राज-काज: ‘एक ताली’ के हकदार तो हैं जयंत मलैया….

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

दमोह के लिए टिकट देने में पूर्व मंत्री जयंत मलैया की राय को दिरकिनार किया गया। पार्टी प्रत्याशी राहुल लोधी को जिताने के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने डेरा डाला। सरकार और संगठन के लिए अलग-अलग दो चुनाव प्रभारी भूपेंद्र सिंह एवं गोपाल भार्गव बनाए गए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दौरे कर रहे थे और डेढ़ दर्जन से ज्यादा मंत्रियों ने क्षेत्र में डेरा डाल रखा था। दमोह सांसद व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने राहुल के लिए भरपूर मेहनत की।

बावजूद इसके दमोह में राहुल कांग्रेस के अजय टंडन से 17 हजार से भी ज्यादा मतों के अंतर से हार गए। बड़ी हार हुई तो हार का ठीकरा किसी न किसी के सिर फूटना ही था। इसके लिए भाजपा के पूर्व मंत्री जयंत मलैया को चुन लिया गया। बेटे सिद्धार्थ सहित चार मंडल अध्यक्षों को पार्टी से निलंबित कर दिया गया और जयंत मलैया को नोटिस थमा दिया गया। मलैया और उनके बेटे का राजनीतिक भविष्य क्या करवट लेता है, यह कोई नहीं जानता लेकिन कार्रवाई कर भाजपा ने यह स्वीकार कर लिया कि एक तरफ समूची भाजपा और दूसरी तरफ अकेले जयंत मलैया, सब पर भारी पड़ गए। लिहाजा, मलैया के लिए ‘एक ताली’ तो बनती है।

विश्नोई का सवाल कितना जायज-नाजायज….

प्रदेश में जितनी चर्चा कोरोना कहर की है, दमोह उप चुनाव में भाजपा की हार की उससे कम नहीं। भाजपा नेतृत्व ने जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ सहित चार मंडल अध्यक्षों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया और जयंत को नोटिस थमाया तो भाजपा की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई। हर मसले पर अपनी बेबाक राय रखने वाले पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि ‘क्या दमोह उप चुनाव में हार की जवाबदारी टिकट बांटने वाले और चुनाव प्रभारी भी लेंगे?’

चर्चा यह है कि विश्नोई ने जो सवाल उठाया वह कितना जायज है और कितना नाजायज? एक पक्ष का कहना है कि विश्नोई मंत्री नहीं बन पाए इसलिए लगातार सरकार और संगठन का विरोध कर रहे हैं जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि विश्नोई का सवाल तो जायज है। इस बीच कार्रवाई पर मलैया का भी जवाब आया। उन्होंने कहा कि भाजपा सिर्फ मेरे वार्ड में नहीं हारी बल्कि खुद राहुल लोधी अपना वार्ड नहीं जीत सके। जहां दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और नगर पालिका अध्यक्ष रहते हैं, वहां भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। फिर हार का ठीकरा सिर्फ मेरे सिर क्यों? सवाल यह भी जायज है पर क्या पार्टी नेतृत्व इन जायज सवालों के जवाब देगा या मलैया को बलि का बकरा ही बनाया गया।

चंद्रभान जैसा तो नहीं होगा राहुल का हश्र….

राहुल लोधी की हार से दमोह के एक और कद्दावर लोधी नेता चौधरी चंद्रभान सिंह की याद ताजा हो गई। जब तक वे भाजपा में थे, अजेय थे। उन्होंने कभी हार का मुंह नहीं देखा था। अचानक नाराज हुए और भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने उन्हें हाथोहाथ लिया लेकिन इसके बाद वे एक अदद जीत के लिए तरस गए। कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव वे मामूली अंतर से हारे, इसके बाद हार का अंतर बढ़ता चला गया। चंद्रभान कई चुनाव जीत चुके थे, इसलिए उनकी राजनीतिक सेहत पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा लेकिन राहुल तो कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव जीते थे।

28 सीटों के उप चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस को अपनी मां कहकर कांग्रेस में ही जीने-मरने की कसम खा रहे थे। अचानक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उप चुनाव में टिकट दिया तो करारी शिकस्त मिली। विडंबना देखिए, खुद जिस पार्टी को मां कहते थे उसे छोड़कर भाजपा में आए और अब कह रहे हैं कि मलैया ने भाजपा को अपनी मां कहा था, उससे ही गद्दारी कर डाली। इसे ही कहते हैं राजनीति। राहुल पहली बार विधायक बने थे, कहीं इनका हश्र भी चंद्रभान जैसा न हो और ये एक अदद जीत के लिए तरस जाएं। हालांकि ये सिर्फ कयासबजी है।

दमोह जीत का श्रेय कमलनाथ को क्यों नहीं?….

सरकार जाने के बाद 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में पराजय के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को जिम्मेदार ठहराया गया था। यह स्वाभाविक भी था। अब जब दमोह उप चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है तो इसका श्रेय भी कमलनाथ को ही मिलना चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा। पार्टी के अंदर इस पर एक राय नहीं है। एक तबका निश्चिततौर पर जीत का श्रेय कमलनाथ की रणनीति को दे रहा है लेकिन दूसरा पक्ष इसके खिलाफ है। इस पक्ष कहना है कि दमोह की जीत में कमलनाथ की कोई भूमिका नहीं है।

दमोह में कांग्रेस की जीत के तीन किरदार हैं, भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी, कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन और पूर्व मंत्री जयंत मलैया। मलैया और उनके बेटे पर कार्रवाई कर भाजपा ने भी बता दिया कि दमोह में कांग्रेस मलैया के भितरघात की बदौलत जीती। मलैया चूंकि दमोह के स्थापित नेता थे, इसलिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस से आए राहुल को पसंद नहीं किया। तीसरा कांग्रेस के अजय टंडन दो चुनाव हार चुके थे। कांग्रेस का कार्यकर्ता राहुल लोधी की गद्दारी से नाराज था और टंडन के प्रति सहानुभूति थी। अजय टंडन अनुभवी नेता भी हैं। लिहाजा, दमोह में कांग्रेस बाजी मारने में सफल रही। पर ऐसा सोचना कमलनाथ के साथ नाइंसाफी हुई न?

काश! हर दल में हो लुनावत जैसा एक नेता….

राजनीतिक दलों में विजेश लुनावत जैसे नेता विरले मिलते हैं। अचानक कम उम्र में वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। वे न सांसद, विधायक थे और न ही सरकार में मंत्री। कभी निगम-मंडल अध्यक्ष भी नहीं रहे। भाजपा में पहले वे मीडिया प्रभारी थे और बाद में प्रदेश उपाध्यक्ष रहे। फिर भी लुनावत एक मात्र ऐसे नेता थे, जिन्हें मीडिया का बड़ा वर्ग पसंद करता था। छोटे, बड़े, मझोले अखबारों और इलेक्ट्रिानिक चैनलों के पत्रकार उनके पास डेरा जमाए रहते थे। मैं उनका पड़ोसी था, कभी उनके यहां ज्यादा बैठने नहीं गया लेकिन उनकी कार्यशैली का कायल था।

ऐसे समय जब नेता मीडिया से दूर भागते हैं, तब शायद ही कोई ऐसा पत्रकार हो जिसने लुनावत से कोई काम बोला हो और उन्होंने पूरा प्रयास न किया हो। रंगपंचमी पर हर साल वे खुद फोन कर मीडिया कर्मियों को बुलाते थे। कार्यक्रम में भाजपा के नेता न के बराबर होते थे। भाजपा के वे चुनावी रणनीतिकार थे। जब उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ रही थी तब पहली बार वे अनिल दबे के साथ भाजपा की चुनावी रणनीति बनाने की टीम में शामिल थे। इसके बाद उन्हें हर चुनाव में याद किया गया। उन्होंने पार्टी को कभी निराश भी नहीं किया। कॉश! हर दल में एक ऐसा नेता हो, जो नेताओं, कार्यकर्ताओं का ही नहीं, पत्रकारों का भी चाहता हो । लुनावत जी को पत्रकार विरादरी की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।