अर्जुन राठौर
बात उन दिनों की है जब जनसत्ता अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ था और अखबार में प्रभाष जोशी जी के संपादन में एक नई ऊंचाई प्राप्त कर ली थी उन्हीं दिनों देशभर के पत्रकार इस प्रयास में रहते थे कि उन्हें भी जनसत्ता में या तो नौकरी मिल जाए या फिर उनके आर्टिकल्स छप जाए।
मैंने भी उन्हीं दिनों जनसत्ता में लिखना शुरू किया और कई आलेख मेरे जनसत्ता में प्रकाशित हुए इसी दौरान एक आर्टिकल भोपाल के यूनियन कार्बाइड के बारे में जनसत्ता में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था ज्वालामुखी के ढेर पर बैठा हुआ है भोपाल, यह आर्टिकल भोपाल के पत्रकार राजकुमार केसवानी ने लिखा था राजकुमार केसवानी उन दिनों मेरे संपर्क में थे और वे कमल दीक्षित जी और मनोहर चौरे जोकि शिखर वार्ता के संपादक थे उनके साथ अक्सर मुझे मिला करते थे।
जनसत्ता में केसवानी जी का आलेख छपा तो बहुत कम लोगों ने इसको नोटिस किया लेकिन इस आर्टिकल के प्रकाशन के कुछ ही दिनों बाद भोपाल में विश्व की भीषण त्रासदी घटित हुई सैकड़ों नहीं हजारों लोग मारे गए और भोपाल गैस कांड की गूंज पूरे विश्व में सुनाई दी।
स्वाभाविक था कि राजकुमार केसवानी का आलेख इस कांड की पूर्व भविष्यवाणी साबित हुआ और देखते ही देखते राजकुमार केसवानी अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रकार बन गए उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया जो कि पत्रकारिता का सर्वोच्च सम्मान था। इसके बाद राजकुमार केसवानी का नाम पूरे भारत ही नहीं विश्व में भी एक ऐसे पत्रकार के रूप में लिया जाने लगा जिसने इतनी बड़ी त्रासदी के बारे में पहले से ही लिख दिया था बेहद विनम्र स्वभाव के राजकुमार केसवानी भी नहीं जानते थे कि आखिर उनके खाते में इतनी बड़ी उपलब्धि कैसे आ गई।
इसके बाद राजकुमार केसवानी का नाम पत्रकारिता जगत में बेहद आदर के साथ लिया जाने लगा बाद में उनसे मेरी मुलाकात तब हुई जब वे दैनिक भास्कर के संपादक बनकर इंदौर आए इसी दौरान उनसे कई बार बातें भी हुई लेकिन राजकुमार केसवानी हमेशा मेरे साथ बेहद सहज ढंग से पेश आते थे क्योंकि वे जानते थे की वे जब देश भर की पत्र-पत्रिकाओं के लिए संघर्षशील पत्रकार के रूप में लेखन कर रहे थे तब हम लोग भी इसी राह पर चल रहे थे।
इसके बाद दैनिक भास्कर से उनका इस्तीफा हो गया लेकिन दैनिक भास्कर में फिल्मी यात्रा को लेकर उनका एक स्तंभ शुरू हुआ जो बेहद चर्चित हुआ इसमें वे पुराने जमाने के कलाकारों के बारे में लिखा करते थे और बड़ी शिद्दत से लिखते थे सप्ताह में एक बार रविवार को इस कॉलम जो यादगार लेख प्रकाशित होते थे उन्हें लोग बड़े चाव से पढ़ते थे ।
समय की त्रासदी देखिए पता चला कि भोपाल में केसवानी जी को कोरोना हो गया है और वे जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं इसी बीच आज यह खबर भी आ गई कि केसवानी जी हमारे बीच नहीं रहे अपने सहज स्वभाव के कारण राजकुमार केसवानी जी हमेशा याद आएंगे।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि