राज-काज : ईवीएम में इनकी किस्मत का फैसला भी कैद

Suruchi
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दिनेश निगम ‘त्यागी’

प्रदेश की एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव इस मायने में अलग हैं कि इस बार ईवीएम सिर्फ उनके भाग्य का फैसला नहीं करेगी जो चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि इनमें उनकी राजनीतिक किस्मत भी कैद है जो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा जैसे नेताओं की। ये नेता किसी सीट से प्रत्याशी नहीं है लेकिन ये हर सीट में चुनाव लड़ा रहे हैं। पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने की जवाबदारी इनके कंधों पर है। इसी कारण इन उप चुनावों में आम चुनाव जैसी ताकत झोंकी गई। 2 नवंबर को जब ईवीएम से नतीजे निकलेंगे तो प्रत्याशियों के साथ इन नेताओं की भी जीत-हार होगी।

इनकी राजनीतिक सेहत पर भी असर पड़ेगा। यह चर्चा पहले से है कि कमलनाथ पर प्रदेश छोड़कर केंद्र की राजनीति में जाने का दबाव है लेकिन वे तैयार नहीं है। यदि नतीजे कांग्रेस के अनुकूल नहीं आए तो उन्हें प्रदेश से हटाकर केंद्र की राजनीति में ले जाया जा सकता है या प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष में से कोई एक पद लेकर उनका राजनीतिक कद घटाया जा सकता है। दूसरी तरफ उप चुनावों के नतीजे मुख्यमंत्री एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का कद घटा-बढ़ा सकते हैं।

हार-जीत का दारोमदार जातीय समीकरणों पर-

एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के लिए मतदान की तैयारी में निर्वाचन आयोग से ज्यादा राजनीतिक दल सक्रिय रहे। आयोग को मतदान कराना था और भाजपा-कांग्रेस को वोट हासिल करना थे। प्रचार थमने के बाद हर दल जातीय समीकरण साधने की कोशिश में जुटा। प्रथ्वीपुर में भाजपा द्वारा सपा के शिशुपाल यादव को प्रत्याशी बनाने से अन्य वर्ग नाराज दिखे। सबसे निर्णायक ब्राह्मण हैं। इन्हें साधने के लिए गोपाल भार्गव के साथ पूर्व विधायक अनीता नायक ने मेहनत की।

रैगांव में कांग्रेस के पक्ष में ब्राह्मण और काछी लामबंद हो रहे थे तो भाजपा ने इसकी तोड़ ढूंढ़ने की कोशिश की। खंडवा और जोबट में आदिवासी निर्णायक भूमिका में हैं। इनके संगठन जयस के मुखिया हीरालाल अलावा कांग्रेस के साथ रहे लेकिन अन्य गुट कांग्रेस के खिलाफ। दोनों जगह भितरघात के भी हालात रहे। खंडवा में कांग्रेस ने अरुण यादव को घर बैठाया तो भाजपा ने नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे को। जोबट में भाजपा में कांग्रेस से आर्इं सुलोचना रावत को टिकट देने से नाराजगी दिखी और कांग्रेस में कलावती भूरिया का भतीजा असंतुष्ट रहा। दोनों तरफ से डैमेज कंट्रोल की कोशिश हुई। मतदान हो चुका है। नतीजे बताएंगे कि कौन कितना सफल रहा?

चर्चा में अव्वल रहीं रैगांव की भाजपा प्रत्याशी-

एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव में दर्जनों प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहने का रिकार्ड बनाया रैगांव विधानसभा सीट की भाजपा प्रत्याशी प्रतिमा बागरी ने। पहले वे राज्य सरकार के एक मंत्री के कारण चर्चा में रहीं। मंत्री ने उन्हें दो अवसरों पर असहज किया था। दूसरी बार भाजपा की फायरब्रांड नेत्री साध्वी उमा भारती की नसीहत के कारण चर्चा में रहीं। उमा के सामने प्रतिमा जब लोगों का अभिवादन ज्यादा झुककर कर रही थीं तो उमा ने मंच से ही नसीहत दे डाली कि अभी उतना ही झुको, जितना चुनाव जीतने के बाद झुक सकती हो। यह वीडियो जमकर वायरल हुआ। फिर एक अवसर ऐसा आया जब प्रतिमा को फूट-फूट कर रोना पड़ गया।

एक अखबार में की गई टिप्पणी के कारण भी प्रतिमा ने सुर्खियां बटोरी। भाजपा महिला मोर्चा ने इसे महिलाओं का अपमान बताया और प्रदर्शन तक किया। प्रतिमा बागरी रैगांव से पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा नेतृत्व ने अपने वरिष्ठ नेता स्वर्गीय जुगल किशोर बागरी के परिवार का दावा खारिज कर प्रतिमा पर भरोसा जताया है। वे इसमें कितना खरी उतरीं यह उप चुनाव के नतीजे बताएंगे। हां! सुर्खियों में रहने के मामले में वे नतीजे आने से पहले ही बाजी मार ले गई।

आखिर, कांग्रेस छोड़कर क्यों गए सचिन बिरला-

खंडवा लोकसभा क्षेत्र की बड़वाह विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक सचिन बिरला ने प्रचार अभियान के अंतिम दौर में ठीक उसी तरह पार्टी को झटका दिया, जैसा सतना जिले के मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने किया था। नारायण सतना लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर अजय सिंह की हार तय की थी और सचिन ने खंडवा लोकसभा सीट के उप चुनाव के दौरान ऐसा किया। नारायण की वजह अजय सिंह से नाराजगी थी लेकिन सचिन को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। एक तर्क है कि चूंकि कमलनाथ ने अरुण यादव को टिकट नहीं मिलने दिया और सचिन उनके आदमी हैं, लिहाजा अरुण का संकेत पाकर सचिन ने कांग्रेस छोड़ दी।

दूसरा, कमलनाथ ने जब से प्रदेश कांग्रेस की बागडोर संभाली तब से ही पार्टी को नहीं संभाल पा रहे हैं। नाराजगी इस कदर है कि उनके नेतृत्व के चलते अब तक 27 कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। यह उनकी नेतृत्व क्षमता और प्रबंधन पर सवाल खड़े करता है। तीसरी वजह सचिन का डर बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सचिन कई मामलों में फंसे हैं, उनसे बचने के लिए उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा का दामन थामा है। सच जो भी हो लेकिन सचिन के कांग्रेस छोड़ने के कारणों को लेकर अटकलें थम नहीं रही हैं।

कब थमेगा उप चुनावों का यह सिलसिला-

उप चुनावों की एक खेप निबटती नहीं, अगले उप चुनाव की जमीन तैयार हो जाती है। यह विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार जारी है। एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के इन उप चुनावों को छोड़ दें तो इनकी आधारशिला राजनीतिक दल खासकर भाजपा ही रखती है। पहले सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस तोड़ी गई। इसके बाद उप चुनाव के दौरान पक्ष में माहौल बनाने के लिए दो विधायकों का दल बदल कराया गया। मौजूदा उप चुनाव कोरोना से एक सांसद एवं तीन विधायकों के निधन के कारण हुए।

इन उप चुनावों की प्रक्रिया निबट भी नहीं पाई और भाजपा ने खंडवा लोकसभा सीट के उप चुनाव में जीत के उद्देश्य से एक कांग्रेस विधायक को फिर तोड़ लिया। इससे 6 माह के अंदर एक विधानसभा सीट का उप चुनाव फिर तय हो गया। मजेदार बात यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कांग्रेस के एक दर्जन विधायक अब भी उनके संपर्क में हैं। अर्थात बात बन गई तो और विधायक टूट सकते हैं। सवाल यह है कि आखिर उप चुनावों का यह सिलसिला कब थमेगा? इससे देश का पैसा बरबाद होता है। लोकतंत्र के लिहाज से भी यह आदर्श स्थिति नहीं है। क्या कोई ऐसी व्यवस्था नहीं होना चाहिए कि दलदबल पर पूरी तरह रोक लग जाए?