भाजपा के वाररूम में राजमाता, अटलजी क्यों नहीं, उठ रहे सवाल..

Shivani Rathore
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भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के बुजुर्ग एवं पितृ पुरुषों के साथ पार्टी के युवा रणनीतिकारों द्वारा जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा है, उसे देखकर तो यह सवाल उठ रहे हैं कि, क्या अब पार्टी अपने पितृ पुरूषों से किनारा करना चाहती है। पार्टी ने पहले लालकृष्ण आडवानी और डा. मुरली मनोहर जोशी सरीखे बुजुर्ग नेताओं को जीते-जी पार्टी के बाहर बैठाया। अब भाजपा के शिल्पकार एवं पितृ पुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं दीनदयाल उपाध्याय, राजमाता सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी को भुला देना चाहती है। वो भी उन महान विभूतियों को, जिन्होंने अत्यंत गहरी और लंबी साधना से भाजपा को गढ़ा। भूखे रहकर, जमीन पर सोकर, लाठियां खाकर, कई-कई दिन जेलों में रहकर और खून-पसीना बहाकर कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देश में भाजपा को खड़ा किया।

यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि, आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इनमें 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। उपचुनावी घमासान की तैयारियों के लिए भाजपा ने भोपाल के बजाय ग्वालियर एक निजी होटल में अपना भव्य चुनावी वॉर रूम बनाया है। पार्टी के रणनीतिकार इसी वार रूम से चुनाव गतिविधियों का संचालन करेंगे। इस वाररूम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया की तस्वीरों को तो जगह दी गई है, लेकिन भाजपा के शिल्पकार और पितृ पुरूष अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया को नजरदांज कर दिया गया है। वो भी तब जबकि ग्वालियर, पार्टी के पितृ पुरूष अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता की कर्म स्थली रही है और सिर्फ जिनके नाम से कभी मध्यप्रदेश और पूरे देश में भाजपा जानी जाती थी।

अटलजी के नाम पर लड़ा 2018 का चुनाव

2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर जमकर वोट मांगे गए थे। लेकिन अब उनको पार्टी द्वारा भुला दिया गया है। वह माधवराव सिंधिया के खिलाफ ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। अटलजी भाजपा के इकलौते पितृ पुरुष हैं जिनका विरोधी भी सम्मान करते थे और जिनकी राजनीतिक दहाड़ ग्वालियर से दिल्ली की संसद तक गूंजती थी।

यह सवाल उठना लाजिमी

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि, जब पार्टी के बड़े नेताओं की तस्वीरें भाजपा के वार रूम में लगाई गई, तो भाजपा के शिल्पकारों की तस्वीरें क्यों नहीं लगाई गई…? क्या ऐसा भाजपा के चुनावी वाररूम की संकल्पना करने वाले पार्टी के रणनीतिकारों से भूलवश हुआ, या फिर सोची-समझी रणनीति के तहत जानबूझकर भाजपा के शिल्पकार अटलजी और राजमाता को वार रूम से जुदा किया गया…अहंकार से उपजी इस नासमझ सोच के साथ कि, हमारे पास अब अटक से कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक सत्ता की ताकत है, सो अब इन मर चुके इन पितृपुरूषों जरूरत क्या है?

पार्टी कार्यकर्ता आहत

पार्टी रणनीतिकारों के इस रवैये से वो कार्यकर्ता और पदाधिकारी आंतरिक रूप से बेहद आहत हैं, जो अटलजी और राजमाता के प्रति श्रद्धा और अहोभाव रखते हैं…पार्टी के एक पदाधिकारी कहते भी हैं कि, अटलजी और राजमाता न होते तो न आज इस विराट-विशाल स्वरूप में भाजपा होती और जिस सत्ता के सुख में हम मंदाध हो रहे हैं, न उस सत्ता तक ही हमारी पहुंच हो पाती…और फिर उपचुनाव के युद्ध में जीतने के जुनून में अपने पितृ पुरूषों को नहीं भुलाया जा सकता… ।

-महेश दीक्षित