अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं
मध्यप्रदेश कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का ‘वन-मेन-शो’ चल रहा है। दरअसल कमलनाथ मध्यप्रदेश ही नहीं देश में कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं। वे अभी मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता भी। प्रदेश में दिग्विजय सिंह के अलावा उनके कद का कोई नेता है नहीं; लिहाजा जो भी फैसले हो रहे हैं उससे दिग्विजयसिंह सहित दूसरी पंक्ति के कई नेता असंतुष्ट हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से मध्यप्रदेश के प्रभारी मुकुल वासनिक भी प्रदेश के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। असल में कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादातर नेता कमलनाथ के कृपापात्र रहे हैं। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कमलनाथ ने पार्टी में कई लोगों की अलग अलग तरह से मदद की है। मुकुल वासनिक भी उन्हीं में से एक हैं। यानी अभी मध्यप्रदेश कांग्रेस में ‘कमलनाथ-युग’ जारी रहने वाला है।
अपनों के भ्रष्टाचार से परेशान सिंधिया! बीजेपी में जाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया अजीब उलझन में हैं। सरकार में उनकी खूब चल रही है। उनके यहां से मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को भेजी जाने वाली सिफारिशों पर तेजी से अमल हो रहा है। सिंधिया की कार्यशैली है कि वो अपने समर्थक विधायकों और अन्य नेताओं की सिफारिशों को मुख्यमंत्री को फारवर्ड करते हैं। पिछले दिनों कई शिकायतें ऐसी आईं कि विधायक और जिलों के अन्य नेता पैसे लेकर नियुक्तियों और अन्य कामों की सिफारिश ‘महाराज’ को भेज रहे हैं। सिंधिया का असमंजस यह है कि किसकी पैरवी को मानें? लेनदेन वाली सिफारिशों की जांच कैसे करें? एक बदलाव यह भी है कि सिंधिया के साथ बीजेपी में आये सिंधिया-समर्थक अब मानते हैं कि पार्टी बदलकर उन्होंने एक तरह से ‘महाराज’ पर राजनीतिक उपकार किया है। उनकी दम पर ही महाराज का सरकार में बोलबाला है।
बात मध्य प्रदेश कैबिनेट के नंबर दो मंत्री गोपाल भार्गव की करते हैं। भार्गव जी के बारे में कहा जाता है कि उनका भोपाल में 74 बंगला स्थित निवास एक तरह से उनके गृह क्षेत्र गढ़ाकोटा के लोगों के ही जिम्मे है। मंत्री जी यहां कम और क्षेत्र के लोग ही ज्यादा रहते हैं। अपने इस बंगले में उन्होंने इन लोगों के लिए तमाम सुविधाएं जुटा दी हैं। यहां 50 लोगों के रहने के साथ ही उनके खान-पान का भी बंदोबस्त कर दिया है। क्षेत्र का यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे उसके गांव से भोपाल तक लाने के लिए एंबुलेंस का बंदोबस्त किया गया है और जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाता है उसका इलाज पंडित जी की देखरेख में ही होता है। इस सब काम में उनके बेटे अभिषेक समन्वयक की भूमिका में रहते हैं। हां अभिषेक का इतना अनुरोध जरूर रहता है कि जो सुविधाएं हम उपलब्ध करा रहे हैं उनका बस दुरुपयोग न हो।
क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी के निर्णय के बाद होली और शबे कद्र के लिए जो निर्णय प्रशासन ने लिया था, उसके बाद कैलाश विजयवर्गीय की आक्रामक मुखरता और उस पर शिवराज सिंह चौहान का बेहद सौम्य पलटवार चर्चा का विषय रहा। लेकिन इसके बाद जिस अंदाज में सांसद शंकर लालवानी सक्रिय हुए और फिर उनसे जुड़े लोगों की अपने नेता की भूमिका पर जो प्रतिक्रिया सामने आई वह भी कम चौंकाने वाली नहीं थी। सीधा अर्थ यही था कि इंदौर के मामले में यदि मुख्यमंत्री किसी की सुन रहे हैं तो वह हैं लालवानी और इंदौर की जनता के दर्द को भी लालवानी से बेहतर कोई नहीं समझता। इस सबके बीच जेपी मूलचंदानी जरूर कृष्ण मुरारी मोघे को श्रेय देते नजर आए। वैसे लालवानी की सक्रियता के बाद मूलचंदानी का यह कदम लाजमी भी था ।
लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे राज्य पुलिस सेवा के अफसरों का इंतजार अब खत्म होता नजर आ रहा है। काडर रिव्यू के माध्यम से इस सेवा के अफसरों को भारतीय पुलिस सेवा के 18 पद और मिल जाएंगे। इस बारे में पुलिस मुख्यालय से आगे बढ़ा प्रस्ताव वल्लभ भवन से काफी पहले दिल्ली पहुंच गया था। वहां अलग-अलग स्तर के परीक्षण के बाद अब गेंद केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय में पहुंच गई है। इस मंत्रालय के सचिव मध्य प्रदेश काडर के सीनियर आईएएस अफसर दीपक खांडेकर हैं और उनकी वहां मौजूदगी का फायदा मध्य प्रदेश के राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को मिलना तय है। यदि ऐसा हो जाएगा तो 1997 तक की बैच के रापुसे सेवा के अधिकारी इसी साल आईपीएस हो जाएंगे। यदि 5% प्रतिशत पद ही बढ़ाने का नियम आड़े नहीं आया तो।
अप्रैल के उत्तरार्ध में जस्टिस रमन्ना के सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने के बाद देश के न्याय जगत में बड़े बदलाव संभावित है। मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं रहने वाला है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से जज के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले जस्टिस जेके माहेश्वरी जो इन दिनों सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हैं, का कुछ महीनों बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचना तय माना जा रहा है। जस्टिस माहेश्वरी को जस्टिस रमन्ना का बहुत करीबी माना जाता है। विधि के क्षेत्र में उनकी विद्वता के भी सब कायल हैं। देश में जुडिश्यरी के क्षेत्र में जो धड़ेबाजी है वह कभी किसी जज के लिए नुकसानदायक रहती है तो कभी किसी के लिए फायदेमंद भी हो जाती है।
इंदौर शहर में बढ़ता कोरोना भले ही हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में बाधक बन गया हो लेकिन भविष्य में होने वाले हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट बार के चुनाव को लेकर इस बार अलग-अलग समीकरण सामने आ रहे हैं। हाई कोर्ट बार में वरिष्ठ अधिवक्ता अमित अग्रवाल के अध्यक्ष पद के लिए मैदान में आने के बाद मुकाबला उनके और मनीष यादव के बीच होता दिख रहा है। पहले अध्यक्ष रह चुके अनिल ओझा भी मानने को तैयार नहीं हैं। अजय बागड़िया और सूरज शर्मा के नाम भी अध्यक्ष पद को लेकर चर्चा में हैं। डिस्ट्रिक्ट बार में इस बार दिनेश पांडे और सौरभ मिश्रा अध्यक्ष पद के लिए आमने सामने होंगे पर दिलचस्प यह है कि पिछली बार पांडे को अध्यक्ष बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाली एक मजबूत टीम इस बार उनसे खफा नजर आ रही है।
चलते चलते
पुलिस मुख्यालय में इन दिनों उस वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की बड़ी चर्चा है, जिन्होंने अपनी एक महिला मित्र को अपने प्रभाव का उपयोग कर एक हॉस्टल में मुकाम दिलवा दिया था। हॉस्टल में उनकी आवाजाही बढ़ने के बाद जब मामला एक वरिष्ठ मंत्री तक पहुंचा तो उन्होंने आईपीएस अफसर को जमकर फटकारा और आखिरकार महिला मित्र को कमरा खाली करना पड़ा।
पुछल्ला
आखिर ऐसा क्या हुआ कि होली और शबे बारात के लिए कलेक्टर मनीष सिंह के आदेश के बाद विरोध में सबसे पहले सामने आए भाजपा नेता उमेश शर्मा कुछ ही घंटे बाद बैकफुट पर आ गए और कलेक्टर के निर्णय को शहर हित में बताने लगे। वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी रात को जारी अपने कई वक्तव्य शर्मा ने सुबह वापस ले लिए।
अब बात मीडिया की
♦️ दैनिक भास्कर समूह में एक बार फिर छंटाई का दौर शुरू होने वाला है। इसका फार्मेट खुद सुधीर अग्रवाल ने तय किया है। देखते हैं इस बार कौन इसकी चपेट में आता है।
♦️ भास्कर प्रबंधन ने सिटी भास्कर का दायरा सीमित ही रखने का निर्णय लिया है। कोरोनाकाल के पहले सिटी भास्कर जिस स्वरुप में था, वैसा अब शायद ही देखने को मिले।
♦️ संजय शुक्ला जैसे नई दुनिया में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों ने भले ही चाय की एक से दो दुकानें कर ली हों लेकिन नई दुनिया इंदौर के स्टाफ को तो एक कप चाय भी बमुश्किल नसीब हो पा रही है। एक समय देश के मीडिया संस्थानों में अपनी अलग पहचान रखने वाला यहां का कैंटीन तो पहले ही बंद कर दिया गया था लेकिन दफ्तर के बाहर लगी एक गुमटी को भी अब पीछे एक कोने में डलवा दिया गया है।
♦️ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दमदार रिपोर्टर राकेश चतुर्वेदी ने भी भोपाल में news24 का दामन थाम लिया है। वह पहले ibc 24 में सीनियर रिपोर्टर थे।
♦️ लंबे समय तक उज्जैन में नई दुनिया की बैकबोन रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर अरुण जैन का असमय दुनिया छोड़ कर जाना मीडिया जगत के लिए बड़ी क्षति है।