी जैसी आपदाएं और विपदाएं भी इकोनामी फ्लो के लिए मददगार होती हैं।

अपने देश में बीमारियों से मरने वालों में से तीस से चालीस फीसदी लोग मच्छरजनित बीमारियों- मसलन पैल्सीफेरम, डेंगू, चिकनगुनिया मैनिजाइटिस से मरते हैं।

दूर-दराज के गांवों में तो हर सीजन में मलेरिया संक्रामक बीमारी की भांति फैलती है। पन्ना और सीधी जिले के वनवासी बच्चे हर साल थोक-के थोक भाव में काल के गाल में समा जाते हैं पर वे सुर्खियों में नहीं आते। क्यों?

क्योंकि आमदमी और वह भी गरीब सरकार के प्रोटोकाल में नहीं आता।  सो हे मच्छरों डसना ही है तो उन किसानों, सीमान्त मजदूरों को तबीयत से डसते रहें क्योंकि उनमें से कइयों को फांसी पे लटककर, कीटनाशक पीकर या फिर कुपोषण से आज नहीं तो कल मरना ही हैं…

और हाँ भूले से भी किसी वीआईपी को मत डसियो।

संपर्क: 8235812813