राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी

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अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मंशा को भांपना और उसे अमल में लाने में सारी ताकत झोंक देना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खासियत है। अपने बेटी बचाओ अभियान के चलते देश भर में लोकप्रिय हुए शिवराज सिंह चौहान ने अब बेटी ढूंढो का नारा दिया है और इसके पीछे उनका मकसद पिछले कुछ साल में गायब हुई बहुसंख्यक समाज की बेटियों को ढूंढवाना है। दरअसल संघ का यह मानना है कि प्रदेश में कई जगह एक वर्ग विशेष के लोगों ने इसे सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया है। संघ अपने नेटवर्क के माध्यम से तो इस हरकत में लिप्त लोगों को चिन्हित कर शिकंजे में ले ही रहा है। अब लव जिहाद के खिलाफ कानून जिस तेजी से मध्य प्रदेश में लागू किया गया है, वह बताता है कि इस मामले में मुख्यमंत्री के तेवर बदले-बदले क्यों हैं!!

घोषित तौर पर दिल्ली की कांग्रेस राजनीति में भले ही कमलनाथ की भूमिका तय नहीं हो पाई हो लेकिन अघोषित तौर पर अहमद पटेल वाली भूमिका में आ गए हैं। पिछले दिनों जब पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को झारखंड के कुछ विधायकों के पहले असम और फिर दिल्ली पहुंचने और भाजपा के दिग्गजों से मिलने की जानकारी मिली तो डैमेज कंट्रोल के लिए कमलनाथ की ही मदद ली गई। इसी तरह राजस्थान के मंत्री जब केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल से मिलने निकले तो कमलनाथ ने ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अलर्ट किया और कुछ ही घंटों में उक्त मंत्री की तस्दीक कर ली गई।

पिछले साल ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार गिरने का दर्द कांग्रेस अभी तक भूल नहीं पा रही। मध्यप्रदेश कांग्रेस की आईटी सेल और कुछ प्रवक्ता ‘सिंधिया-फोबिया’ से इतने ग्रसित हैं कि उनका सारा ध्यान सिंधिया की गतिविधियों पर रहता है। उप चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद अब चम्बल और नर्मदा में बहुत पानी बह गया लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस अभी तक इसी में अटकी है कि बीजेपी और शिवराज के कौन से निर्णय से सिंधिया का क्या फायदा, नुकसान हो रहा है। उपचुनाव के 3 महीने बाद भी आईटी सेल और कमलनाथ के नजदीकी प्रवक्ताओं की सुई अभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही अटकी है। माना कि चोट गहरी है; पर कांग्रेस को कभी तो आगे बढ़ना ही होगा।

15 जनवरी को गुना के सांसद केपी यादव के जन्मदिन पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बधाई का पहला ट्वीट किया, उसके बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से यादव को बधाई दी गई। आमतौर पर बहुत वरिष्ठ गिने-चुने नेताओं को छोड़कर कमलनाथ जन्मदिन की बधाई आदि के ट्वीट नहीं करते हैं, लेकिन विरोधी पार्टी के सांसद केपी यादव को यूं सार्वजनिक रूप से बधाई के जरूर कुछ राजनीतिक मायने हो सकते हैं। ये भी गौरतलब है कि अपने पुराने संसदीय क्षेत्र गुना- शिवपुरी में ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी तरह सक्रिय हैं जैसा वे पहले रहा करते थे। जाहिर है केपी यादव इससे असहज हैं और वे पार्टी कार्यक्रमों में सिंधिया के साथ मंच साझा करने से बचते देखे गये हैं। यानि गुना की राजनीति में अभी कुछ और मोड़ आने बाकी हैं।

सेवानिवृत्ति के 4 महीने पहले आईएएस अफसर आनंद शर्मा को मुख्यमंत्री का सचिव बनाया जाना कुछ अलग ही संकेत दे रहा है। संभावना यह है कि शर्मा सेवानिवृत्ति के बाद भी इसी पद पर काबिज रहेंगे। हां इतना जरूर होगा कि उनकी नई पारी संविदा नियुक्ति के रूप में रहेगी। ग्वालियर के संभाग आयुक्त पद से सेवानिवृत्त होने के बाद बीएम शर्मा को भी मुख्यमंत्री के ओएसडी के रूप में काम करने का मौका मिल चुका है। उनका कार्यकाल कुछ ही महीनों का रहा। इंतजार तो दो और रिटायर्ड आईएएस अफसरों महेश चौधरी और एमबी ओझा के पुनर्वास का भी है। दोनों अफसर मुख्यमंत्री के बहुत ही भरोसेमंद माने जाते हैं और इनका रिकॉर्ड भी बहुत शानदार रहा है। ‌

मंत्री कमल पटेल से तालमेल नहीं बैठना आईएएस अफसर संदीप यादव के लिए तो फायदे का ही सौदा रहा। सचिन यादव के कृषि मंत्री रहते यादव को कृषि विभाग में पदस्थ किया गया था। इस बीच सत्ता तो बदल गई, मगर सचिन कृषि विभाग में बने रहे। उनकी पटरी मंत्री जी से बैठ नहीं रही थी, सो पटेल ने उन्हें कृषि विभाग से तो विदा करवा दिया लेकिन अपने शानदार प्रशासनिक रिकॉर्ड के कारण यादव को उज्जैन का संभागायुक्त बना दिया गया। वैसे सीधी भर्ती वाले आईएएस यानी आरआर अफसरों की रुचि इन दिनों संभाग आयुक्त पद में बहुत कम रहती है।

अंकल जजेस सिंड्रोम अब कम से कम हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में तो कमजोर पड़ता दिख रहा है। जस्टिस एससी शर्मा के कर्नाटक तबादले और वरिष्ठता के चलते जस्टिस एसके अवस्थी के इंडस्ट्रियल कोर्ट में जाने के बाद अब इसकी गूंज कम हो गई है। ‌ यह तीन शब्द क्यों इतने ज्यादा चर्चा में रहे यह तो वे लोग ही बता सकते हैं जो या तो इसके कारण फायदे में रहे या फिर जिन का बंटाधार हो गया। वैसे यदि आंकड़ों पर गौर करें तो फायदा पाने वालों का पलड़ा ही भारी निकलेगा। आखिर अपने लोगों की मदद तो सभी करते हैं।

संघ में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अपनी हैसियत का फायदा उठा कई बार ऐसे काम करवा देते हैं जिसके कारण लोगों को संघ पर उंगली उठाने का मौका मिल जाता है। अग्रवाल नगर के दाल मिल कारोबारी गोयल परिवार के खिलाफ आजाद नगर थाने में एक शातिर बदमाश कुलदीप यादव की रिपोर्ट पर जिस तरह प्रकरण दर्ज किया गया और उसमें संघ के इंदौर विभाग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी मददगार बने ; उससे व्यापारी वर्ग में बड़ी नाराजगी है। दबाव इतना तगड़ा था कि पुलिस ने भी बिना सोचे समझे प्रकरण दर्ज कर लिया। पहले यादव को इसी मामले में थाने से कई बार बैरंग लौटाया जा चुका था। गौरतलब यह भी है कि गोयल परिवार संघ के अनुषांगिक संगठन सेवा भारती का बड़ा मददगार माना जाता है।

चलते चलते

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर पूर्व जीतू जिराती का मनोनयन जिस भी कोटे से हुआ हो लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि मालवा निमाड़ में भी पार्टी ने अपनी दूसरी लाइन को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। जरा सूची पर नजर डालिए ऐसे कई और चेहरे नजर आ जाएंगे।

पुछल्ला

अभिभाषक बिरादरी में अपनी दोस्ती के लिए मशहूर जय हार्डिया और सौरभ मिश्रा के बीच इन दिनों जो अबोलापन है उसकी बड़ी चर्चा है। फिलहाल तो इसका कारण स्टेट बार काउंसिल से जुड़ी एक समिति में वरिष्ठ अभिभाषक अजय बागड़िया का मनोनयन माना जा रहा है।‌

अब बात मीडिया की

दैनिक भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल का वह मेल मीडिया जगत में बहुत चर्चा में है, जिसमें उन्होंने अपने संपादकों से कहा है कि यदि उनकी टीम का कोई रिपोर्टर या संपादकीय सहयोगी भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो फिर वह भी खुद पर कार्रवाई तय माने। हरियाणा में वे इसी व्यवस्था के तहत एक संपादक को बर्खास्त कर चुके हैं।

मध्यप्रदेश सरकार और दैनिक भास्कर के बीच जो द्वंद चल रहा है वह अब सार्वजनिक चर्चाओं का विषय बन चुका है। सरकार ने इन दिनों भास्कर के विज्ञापन बंद कर रखे हैं।

कांग्रेस सरकार के दौर में खुद को बड़ा मीडिया प्लानर मानने वाले कमलनाथ के नजदीकी रवि बड़गैयां का अब कहीं अता पता नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी का प्रोजेक्ट जोशहोश बहुत कम समय में नये प्रतिमान स्थापित कर रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार पंकज मुकाती अघोषित तौर पर मृदुभाषी समूह के ग्रुप एडिटर की भूमिका मे आ गए हैं।