दिनेश निगम ‘त्यागी’
जल्दी भारत की दो तस्वीर देखने को मिल गई। एक, रामनवमी पर खरगोन सहित देश के कई हिस्सों में दंगे हुए। हनुमान जयंती पर दिल्ली में दंगा हो गया। दूसरा, भोपाल में हनुमान जयंती पर मुस्लिमों ने शोभायात्रा और श्रद्धालुओं पर फूल बरसाए। नमाज के समय शोभायात्रा में शामिल लोगों ने मस्जिद के पास से गुजरने पर गाजे-बाजे आदि बंद करा दिए। कुछ हिंदुओं के रमजान में रोजा रखने की खबर सुर्खियां बनी। सवाल है कि हमें खरगोन और दिल्ली के दंगों वाला भारत चाहिए या भोपाल की गंगा-जमुनी तहजीब वाला।
इस तहजीब की वजह से सालो साल बाद भी नफरत के सौदागर न भारत का कुछ बिगाड़ पाए, न ही यहां की मिलजुल कर रहने की संस्कृति का। नमाज के दौरान शोभायात्रा का डीजे इसलिए बंद हुआ क्योंकि उसमें राजनीतिक रोटियां सेंकने की सोच वाला कोई नेता नहीं था और मुसलमानों ने शोभायात्रा पर फूल बरसाने के बाद रोजे तोड़े क्योंकि वहां भी अल्ला की इबादत में श्रद्धा रखने वाले शामिल थे। क्या आपसी सौहार्द की यह मशाल नेताओं के हाथ से छीनकर हर धर्म के वास्तविक अनुयायी अपने हाथ में नहीं ले सकते, जिससे भारत अमन-चैन और गंगा-जमुनी तहजीब के लिए दुनिया तके उदाहरण बने। क्या नफरत के सौदागर इससे कोई सबक लेंगे?
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कैलाश के ट्वीट पर दिग्विजय जैसा विवाद नहीं….
कट्टरता के मामले में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह से उन्नीस नहीं हैं। फर्क यह है कि कैलाश पर कट्टर हिंदुत्व की छाप है और दिग्विजय पर मुस्लिम परस्त होने की। खरगोन में दंगे पर दोनों नेताओं ने अलग-अलग ट्वीट किए। दोनों ने जिन फोटों का उपयोग किया वे खरगोन से संबंधित नहीं थे। दिग्विजय के ट्वीट के साथ बिहार का फोटो था जिसमें कुछ युवक एक मस्जिद में चढ़कर भगवा झंडा लगा रहे थे। कैलाश के ट्वीट के फोटों में एक दाढ़ी वाले मुसलमान को आपत्तिजनक भाषा बोलते हुए दिखाया गया था।
मजेदार बात यह है कि दिग्विजय ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया बावजूद इसके उनके खिलाफ कई शहरों में प्रकरण दर्ज हो गए। विवेक तन्खा को अपवाद के तौर पद छोड़ दें तो कांग्रेस का कोई नेता उनके साथ खड़ा नजर नहीं आया। दूसरी तरफ कैलाश के ट्वीट पर कोई हंगामा, विवाद नहीं। उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट भी नहीं किया। दिग्विजय ने उनके खिलाफ भी प्रकरण दर्ज करने की मांग की लेकिन कोई असर नहीं। कांग्रेस के सवाल पर भाजपा प्रवक्ता उमेश शर्मा सामने आए और बोले कि हम अपने नेता और उनके ट्वीट के साथ खड़े हैं लेकिन कांग्रेस ने तो दिग्विजय को अकेला छोड़ दिया। इसे क्या कहेंगे?
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कमलनाथ के साफ्ट हिंदुत्व पर अपनों का ग्रहण….
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसी मेहनत भले न कर पाएं लेकिन उन्हें जनता को प्रभावित करने वाले मुद्दों की पहचान है। यह महारत उन्हें राजनीतिक अनुभव और मैनेजमेंट में कुशल होने के कारण हासिल है। कमलनाथ को मालूम है कि खुद को हिंदू विरोधी या मुस्लिम परस्त दिखाकर भाजपा को मात नहीं दी जा सकती। इसीलिए उन्होंने छिंदवाड़ा में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा स्थापित कराई और खुद को उनका सबसे बड़ा भक्त दिखाने की कोशिश करते हैं। मुख्यमंत्री रहते उन्होंने गायों के संरक्षण, गौशालाओं के साथ राम वन गमन पथ के निर्माण पर खास दिलचस्पी ली थी।
आज के माहौल में भी कमलनाथ ने रामनवमी और हनुमान जयंती को लेकर कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश जारी किए। पर साफ्ट हिंदुत्व की उनकी मुहिम पर पार्टी के अंदर से उनके अपने ही ग्रहण लगा रहे हैं। रामनवमी और हनुमान जयंती संबंधी निर्देश पर कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने ही विरोध कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा ही सरकुलर ईद और रमजान के लिए भी जारी किया जाना चाहिए। रही सही कसर दिग्विजय के खरगोन दंगे पर किए गए ट्वीट ने पूरी कर दी। साफ है, कमलनाथ के साफ्ट हिंदुत्व पर ग्रहण लग चुका है।
यह संकल्प लेकर फंस तो नहीं गई साध्वी उमा….
भाजपा की तेजतर्रार नेत्री साध्वी उमा भारती पिछले कुछ समय से अपने निर्णयों से पार्टी की प्रदेश सरकार को तो असहज करती ही हैं, खुद भी फंस जाती हैं। शराबबंदी उनका ऐसा पहला अभियान था, जिसे लेकर उन्हें बार-बार बैकफुट पर आना पड़ा। एक शराब दुकान पर पत्थर फेंकने के बाद से वे शांत हैं। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक कथन को आधार बनाया। अब वे रायसेन किले में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर का ताला खुलवाने और जलाभिषेक के मसले पर फंस गई।
रामनवमी के अगले दिन उमा वहां पहुंची और संकल्प ले बैठीं कि जब तक मंदिर का ताला नहीं खुलता और वे जलाभिषेक नहीं कर लेतीं, तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। यह संकल्प लेकर उमा लौट तो आर्इं लेकिन उनका संकल्प कैसे पूरा हो, यह संकट है। कोई इस दिशा में प्रयास करता नजर नहीं आता। उमा को अन्न ग्रहण कराने का भी कोई कोशिश नहीं हो रही। उमा इस संकल्प से कैसे उबरती हैं, इस पर सभी की नजर है। लगता है राजनीति में अपनी वापसी के लिए जल्दवाजी में वे ऐसा कुछ कर बैठती हैं, जो उनके लिए ही मुसीबत बन जाता है। इससे बिना कुछ किए भाजपा में उन नेताओं की मुराद पुरी हो जाती है, जो उमा की प्रदेश की राजनीति में वापसी के विरोधी हैं।
धर्म के जरिए लोगों को जोड़ने की अलग राह….
कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे भी हैं जो धर्म के जरिए लोगों को जोड़ने की कोशिश में भाजपा से चार कदम आगे हैं। इनमेंं कांग्रेस के दो नेताओं का जिक्र जरूरी है। इनमें एक हैं इंदौर से कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला और दूसरे भोपाल में प्रदेश कांग्रेस के सचिव मनोज शुक्ला। संजय शुक्ला अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों को वार्डवार इकट्ठा कर ट्रेन से अयोध्या ले जाते हैं। राम लला के दर्शन कराते हैं। यात्रा का पूरा खर्च खुद ही उठाते हैं। दूसरे मनोज शुक्ला संगठन में पदाधिकारी के अलावा कुछ नहीं है, सिर्फ भोपाल की नरेला विधानसभा सीट से दावेदार हैं।
मनोज नरेला क्षेत्र के वार्डों से महिलाओं का समूह इकट्ठा करते हैं। सभी को मथुरा ले जाकर गिरिराज के दर्शन और परिक्रमा कराते हैं। मनोज भी श्रद्धालुओं का पूरा खर्च खुद वहन करते हैं। एक जत्थे में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कई सैकड़ा होती है। मनोज ने हनुमान जयंती पर लोगों को फ्री पानी उपलब्ध कराने की भी शुरुआत की है। है न धर्म के जरिए लोगों को अपने साथ जोड़ने की अलग राह। ऐसे नेताओं की बदौलत ही बड़ी तादाद में हिंदू वोट कांग्रेस के पक्ष में भी गिरता है। कॉश, ऐसे प्रयास कांग्रेस का हर नेता करता। आखिर, धर्म और ईश्वर पर किसी का कॉपीराइट तो नहीं है न।