राज-काज: कोरोना या चुनावी ‘क्वारेंटाइन’ हुए मलैया?….

Ayushi
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Corona

दिनेश निगम ‘त्यागी’

दमोह उप चुनाव में भाजपा से राहुल लोधी एवं कांग्रेस से अजय टंडन मैदान में हैं, बावजूद इसके सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में कोई है तो वे हैं वरिष्ठ नेता जयंत मलैया। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि मलैया दमोह ही नहीं, प्रदेश के कद्दावर नेताओं में से हैं। उनके हर दल के नेताओं से मधुर संबंध हैं। यह पहला अवसर है जब वे मैदान में नहीं है। चर्चा में रहने की ताजा वजह उनका ‘क्वारेंटाइन’ हो जाना है। उन्होंने खुद कहा है कि उनमें और उनकी पत्नी में डाक्टर को कोरोना के लक्षण दिखे, इसलिए डाक्टर की सलाह पर उन्होंने खुद को ‘क्वारेंटाइन’ कर लिया है।

बस क्या था, अटकलें शुरू हो गर्इं। बहस छिड़ गई कि मलैया ‘कोरोना क्वारेंटाइन हैं या चुनावी’? बहस स्वाभाविक भी है। लगातार जीत दर्ज करने वाले मलैया तीन दशक में पहली बार दमोह से चुनाव नहीं लड़ रहे। भाजपा ने कांग्रेस से भाजपा में आए राहुल को टिकट दे दिया। लिहाजा, मलैया के साथ उनके बेटे सिद्धार्थ भी नाराज हो गए। जैसा कि भाजपा में होता है, पार्टी नेतृत्व ने उन्हें किसी तरह मना लिया। जयंत मलैया का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल कर लिया गया। अचानक जब प्रचार अभियान ने गति पकड़ ली तो मलैया ‘क्वारेंटाइन’ हो गए। लिहाजा, सवाल उठना थे, तो उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही कि अपने समर्थकों को मैसेज देने के लिए यह चुनावी क्वारेंटेन तो नहीं? इस बहाने वे प्रचार अभियान से दूर तो नहीं रहना चाहते? बता दें, अब तक उनके परिवार में कोई पॉजिटिव नहीं आया क्योंकि कोरोना की उनकी जांच रिपोर्ट ही अब तक नहीं आई।

नाराज होकर ‘कोप भवन’ में ज्योतिरादित्य?….
– खबर सच हो या गलत, लेकिन चौंकाने वाली है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा नेतृत्व से नाराज हैं। नाराजगी का आलम यह है कि उन्होंने प्रदेश का तीन दिवसीय दौरा निरस्त कर दिया। यह भी तय किया है कि अब वे दमोह विधानसभा उप चुनाव के प्रचार अभियान में हिस्सा नहीं लेंगे। नाराजगी की ताजी वजह पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव एवं दमोह सीट का उप चुनाव है। सिंधिया का अपना आकर्षक आभामंडल है। जोशीला भाषण देते हैं।

बावजूद इसके अब तक चुनाव वाले किसी प्रदेश में उन्हें नहीं बुलाया गया। पश्चिम बंगाल स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें दो चरणों के चुनाव निबट जाने के बाद शामिल किया गया। सूची में वे शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय तथा अरविंद मेनन से भी नीचे हैं। प्रचार के लिए अब तक उनका कोई कार्यक्रम तय नहीं हुआ। कहां वे प्रदेश में खुद को मुख्यमंत्री मटेरियल समझते हैं। केंद्रीय मंत्री बनने की कतार में हैं, लेकिन दमोह के स्टार प्रचारकों की सूची में भी ज्योतिरादित्य को दसवें नंबर पर जगह मिली। खबर है भाजपा नेतृत्व के इस रवैए से सिंधिया नाराज होकर कोप भवन में जा बैठे हैं। भाजपा की राजनीति की चौंसर में सिंधिया कहां फिट बैटते हैं, इस पर सभी की नजर है।

लगातार कम हो रही कमलनाथ की धमक….
– प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की धमक पार्टी नेतृत्व के सामने लगातार कमजोर पड़ रही है। पहले उन्हें पश्चिम बंगाल उप चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया गया। दस दिन बाद ही बिना प्रचार में बुलाए सूची से नाम हटा भी दिया गया। प्रदेश कांग्रेस का यह तर्क गलत साबित हुआ कि दमोह उप चुनाव में व्यस्तता के चलते कमलनाथ का नाम सूची से हटा, क्योंकि कमलनाथ दमोह में भी सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। इतना ही नहीं असम विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की स्टार प्रचारकों की सूची में भी कमलनाथ का नाम नहीं है, फिर भी वे प्रचार अभियान में हिस्सा लेने असम चले गए।

हालांकि खबर है कि उनके एक समर्थक ने यह दौरा प्रायोजित कराया ताकि मैसेज ये न जाए कि कांग्रेस में कमलनाथ की धमक कमजोर पड़ गई है। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि पश्चिम बंगाल स्टार प्रचारकों की सूची से नाम हटने पर विपक्ष कमलनाथ की राजनतिक हैसियत पर सवाल खड़े कर रहा था। अब सवाल उठ रहा है कि जब दमोह के कारण कमलनाथ का नाम पश्चिम बंगाल स्टार प्रचारकों की सूची से हटा था तो वे दमोह में उप चुनाव के चलते असम कैसे चले गए? बहरहाल, सच-गलत जो भी हो लेकिन कमलनाथ लगातार चर्चा में हैं।

मांगने पर एक को ‘चप्पल’ दूसरे को ‘जूता’….
– दमोह का उप चुनाव भाजपा-कांग्रेस से अलग कुछ अन्य प्रत्याशियों की वजह से रोचक हो रहा है। आमतौर पर राजनीतिक दलों, नेताओं को सबक सिखाने के लिए कभी जूते फेंके जाते हैं, कभी चप्पल, कभी काली स्याही तो कभी टमाटर। इससे इतर दमोह में नया प्रयोग होने जा रहा है। यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे वैभव सिंह लोधी ने ‘चप्पल’ और मगन लाल ने ‘जूता’ चुनाव चिन्ह मांग कर लिया है। हिंडोरिया राजघराने से ताल्लुक रखने वाले वैभव देश भर में चले पिछड़ा वर्ग आंदोलन में मुख्य भूमिका में रहे हैं।

वे भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी के चचेरे भाई हैं। उप चुनाव में वैभव दोनों हाथों में ‘चप्पल’ लेकर वोट मांग रहे हैं। मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि ‘चप्पल’ पर वोट देकर राजनैतिक व्यवस्था को सुधारने में मदद करें। उनका यह भी कहना है कि राहुल के पार्टी बदलने से लोधी समाज की साख को धक्का लगा है। दूसरे निर्दलीय मगन लाल ने ‘जूता’ चुनाव चिंह लिया है। इनके निशाने पर भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए राहुल ही हैं। साफ है, कांग्रेस राहुल को गद्दार ठहराकर प्रचार अभियान चला ही रही है, ये निर्दलीय भी इस मसले पर कांग्रेस की मदद कर रहे हैं। नतीजा जो भी आए पर उप चुनाव रोचक हो रहा है।

‘अप्रैल फूल’ की आड़ में हमला कितना जायज….
– राजनीतिक दलों के नेता विरोध की राजनीति में इतना आगे निकल जाते हैं कि बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हैं। जैसे, कांग्रेस ने प्रदेश कार्यालय में एक अप्रैल को ‘किसान हेल्प सेंटर’ की शुरुआत की। उद्देश्य है, किसान अपनी समस्याएं हेल्प सेंटर में पहुंचाएंगे और कांग्रेस उनकी बात सरकार तक पहुंचा कर उनका निराकरण कराएगी, या उनकी लड़ाई लड़ेगी। इस पर भाजपा के कुछ नेताओं की बेतुकी प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि ‘किसान हेल्प सेंटर’ चूंकि एक अप्रैल को शुरू किया गया है इसलिए कांग्रेस ने किसानों को ‘अप्रैल फूल’ अर्थात बेवकूफ बनाया।

तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि सरकार ने एक अप्रैल को जो निर्णय लिए वे सब बेवकूफ बनाने के लिए थे। जैसे, एक अप्रैल को ही अवकाश के दिन भी वैक्सीनेशन का निर्णय लिया गया। एक अप्रैल को ही नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि इंदौर सहित कोई भी निकाय टैक्स में बढ़ोत्तरी नहीं करेगा। एक अप्रैल को ही केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने ब्याज की घटाई दरों को वापस लेने की घोषणा की। तो क्या यह माना जाए कि ये सभी घोषणाएं भी ‘अप्रैल फूल’ थीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसीलिए नेताओं को प्रतिक्रिया देते समय सावधानी बरतनी चाहिए।