अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं
वीडी शर्मा जिस अंदाज में इन दिनों काम कर रहे हैं, उससे मध्यप्रदेश में भविष्य की राजनीति के संकेत मिलना शुरू हो गए हैं। संगठन में शर्मा की असरकारक उपस्थिति का अहसास होने लगा है और सत्ता के फैसलों में उनकी दखल भी दिखने लगी है। संगठन के मामले में शर्मा जिस तरह के फैसले ले रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि इन दिनों मुख्यमंत्री के मुकाबले वे दिल्ली के ज्यादा नजदीक हैं। स्वाभाविक है कि बिना दिल्ली के इशारे के किसी भी नेता के लिए एक ताकतवर मुख्यमंत्री के सामने असरकारक उपस्थिति दिखाना आसान नहीं है। देखते हैं इस उपस्थिति को आगे और कितनी मजबूती मिलती है।
कमलनाथ का अपना एक अलग अंदाज है और इसका अहसास वे समय-समय पर करवाते रहते हैं। जब कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग यह मानकर चल रहा था कि खंडवा उपचुनाव में अरुण यादव की उम्मीदवारी को पार्टी ने हरी झंडी दे दी है और यादव तैयारी में जुट गए हैं, तब अचानक कमलनाथ ने यह कहकर चौंका दिया कि अभी न तो उन्होंने इस मुद्दे पर अरुण यादव से कोई बात की है, न ही यादव ने ऐसा कोई विषय उनके सामने रखा। अपनी परम्परागत शैली में उन्होंने कहा कि हम सर्वे करवा रहे हैं और इसी के आधार पर पार्टी के टिकट का फैसला होगा। उनके इतना कहने के बाद अब यादव की स्थिति क्या होगी, यह आप जान सकते हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद नरेंद्र सिंह तोमर एक बार फिर चर्चा में हैं। फौरी तौर पर देखें तो इस विस्तार में तोमर नुकसान में ही रहें। ग्रामीण विकास जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय उनके हाथ से चला गया और सहकारिता को अलग विभाग बनाने के कारण अब कृषि मंत्रालय भी दो भागों में बंट गया है। ऐसा क्यों हुआ यह कोई समझ नहीं पा रहा है, लेकिन तोमर के लिए संतोष की बात यह है कि ग्वालियर-चंबल की राजनीति में उनके समानांतर खड़े हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को भले ही मंत्री बना दिया गया हो, लेकिन विभाग के मामले में उन्हें भी ज्यादा तवज्जो नहीं मिली।
दमोह उपचुनाव में भाजपा की हार के छींटे प्रहलाद पटेल पर भी पड़े हैं। जयंत मलैया उनके बेटे सिद्धार्थ और मलैया समर्थक कुछ नेताओं पर तो पार्टी की गाज उपचुनाव के नतीजे आने के बाद ही गिर गई थी। ऐसा माना जा रहा था कि प्रदेश नेतृत्व ने पटेल के इशारे पर ही मलैया घराने पर शिकंजा कसा था। अब दिल्ली दरबार की वक्रदृष्टि पटेल पर पड़ी है। पर्यटन और संस्कृति जैसे स्वतंत्र प्रभार वाले महकमे से उनकी रवानगी ऐसा ही संकेत दे रही है। हालांकि इस कद्दावर नेता के लिए भी संतोष की बात यह है कि जिस जल संसाधन महकमे में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया है, वहां बहुत समन्वय के साथ काम करने वाले गजेंद्रसिंह शेखावत मंत्री की भूमिका में हैं।
सिंधिया खेमे के चाणक्य कहे जाने वाले पुरुषोत्तम पाराशर फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के ओएसडी की भूमिका में आ गए हैं। सिंधिया जब पहली बार वाणिज्य राज्य मंत्री बने थे तब से लेकर उनके अब तक के राजनीतिक सफर में पाराशर अहम भूमिका में रहे हैं। पाराशर ने उस दौर में सिंधिया का साथ बहुत मजबूती से दिया था जब लोकसभा चुनाव हारने के बाद वे नैराश्य भाव में थे। सिंधिया के कांग्रेस से भाजपा में जाने के दौर के भी सबसे मजबूत साक्षी और रणनीतिकार पाराशर ही रहे हैं।
कृष्णमुरारी मोघे और अर्चना चिटनीस भले ही कितना जोर मारें, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर जैसे दिग्गज यह लगभग तय कर चुके हैं कि खंडवा लोकसभा उपचुनाव में दिवंगत सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष चौहान को ही मौका दिया जाए। मुख्यमंत्री अलग-अलग फोरम पर इसके संकेत भी दे चुके हैं। जो आकलन सरकार के पास है उसके मुताबिक भाजपा के पास खंडवा के लिए सबसे बेहतर विकल्प हर्ष ही हैं। देखते हैं मुख्यमंत्री और तोमर की इस राय से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत कितना इत्तेफाक रखते हैं।
जोबट उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट के लिए युवक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. विक्रांत की दावेदारी बहुत मजबूत मानी जा रही थी। चर्चा तो यह भी थी कि चचेरी बहन कलावती के निधन के कारण हो रहे इस उपचुनाव के रास्ते विक्रांत की विधानसभा में पहुंचने की हसरत पूरी हो जाएगी, लेकिन विक्रांत ने खुद को इस दौड़ से दूर कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि जोबट के टिकट का फैसला अलीराजपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष महेश पटेल और जोबट की पूर्व विधायक सुलोचना पटेल के बीच होगा। वैसे अंदरखाने की खबर यह है कि यहां कांग्रेस की जीत का सिलसिला सुलोचना की बजाय महेश को मैदान में लाने से बरकरार रह सकता है।
यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक और सीबीआई के डायरेक्टर जनरल रहे ऋषि कुमार शुक्ला जल्दी ही किसी राज्य के राज्यपाल के रूप में नजर आएंगे। राज्यपाल पद के लिए जिन नामों के संबंध में 1 शीर्ष केंद्रीय एजेंसी ने केंद्र सरकार के निर्देश पर तहकीकात की है उसने शुक्ला के नाम को हरी झंडी दे दी है। अब देखना यह है कि शुक्ला को किस राजभवन में मौका मिलता है।
चलते चलते
इंदौर में शराब सिंडिकेट की अगुवाई कर रहे हैं एके सिंह के बेटे का सरकारी गोदामों से बड़ी मात्रा में घटिया गेहूं उठाना और उसे शराब फैक्ट्रियों को सप्लाई करने का बड़ा मामला सामने आ रहा है।
पुछल्ला
जरा पता कीजिए नर्मदा पट्टी के किस जिले के कलेक्टर ने रेत के कारोबार पर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपने गृह जिले के रेत कारोबारियों को अपनी पदस्थापना वाले जिले में बुलाकर खुली छूट दे दी है।
अब बात मीडिया की
दैनिक भास्कर पर आयकर की कार्यवाही के बाद डॉ भरत अग्रवाल कैसे संकटमोचक बनते हैं इस पर सबकी नजरें हैं। भास्कर डिजिटल उत्तर प्रदेश में तीन प्रमुख अखबारों हिंदुस्तान, दैनिक जागरण और अमर उजाला से मुकाबला करने के लिए तैयार हो रहा है। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में चुनाव होना है और भास्कर यहां की ताकत दिखाना चाहता है। राजधानी के दो वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह और प्रकाश भटनागर का बेबाक लेखन इन दिनों बहुत चर्चा में है। डिजीआना समूह के चैनल न्यूज वर्ल्ड ने भोपाल में अपने नए परिसर में ड्राय रन शुरू कर दिया है। प्रदेश के सबसे पुराने साप्ताहिक अखबारों में से एक शनिवार दर्पण जल्दी नए कलेवर में नजर आएगा।