लंबी आयु के लिए सावन सोमवार को सच्चे मन से पढ़े ये कथा, शिव जी देंगे वरदान

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सावन का महीना हिंदू धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। साथ ही इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है माना जाता है। सावन के हर दिन भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। सावन में भोलेनाथ अपने हर भक्त से प्रसन्न में रहते हैं। ऐसे में हर सावन सोमवार को एक कथा जरूर पढ़नी चाहिए वह कथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं। आपको बता दें इस कथा को पढ़ने से जीवन में मृत्यु का डर खत्म हो जाता है साथ ही लंबी आयु प्राप्त होती है।

यह है वो कथा, इस कथा को हर सोमवार पढ़ना चाहिए-

shiv ji

मान्यता है कि एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार रहा करता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन कोई संतान ना होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था। जब वह संतान प्राप्ति के लिए सोमवार को व्रत रखने लगा पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव और माता पार्वती जी की पूजा करने लगा तब उसकी भक्ति देख एक दिन मां पार्वती ने प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना को पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी के निवेदन पर भगवान शिव ने कहा की है। पार्वती इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना पड़ता है।

लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति देखकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की वही माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। लेकिन उन्होंने बताया यह बालक 12 वर्ष तक ही सीमित रहेगा। तब ही माता पार्वती और भगवान शिव के बीच की बातचीत साहूकार सुन लेता है इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी होती है और ना ही दुख वह पहले भी बनती शिव की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह बालक 11 वर्ष का हुआ तब उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। उसके बाद साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ।

तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना। तब ही दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े। इस दौरान रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया।

दरअसल, साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीं लगी इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं। जब ये बात ये बात राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई। दूसरी तरफ साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़का 12 साल का हुआ उस दिन भी यज्ञ का आयोजन था।

लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती माता ने शिव से कहा स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था।

अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। ऐसे ही जो भी कोई सच्चे मान से भगवान शिव की पूजा और व्रत करता है उसे मृत्यु का डर खत्म हो जाता है।