राजबाडा 2 रेसीडेंसी

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अरविंद तिवारी

बात शुरू करते है यहां से

एक वक्त ऐसा था जब दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सिर्फ लकीरें खिंची हुई थीं, लेकिन अब तो राजनीतिक तलवारें खिंच गई हैं। इसलिए राजा और महाराज दोनों के लिए इस बार के उपचुनाव एक अलग ही किस्म की जंग हैं, जिसमें कोई हारना नहीं चाहता। ग्वालियर-चम्बल की 16 सीट्स पर दिग्विजय सिंह अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं तो इसकी एक वजह अपने किले को बचाने की भी है। राजा के घर राघौगढ़ और राजगढ़ संसदीय क्षेत्र पर संघ की नजर बरसों से है। अब महाराज के भाजपा में आने से ये राह आसान होती दिख रही है। वहीं राजा इस बिसात में लगे हैं कि गुना से आगे सिंधिया की सल्तनत न बढ़ सके।

मध्यप्रदेश भाजपा में पांच महामंत्रियों की नियुक्ति से बहुत से संकेत मिल गए हैं। जैसा कि पहले ही तय था चली‌ वीडी शर्मा और सुहास भगत की ही। शिवराजसिंह चौहान, नरेंद्रसिंह तोमर, उमा भारती, प्रहलाद‌ पटेल भी अपने समर्थकों को इन दोनों के माध्यम से ही उपकृत करवा पाए। जो नाम इन नेताओं ने आगे बढ़ाए थे, उनमें से भी मौका उन्हीं को मिला जिन्हें वीडी और भगत ने अपने लिए मुफीद माना। इसी का फायदा रणवीर सिंह रावत, भगवानदास सबनानी, कविता पाटीदार और हरिशंकर खटीक को मिला। शरदेंदु तिवारी को वीडी शर्मा के कोटे से जगह मिली। संकेत यह भी मिल गया है कि जल्दी ही आकार लेने वाली कार्यकारिणी में 50 साल से अधिक उम्र के नेता अपने लिए ज्यादा संभावनाएं ना देखें।

कांग्रेस हाईकमान को चिट्ठी के मामले के बाद संकट में फंसे सांसद विवेक तनखा भी फिलहाल राहत की सांस ले सकते हैं। बताते हैं चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले जिन 2- 4 गिने-चुने नेताओं से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने संवाद बनाया उनमें विवेक तनखा भी हैं। यह भी खबर है कि गांधी परिवार को तनखा की लॉयल्टी पर कोई संदेह नहीं है। विवेक तनखा का कश्मीरी पंडित होना भी उनके पक्ष में जा रहा है। भाई- बहन विवेक तनखा को घाघ नेता ना मानकर सुलझा हुआ नेता मानते हैं। इसलिए भले ही कपिल सिब्बल और गुलाम नबी के कहने से विवेक तनखा ने चिट्ठी पर दस्तखत किये लेकिन उनकी सज्जनता और परिवार के प्रति निष्ठा फिलहाल काम आ रही है।

सुमित्रा महाजन भले ही नेपथ्य में चली गई हों लेकिन समर्थकों को या अपने से जुड़े लोगों को अहम भूमिका में देखना चाहती हैं। अभी ताई का पहला टारगेट है अपने कट्टर समर्थक अश्विन खरे को मराठी अकादमी का निदेशक बनवाना। खरे पहले भी इस पद पर रह चुके हैं और इस बार फिर यह पद पाना चाहते हैं। सुमित्रा जी की उन्हें पद दिलवाने में रूचि कितनी ज्यादा है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर से खरे की सिफारिश करने के साथ ही उन्होंने अपने निवास सौजन्य भेंट के लिए पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी इस मामले में मदद मांगी है।‌

निमाड़ में लगातार टूटते विधायकों के बीच कांग्रेस के लिये अच्छी खबर ये है कि खरगोन से विधायक रवि जोशी ने स्पष्ट कर दिया है कि वे पार्टी नहीं छोड़ने वाले। अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी अरुण यादव की लगातार कमजोर होती स्थिति के बाद जोशी अब निमाड़ में ज्यादा सक्रिय होकर अपने जनाधार को बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो निमाड़ की नर्मदा पट्टी में कांग्रेस को एक मजबूत ब्राह्मण नेता मिल सकता है। जोशी को एआईसीसी से जुड़े कुछ दिग्गजों से भी प्रोत्साहन मिला है। सीडब्ल्यूसी की बैठक को लेकर कथित तौर पर घर के भेदी की भूमिका निभाने के बाद वैसे भी अरुण यादव के सितारे गर्दिश में हैं।

वी के सिंह के स्थान पर जब विवेक जौहरी को मध्यप्रदेश के डीजी की कमान सौंपी गई थी तब तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह सुनिश्चित किया था कि जौहरी हर हालत में 2 साल डीजीपी रहेंगे। इसके लिए बकायदा आदेश जारी हुए। संभवतः इसी कारण जौहरी बीएसएफ के डीजी जैसा अहम पद छोड़कर मध्यप्रदेश आने को तैयार हुए थे। अब कमलनाथ मुख्यमंत्री है नहीं और जौहरी की सेवानिवृत्ति 30 सितंबर को है। तब के आदेश का अब क्या होगा इसको लेकर बड़ी उत्सुकता है क्योंकि यदि सेवानिवृत्ति के बाद भी जौहरी पुराने आदेश के क्रम में डीजीपी पद पर बरकरार रहते हैं तो फिर संजय चौधरी और संजय राणा सहित आधा दर्जन अफसर स्पेशल डीजी पद से ही रिटायर हो जाएंगे। वैसे अपने काम और वर्तमान निजाम से अच्छे संबंधों के कारण जौहरी तो बेफिक्र हैं।

जब राकेश साहनी मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव थे और इकबाल सिंह बैंस मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव तब वीरा राणा सामान्य प्रशासन विभाग का सबसे महत्वपूर्ण सेक्शन यानी आईएएस अफसरों की पदस्थापना देखती थीं। साहनी तो सेवानिवृत्ति के बाद भी अहम भूमिका में रहे। बैंस पिछले 15 साल में ज्यादातर मौकों पर बहुत अहम भूमिका में रहे और अब प्रदेश की नौकरशाही में उनके बिना पत्ता भी नहीं खड़कता है। सबको इंतजार अब वीरा राणा के अहम भूमिका में आने का है। वैसे बहुत अच्छे प्रशासनिक करियर को देखते हुए उन्हें कुछ साल बाद प्रदेश के मुख्य सचिव की भूमिका में भी देखा जा सकता है।

एक जमाना था जब राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी 7 से 9 साल में आईपीएस हो जाते थे। अब स्थिति बिल्कुल उलट है। 1995 बैच के अधिकारी इस साल आईपीएस होंगे और बचे हुए 5-6 अगले साल। इस बैच की आईपीएस में पदोन्नति का सिलसिला 4 साल पहले शुरू हुआ था। दरअसल यह कैडर मिस मैनेजमेंट का शिकार हो रहा है और इसकी शुरुआत 5 साल पहले हुई थी। अभी रापुसे से भापुसे में पदोन्नति 25 साल में हो रही है और ऐसा ही रहा तो एसपीएस के कई अधिकारी एडिशनल एसपी स्तर से ही रिटायर हो जाएंगे। इसे दो ही तरीके से सुधारा जा सकता है। पहला यह कि राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में पदोन्नति का कोटा 33 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जाए और दूसरा डायरेक्ट आईपीएस के जो 50 पद पद खाली पड़े हैं, वे राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को दे दिए जाएं।

ध्रुपद संगीत के मामले में विश्व में भोपाल का एक अलग स्थान है। पहले डागर बंधुओं और अब गुंदेचा बंधुओं ने इसे एक अलग पहचान दी। लेकिन गुंदेचा बंधुओं में से एक अखिलेश की लीलाओं के कारण इस ऐतिहासिक परंपरा पर उंगली भी उठ रही है। गुरुकुल की शक्ल में विकसित इनके ध्रुपद संस्थान में विश्व के कई देशों से संगीत सीखने आई छात्राओं ने कदाचरण के जिस तरह के गंभीर आरोप अखिलेश पर लगाए हैं वह गुरुकुल परंपरा पर भरोसा करने वालों के लिए एक बड़ा आघात है। हालांकि बड़े भाई उमाकांत ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और संस्थान की जांच समिति की रिपोर्ट आने तक अखिलेश को कामकाज से दूर कर दिया है। वैसे मामला गंभीर है और इसका नुकसान गुंदेचा बंधुओं को उठाना पड़ सकता है।

 चलते चलते 

ग्वालियर , जबलपुर, रतलाम, होशंगाबाद और बालाघाट सहित मध्यप्रदेश की 6 रेंज में डीआईजी के पद खाली पड़े हैं और पुलिस मुख्यालय में 8 डीआईजी के पास कोई काम नहीं है। वैसे ग्वालियर में जल्दी ही मिथिलेश शुक्ला डीआईजी के रूप में दिख सकते हैं।

राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में पदोन्नति के लिए डीपीसी अब 10 सितंबर को हो जाएगी। इसमें भी फायदे में राप्रसे के अधिकारी ही हैं। पुलिस में जहां 95 बैच के डीएसपी आईपीएस होंगे, वहीं राप्रसे में 98 बैच के कुछ अफसर भी आईएएस हो जाएंगे इनमें मुख्यमंत्री के उप सचिव नीरज वशिष्ठ भी शामिल हैं।

पुछल्ला

परिवहन महकमे के अंदर के ज्ञान गणित से अब मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी अनभिज्ञ नहीं रहेंगे। इस विभाग के सबसे सशक्त किरदार सत्य प्रकाश शर्मा की काट के लिए परिवहन मंत्री ने हाल ही में अपर परिवहन आयुक्त के निजी सहायक पद से रिटायर हुए नीलकंठ खर्चे को अपने निजी स्टाफ में ले लिया है।

अब बात मीडिया की

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति पद से समय के पहले ही विदाई लेने वाले वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी एक नया डिजीटल प्लेटफार्म लेकर आ रहे हैं। इसका ट्रायल शुरू हो गया है।

कोरोना के दौर में तगडी आर्थिक मार खाने के बाद दैनिक भास्कर आत्म निर्भर इंदौर की थीम पर 120 पेज का विशेष अखबार निकालने की तैयारी मे है। यह संस्करण आर्थिक पक्ष मजबूत करने के साथ ही इस दौर की संपादकीय मेहनत को भी दर्शायेगा।

दैनिक भास्कर इंदौर के संपादक मुकेश माथुर जल्दी ही नई भूमिका में दिखेंगे। उनके पद के साथ ही कार्य क्षेत्र में भी इजाफा हो रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार सुधीर गोरे ने नईदुनिया डिजिटल के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया है। वह 7 साल से इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहे थे। गोरे इंडिया टुडे और दैनिक भास्कर में भी सेवाएं दे चुके हैं।

राजधानी के धुरंधर रिपोर्टर धर्मेंद्र पैगवार अब संपादक की भूमिका में आ गए हैं । वे प्रजातंत्र अखबार के भोपाल संस्करण के संपादक हो गए हैं।

कुछ माह पहले नई दुनिया को अलविदा कह चुके पत्रकार अनिल त्रिवेदी जल्दी ही खुद के किसी वेंचर को लेकर मैदान में होंगे। जरूरी नहीं कि यह पत्रकारिता से जुड़ा हुआ ही हो।

राजधानी भोपाल में पहले छात्र नेता और बाद में पत्रकार की भूमिका में रहे धर्म प्रकाश तिवारी को भी कोरोना ने हमसे छीन ली।

दैनिक भास्कर के नेशनल न्यूज रूम के हेड अरुण चौहान सहित करीब एक दर्जन साथियों के कोरोना संक्रमित होने के बाद इस सेक्शन को सील कर वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था कर दी गई है।