राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ महज संगठन ही नहीं अपितु जीवन जीने का ढंग है…जिसके अनेक अनुषांगिक ही उसके इंद्रधनुषी रंग है…वर्षों तक संघ से नफरत करने वालों ने उसकी गतिविधियां रोकने का प्रयास किया…कभी गणवेश को लेकर तो कभी बौद्धिक प्रकल्पों को लेकर उपहास किया…लेकिन जितनी नफ़रतें बढ़ी , उससे सौगुनी संघ की ताकत बढ़ी…संघ दक्ष संघ आरम करते करते पृष्ठ में रहकर दिलों पर राज करने की सीढ़ियां चढ़ी.
आज भारत की संस्कृति को अमृत की तरह सहेजने वाला वही है…अपने प्रकल्पों के जरिये उसने सदैव संस्कारों के उत्थान की बात कही है…राजनीतिक – वैचारिक मतभेद के चलते संघ पर प्रतिबंध लगे…तब भी संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक भगे नहीं बल्कि बेख़ौफ़ जगे…बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में पर्दे के पीछे रहकर बिन प्रचार संघ ने कार्य किया…फंसे हुए लोगों का रेस्क्यू करने में अपनी जान की परवाह किये बगैर अपना सबकुछ दिया…सेवा के हर क्षेत्र में संघ खड़ा है…उनकी नजरों में न कोई छोटा है न बड़ा है…समरसता क्या होती है इसको संघ ने ही समझाया है…गुरुजी जन्मशताब्दी में हर किसी को एक ही पंगत में जिमवाया है.
गौहत्या के खिलाफ 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में संसद के बाहर संतों व गौभक्तों का प्रदर्शन हुआ…प्रदर्शन की भव्यता और विराट संख्या के पीछे सरकार को संघ का दर्शन हुआ…इंदिराजी के आदेश पर निहत्थे गौभक्तों पर गोलियों की बौछार हुई…तब बौखलाकर सरकार के आदेश पर ट्रकों में ठूंस ठूंसकर जिंदों को भी भरकर लाशों की भरमार हुई…इस प्रदर्शन में आरएसएस और जनसंघ के प्रभाव से हिलकर 30 नवम्बर 1966 को इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया.
सख्त कार्यवाही करने की धमकी देते हुए उनको भयभीत कर शाखाओं से भगा दिया…तब से 58 साल बाद तक ये आदेश संघ के विरुद्ध निराशा की झलक था…हालांकि हर कर्मचारी संघ के कार्यों का दर्शन करता अपलक था…हिंदुत्व , राष्ट्रीय सुरक्षा , एकता – अखंडता व रचनात्मक गतिविधियों के लिए संघ शुरू से जुटा हुआ है…सेवानिवृत्ति पर पेंशन , ग्रेच्यूटी सहित सभी लाभों से वंचित होने के भय से कर्मचारी अब तक संघ से टूटा हुआ है…अब फिर से जुड़ने की खुशकिस्मत बेला आई हुई है…देश व धर्म के लिए हमने जीने – मरने की कसमें खाई हुई है…जिस अनुशासन व ईमानदारी के अभाव में आज कांग्रेस सत्ता को तरस रही है…उसी की कृपा आज आरएसएस के माध्यम से सत्ताधारी दल पर बरस रही है.
संघ में निष्ठा है , प्रतिष्ठा है , संघ में मान है , सम्मान है , संघ में अर्पण है , समर्पण है , संघ में रीति है , नीति है , संघ में विचार है , सार है , संघ ही है जो सिखाता अपने से छोटों से भी सदव्यवहार है…संघ को देखना हो तो पथ संचलन में देखो…संघ को देखना हो तो गीतों की रचना और उसके संकलन में देखो…भारत माता जिसकी नजरों में महान है , पवित्र भगवा जिसकी शान है , व्यक्ति पूजा नहीं ध्वज पूजा जिसका सम्मान है , समरसता जिसका अभिमान है…तुम कहाँ कहाँ ढूंढोगे संघ को जीवन के हर जरूरी कर्म में उसका कार्यक्षेत्र है…
संघ ही है जिसका व्यापक व असीमित क्षेत्र है…सत्तावन हजार से अधिक जिसकी शाखाएं है…जिसके आग्रह पर विश्वभर में राममन्दिर उदघाटन के पूर्व लग गई भगवा पताकाएं है…खेल , योग , वंदना , बौद्धिक , चर्चा , परिचर्चा , हिन्दू , वतन , संस्कृति जिसके प्रमुख आयाम है…यहां डॉक्टर साहब और गुरुजी जैसे तपस्वी संत प्रमुख हुए हैं न कि कोई ओसामा या सद्दाम है…अभाविप , विहिप , विज्ञान भारती , सहकार भारती , सेवा भारती , किसान संघ , मजदूर संघ , ग्राहक पंचायत , राष्ट्र सेविका समिति , शिक्षण मंडल , भाजपा , वनवासी कल्याण आश्रम , विद्या भारती , प्रबुद्ध भारती , प्रज्ञा प्रवाह , बजरंग दल जैसे अनेक संगठन संघ ने खड़े कर दिए…सरकार जो कर न सके वो काम धरती पर संघ ने बड़े बड़े कर दिए.
निचले स्तर से उच्च स्तर तक संघ की जरा बानगी तो देखो…संघ के बड़े बड़े अधिकारियों से लगाकर छोटे कार्यकर्ताओं तक की सादगी तो देखो…वो कुछ करते भी है तो किसी को पता ही नही चलता…संघ के स्वयंसेवक का देशप्रेम हेतु दिल मचलता…कुटुंब प्रबोधन में संघ ही मिलवाता है पूरे कुटुंब को सार्थक चर्चा के साथ…भागमभाग की जिंदगी में जब अपने ही अपनों का नहीं पकड़ते हैं हाथ…ऐसे संघ में सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध नहीं सभी का प्रवेश अनिवार्य कर देना चाहिए…बच्चों को व्यक्तित्व विकास की क्लास नहीं संघ की शाखा में व्यक्तित्व विकास स्वीकार कर देना चाहिए ।