“रामजी करेंगे बेडा पार उदासी जनता काहे को डरे”

Akanksha
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शशिकांत गुप्ते

समस्याएं है “सत्रह सौ साठ”और सभी समस्याओं का हल “तीन सौ सत्तर” बाकी बची “तेरह सौ नब्बे”इन समस्याओं का हल तीन तलाक़ है,और जो कुछ बचीं समस्याएं बची हैं,उनका हल तो रामजी का मन्दिर बन ही रहा है। “रामजी करेंगे बेडा पार उदासी जनता काहे को डरे” यह आस्था का प्रश्न है?
आर्थिक स्थिति का कितनी भी गिरावट हो,महंगाई चरम पर हो,बेतहाशा बेरोजगारी,यह मुद्दे तो विपक्ष का प्रपोगांडा है, कोई कितना भी कुछ कर ले “ईवीएम” मशीन के चमत्कार को कोई भी झुठला नहीं सकता।यह देश चमत्कारों का देश है।जहां कान में से कर्ण,खम्बे से नरसिंह,धरती से सीता जन्म लेती है,महाबली बाली और सुग्रीव को भी भुला नहीं सकते हैं,कहां कहां निगरानी रखोगे।
लोकतंत्र की नई परिभाषा में देश से धर्म बड़ा है।
धार्मिक लोगों के कारण राजनीति का शुद्धि करण हो गया है।शुरुआत में ही साधु,संत,योगी भोगी यहां तक की बुद्धि का विकसित रूप होता है,जिसे “प्रज्ञा”कहते हैं,ऐसे सभी अनुकम्पा प्राप्त कर चुके हैं।विरोधी यदि विरोध भी करते हैं,तो उनका स्वर आमजन तक पहुँचाने वाले माध्यमो में कुछ एक दो को छोड़ कर तकरीबन सभी सत्ता की गोदी में बैठ गए हैं।
देश की स्वतंत्रता के बाद अभी तक देश मे कुछ हुआ ही नहीं है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि, जो कुछ हुआ नहीं वह सब बेंचा जा रहा है।यह चमत्कार पहली बार हो रहा है।सबसे बड़ा साहसिक निर्णय तो यह है कि, कोई जांच नहीं होगी आरोप लगाते रहो,वह पूरी तरह आश्वस्त हैं,उनके अपने सभी पाक साफ हैं। पाक शब्द भी इनदिनों देश की राजनीति में महत्वपूर्ण हो गया है।यह पवित्र शब्द धमकियां देने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है।मैं सिर्फ शब्द की बात कर रहा हूँ, किसी आस पड़ोस के देश की नहीं।
पहली बार भारत रत्न नामक महत्वपूर्ण खिताब भी इस कहावत को चरितार्थ करते हुए दिया जाएगा “अंधा बाटे रेवड़ी अपने अपने को दे”
इतिहास पुनः लिखा जाएगा,और लिखा भी जा रहा है।स्वतंत्रता प्राप्ती में बापू का कोई योगदान नहीं था।सारी गलतियां प्रथम प्रधानमंत्री ने की,इस बात पर गंभीरता से सोचने पर यह तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रथम प्रधानमंत्री भी कोई थे।भले ही उन्होंने गलतिया की होगी! सन सैंतालीस से दो हजार चौदह तक का इतिहास शून्य है।इसके पूर्व कोई प्रधानमंत्री विदेश जाता ही नहीं था,और भूले भटके कोई विदेश जाता भी होगा तो उसको विदेश में शायद पानी के लिए पूछा नहीं हो।अब जो हैं,वह आए दिन जाते ही रहते हैं,उनका ही सन्मान हो रहा है।
चारों ओर विकास है।अच्छे दिन आ गए हैं।शाब्दिक रूप से उपलब्ध करवाना सत्ता का काम है। उपभोग करना जनता का काम है।जनता को उपभोग ही करते नहीं आएगा,तो इसमें सत्ता का कोई दोष नहीं।नोट बंदी और जी. एस.टी.जैसा निर्णय कोई साधारण निर्णय नहीं है।पूरे देश में एक नंबर का काम हो रहा है।बेईमानी होगी ही नहीं तो जाँच किस बात की करोगे?
सब कुछ अच्छा चल रहा है और भी अच्छा होगा आगे आगे देखिए होता है क्या?
तीन सौ सत्तर, वचन निभाने का प्रमाण है।सेहत अच्छी रखना होतो कड़वी दवाई भी पीना पड़ती है।दवाई से ज्यादा परहेज महत्वपूर्ण है।इंटरनेट, मोबाइल, खाना पीना,और घूमना फिरना थोड़े समय (अनिश्चित काल के लिए) के लिए रोकना, यह दवाई के साथ परहेज है।जो मरीज़ स्वेच्छा से परहेज नहीं करते उन्हें ज़बरन करवाना पड़ता है।उद्देश्य रोग को जड़ से मिटाना है।कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।ऐसे में यदि किसी की जान भी जाति है तो वह शहादत में तो नहीं गिना जाएगा कारण आम आदमी की वैसे भी कीमत. छोड़ो विवाद को दर किनार ही रखो।
साहसपूर्ण निर्णय हर कोई नहीं ले सकता।जिसके पास छप्पन इंच का सीना हो वही ले सकता है। सीने में दिल नाम का अवयय है या नही यह खोज का विषय है? समरथ को नही दोष गोसाईं।