Raksha bandhan: कलाई पर मौली बांधने से सेहत को होते ये गजब फायदे, जानें कैसे?

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रक्षाबंधन का त्यौहार सभी भाई बहनों के लिए एक पवित्र और अटूट त्यौहार होता है। प्राचीन काल से चला आ रहा ये त्यौहार इस साल 22 अगस्त को आने जा रहा है। इस दिन सभी भाई बहन अपने रिश्तों की डोर को और ज्यादा मजूबत बना देते हैं। वहीं रक्षाबंधन का त्यौहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार रविवार को पड़ रहा है।

खास बात ये है कि इस साल रक्षाबंधन उदया तिथि और शोभन योग में मनाया जाएगा। यह योग इस पर्व के लिए बेहद शुभकारी होगा। इसके अलावा हिन्दू धर्म में इस दिन मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा बताया गया है। ये इसलिए क्योंकि इसे कलाई में बांधा जाता है। इसलिए इसे कलावा कहते है। खास बात ये है कि इसे उप मणिबंध वैदिक नाम से जाना जाता है।

आपको बता दे, रक्षाबंधन या पूजा पाठ के बाद कलावा बांधने की तीन वजहें होती हैं, आध्यात्मिक, चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक। मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले इंद्र की पत्नी शचि ने वृत्तसुर युद्ध में इंद्र को रक्षा सूत्र बांधा था। ऐसे में जब भी कोई युद्ध में जाता है तो कलाई पर कलाया, मौली या रक्षा सूत्र बांधकर पूजा की जाती है।

इसके अलावा असुरराज राजा बलि ने दान से पहले यज्ञ में रक्षा सूत्र बांधा था। उसके बाद दान में तीन पग भूमि दे दी तो खुश होकर वामन ने कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधकर अमरता का वचन दिया। वहीं देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में पति विष्णु की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। उसके बाद वह पति को पाताल लोक से साथ ले गई थी।

सभी की रक्षा के लिए –

घर में लाई नई वस्तु को भी रक्षा सूत्र से बांधा जाता है। ऐसे में कुछ लोग इसे पशुओं को भी बांधते हैं। पालतू पशुओं को यह गोवर्धन पूजा और होली के दिन बांधा जाता है।

सेहत के लिए फायदेमेद –

कहा जाता है कि पहले के समय में कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधने की परंपरा का स्वास्थ्य लाभ मिलता है। वहीं शरीर विज्ञान के मुताबिक, इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले और पैर के अंगूठे में मौली बांधते थे। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।