राजबाडा 2 रेसीडेंसी

Ayushi
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अरविंद तिवारी

बात यहां से शुरू करते है..

मध्यप्रदेश में कमलनाथ कहते ही रह गये कि; मेरी चक्की बारीक पीसती है, उधर राजस्थान में अशोक गहलोत ने बारीक पीस दिया। गहलोत के शब्दों में; रगड़ दिया…. सत्ता गंवाने के दुख से अभी तक उबर नहीं पाए मध्यप्रदेश के कई कांग्रेसी राजस्थान में सचिन पायलट का ऑपरेशन फेल होता देख सोच रहे हैं; काश! हमारा नेता भी अशोक गहलोत की तरह होता! एक बात और चर्चा में है कि यहां सिंधिया का ऑपरेशन इसलिये सफल हुआ क्योंकि उनके पास पुरुषोत्तम पाराशर जैसा नॉन पॉलिटिकल मैनेजर था, सचिन की टीम में इसका साफ अभाव दिखा।

मंत्रिमंडल के गठन और मंत्रियों के विभागों को लेकर तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की दखल भाजपा को समझ में आ रही थी लेकिन अब जिस तरह संगठन में भी अपने लोगों को अहम भूमिका दिलवाने के लिए सिंधिया सक्रिय हुए हैं, उससे कई नेताओं की नींद उड़ गई। वे परेशान इसलिए भी हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सिंधिया को पूरी तवज्जो दे रहा है। मतलब साफ है,शिवराज सिंह चौहान की परेशानी बढ़ाने के बाद सिंधिया दिल्ली में वीडी शर्मा की भी नींद हराम तो कर सकते हैं।वैसे सूची विनय सहस्त्रबुद्धे के पास पहुंच चुकी है।

तुषार पांचाल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत पसंद करते हैं। इसका कारण यह है कि सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री रहते हुए और मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी जिस तरह तुषार ने उनके लिए मोर्चा संभाला था उसकी खूब तारीफ हुई। इसी का नतीजा है कि तुषार की कंपनी वार रूम को जनसंपर्क विभाग के कामकाज का एक हिस्सा सौंपने की तैयारी हो गई है। लेकिन इसकी प्रक्रिया शुरू होते ही सोशल मीडिया पर जिस तरह का द्वंद शुरू हुआ उससे कहीं यह वार रूम डार्क रूम में कन्वर्ट ना हो जाए। चौंकाने वाली बात यह भी है कि इस मुद्दे पर डॉक्टर हितेश वाजपेई दिल्ली तक दस्तक दे चुके हैं।

एक बैच के चार अफसर और चारों अलग अलग जोन के आईजी ऐसा बहुत कम मौकों पर हुआ है। जी हां…. बैच के भगवत सिंह चौहान, मनोज शर्मा और अनिल शर्मा पहले से ही जबलपुर चंबल और सागर रेंज के आईजी थे और अब अविनाश शर्मा ग्वालियर के आईजी हो गए। चारों ही प्रमोटी अफसर है। वैसे लंबे अंतराल के बाद मध्यप्रदेश के पुलिस जोन एडीजी स्तर के अफसरों से मुक्त होते नजर आ रहे हैं सिवाय भोपाल और शहडोल जोन के बाकी सभी जगह अब आईजी ही कमान संभाले हुए हैं।

खाता न बही जो केसरी कहे वही सही। यह जुमला इन दिनों मध्य प्रदेश के कृषि विभाग में ऊपर से लेकर नीचे तक चल रहा है। विभाग के ही लोगों की बात को सही माना जाए तो कृषि उत्पादन आयुक्त और संचालक कृषि की भूमिका इन दिनों विभाग में गौण हो गई है और सब कुछ प्रमुख सचिव अजीत केसरी ने अपने हाथों में केंद्रित कर लिया है। इस केंद्रीकृत व्यवस्था का केसरी पूरा फायदा भी उठा रहे हैं। अब यह फायदा कैसा है इसकी पड़ताल तो आपको करना होगी। वैसे पुराना अनुभव यह कहता है कि यहां तो फायदा ही फायदा है बस आपमें फायदा उठाने का दम होना चाहिए।

गुना में एक विवादास्पद जमीन को बटाई पर बोने वाले किसान परिवार के साथ घटित घटना का वीडियो जब पूरे देश में प्रसारित हो गया तो सरकार को ताबड़तोड़ गुना के कलेक्टर और एसपी को हटाने का निर्णय लेना पड़ा। तलाश शुरू हुई नए कलेक्टर की तो मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस ने नाम आगे बढ़ाया कुमार पुरुषोत्तम का। चौंकाने वाली बात यह है कि इस नाम पर मुख्यमंत्री तो रजामंद हुए ही, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी बिना विलंब के सहमति दे दी। वैसे कुमार पुरुषोत्तम के काम से खुश होकर उन्हें किसी जिले में भेजने की घोषणा मुख्यमंत्री इंदौर में उद्योगपतियों के एक कार्यक्रम में कुछ दिन पहले ही कर चुके थे।

रणवीर जाटव क्यों रुक गए और गिरिराज दंडोतिया कैसे मंत्री बन गए, इसका एक ही जवाब है निष्ठा और विश्वसनीयता। मंत्रिमंडल विस्तार में अंतिम दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो तीन जूनियर मंत्री बनवाये, उनमें एक ही क्राइटेरिया चला और वह है- निष्ठा और विश्वसनीयता। गिरिराज दंडौतिया को ब्राह्मण होने का भी फायदा मिला। रणवीर जाटव का दावा इसलिये कमजोर हो गया क्योंकि बीच में वे कुछ दिनों से ऐदल सिंह कंसाना और बिसाहूलाल सिंह के साथ घूमने लगे थे और शिवराज से भी मिले थे। बेंगलुरु के रिसोर्ट में अति सक्रियता दिखाना भी कुछ विधायकों के लिए नुकसानदायक रहा।

दिवंगत अनिल दवे का नदी का घर अब सुहास भगत का घर हो गया है… दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा यहीं से संचालित हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी यहां बहुत ज्यादा समय देते हैं। संगठन विस्तार की कवायद को भी यहीं से अंतिम रूप दिया जा रहा है और पद पाने के इच्छुक भाजपा नेता नदी के घर के इर्द-गिर्द ही मंडराते नजर आ जाते हैं। निगम मंडलों में संगठन की दखल की पूरी संभावना ने यहां पर अध्यक्ष उपाध्यक्ष पद पाने की लाइन में लगे लोगों की भीड़ भी बढ़ा रखी है।

जब भतीजे अश्विन जोशी और बेटे पिंटू जोशी के बीच विधानसभा के टिकट को लेकर कशमकश चल रही थी तब कांग्रेस के दिग्गज महेश जोशी कहते थे घी तो थाली में ही गिरेगा न। ठीक वैसी ही स्थिति अब परिवहन आयुक्त की दौड़ में ऐन वक्त पर मुकेश जैन का नाम शामिल होने के बाद उनके और छोटे भाई उपेंद्र जैन के बीच बनती दिख रही है। देखना यह है कि इसमें कोई तीसरा फायदा ना उठा ले जाए। वैसे कुछ लोगो की पसंद विपिन माहेश्वरी भी हो सकते है।

चलते चलते –

बडामलहरा के कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न लोधी जब भाजपा में गये तब एआईसीसी में कुंडली निकाली गई, पुराने रिकार्ड देखे कि लोधी को किस नेता के कोटे से टिकट मिला था। फाइल देखने के बाद दिल्ली के दिग्गजों ने सिर पीट लिया… अब बोलें तो बोलें किसे। कुछ बोलो कमलनाथ जी।

परिवहन आयुक्त रहे वी मधुकुमार से जुड़ा लिफाफा कांड उजागर होने के बाद तलाश उन लोगों की हो रही है जिन्होंने यह वीडियो बनवाया। नाम पदोन्नति पाने मे विफल रहे आगर के एक पूर्व एसपी और वही के एक पत्रकार का सामने आ रहा है। बाकी आप समझ जाओ

पुछल्ला –

मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक जब भाजपा में गए तो कहा गया कि 30 से 35 करोड़ रुपए हर विधायक को मिले। राजस्थान में जब ऐसा हुआ तो हर विधायक को 10 से 15 करोड़ मिलने की बात कही गई। कुछ भी कहो मध्य प्रदेश के विधायकों की कीमत ज्यादा तो है।

अब बात मीडिया की –

इस बार बड़ी खबर दैनिक भास्कर से है। भास्कर में बड़े बदलाव के संकेत हैं। राजस्थान का स्टेट हेड बनने का मुकेश माथुर का सपना जल्दी ही पूरा होता नजर आ रहा है। इंदौर की रग रग से वाकिफ अमित मंडलोई यहां संपादक हो सकते हैं।

इसे समय का ही फेर कहा जाएगा कि जिन अश्विनी मिश्रा के ईटीवी मध्य प्रदेश का सर्वे सर्वा होते हुए सुदेश तिवारी इंदौर ब्यूरो के प्रमुख हुआ करते थे उन्हीं तिवारी के सहारा समय का एमपी सीजी हेड बनने के बाद मिश्रा को उनके अधीन मध्यप्रदेश में एसोसिएट एडिटर की जिम्मेदारी संभालना पड़ रही है।

वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र भजनी की औरंगाबाद से मध्यप्रदेश वापसी हो गई है वे अब भास्कर डिजिटल में महत्वपूर्ण भूमिका में रहेंगे।

नई दुनिया का जिस तेजी से जागरणीकरण हो रहा है उसी का नतीजा है कि 25 से ज्यादा पत्रकारों के कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद संपादक संजय मिश्रा दफ्तर बंद करने को तैयार नहीं हुए। मिश्रा अब अपनी ही संपादकीय टीम के निशाने पर हैं।

कोरोना संक्रमण के दौर में अपना अच्छा खासा सरकुलेशन खोने वाले दैनिक भास्कर ने गाडी पटरी पर लाने के लिए अब रिपोर्टिंग टीम को भी मैदान में उतारा है। यही नहीं भास्कर के संपादकीय साथी सोशल मीडिया पर उस वीडियो को बहुत तेजी से वायरल कर रहे हैं जिसमें अखबार से कोरोना संक्रमण न फैलने की बात कही गई है।

दैनिक भास्कर सागर संस्करण के प्रभारी अनिल कर्मा को लेकर भी कुछ हलचल है।

प्यारे मियां के पकडे जाने के बाद उनके पत्रकार दामाद प्रिंस जुबेर की परेशानी बढ़ गई है। कुछ ऐसी चीजें पुलिस के हाथ लगी है जिनसे आने वाले समय में जुबेर को दिक्कत हो सकती है।

अनादि टीवी को इंदौर में शुरू हुए बमुश्किल 15 दिन हुए हैं और यहां के एक सीनियर रिपोर्टर को लेकर अच्छी खबर नहीं मिल रही है। परेशानी का कारण बिल्डर ओमप्रकाश सलूजा है और मामला प्रबंधन तक पहुंच गया है।

वरिष्ठ साथी अनुपमा सिंह की भी सहारा समय में वापसी हो गई है वह भोपाल में विशेष संवाददाता बनाई गयी है।