रक्षाबंधन का त्यौहार सभी भाई बहनों के लिए एक पवित्र और अटूट त्यौहार होता है। प्राचीन काल से चला आ रहा ये त्यौहार इस साल 22 अगस्त यानि आज है। आज के दिन सभी भाई बहन अपने रिश्तों की डोर को और ज्यादा मजूबत बना देते हैं। वहीं रक्षाबंधन का त्यौहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
रक्षाबंधन के पर्व को बहनें वर्ष भर इंतजार करती हैं। इस दिन बहने भाई की लंबी आयु, सफलता और समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं रक्षा बंधन पर भाई, बहनों की रक्षा और सम्मान का प्रण लेते हैं। वहीं आज राखी बांधते समय यह मंत्र बोलें, जिससे भाई बहनों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यह मंत्र बोलकर बांधें राखी
सनातन धर्म में अनेक रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं जिनका सिर्फ धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक पक्ष भी है जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक है। मौली को रक्षा कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है। मौली को संकल्प, रक्षा एवं विश्वास का प्रतीक माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार मौली बाँधने से त्रिदेव -ब्रह्मा,विष्णु व महेश एवं त्रिदेवियां-लक्ष्मी,पार्वती व सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्माजी की कृपा से कीर्ति विष्णुजी की अनुकंपा से रक्षाबल मिलता है और भगवान शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। आज भी लोग कलावा बांधते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करते हैं।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
शरीर विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो कलावा बाँधने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है। त्रिदोष -वात, पित्त तथा कफ का शरीर में संतुलन बना रहता है।
क्या हैं राखी बांधने के नियम
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हर शुभ काम करने से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर दिशा में अपना चेहरा कर बैठना चाहिए। शास्त्रों के अनुरूप पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में रक्षासूत्र बांधना चाहिए एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में राखी बांधने का विधान है। रक्षा सूत्र बंधवाते वक्त सिर पर रूमाल या कोई कपड़ा अवश्य रखें और बांधने वाली बहन का सिर भी ढंका होना चाहिए।
राखी बांधते समय बहनें लाल, गुलाबी, पीले या केसरिया रंग कपड़े पहने तो अच्छा होता है। राखी का बांधा जाना हमें उस संकल्प को याद करते रहना तथा उसकी पूर्ति के लिए प्रयास करते रहना सिखाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हाथ में रक्षासूत्र बंधे होने से व्यक्ति को स्वयं ही परमात्मा द्वारा अपनी रक्षा होने का आभास होता है। जिससे मन में शांति व आत्मबल में वृद्धि होती है।