राज-काज : बिना देर किए ‘एक्शन मोड’ में भाजपा नेतृत्व

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

निकाय चुनाव के बाद प्रदेश भाजपा जश्न मना रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बधाई भेज दी है। बावजूद इसके नतीजों ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को चौंका दिया है। 7 नगर निगमों में हार और दो में किसी तरह जीत के बाद नेतृत्व चिंतन, मनन और मंथन के मूड मे आ गया है। पार्टी के एक्शन मोड में आने की शुरूआत भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश का मुख्यालय भोपाल से मुंबई करने से हुई है। इसके साथ पहली बार मप्र-छग के मध्य क्षेत्र का क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को बनाया गया है।

निकट भविष्य में कुछ और नियुक्तियां भी हो सकती हैं। संभागीय संगठन मंत्रियों की वापसी भी संभावित है, क्योंकि प्रदेश नेतृत्व बगावत को नहीं रोक सका। बड़ी संख्या में नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना पड़ी। कटनी में भाजपा की बागी ही निर्दलीय मैदान में उतर कर महापौर बन गईं। मालवा-निमाड़ को छोड़ दें तो भाजपा को चंबल-ग्वालियर के अलावा विंध्य एवं महाकौशल में भी खासा नुकसान हुआ है। जबलपुर, छिंदवाड़ा और रीवा महौपार कांग्रेस ने जीत लिए हैं। सीधी, टीकमगढ़ और दमोह नगर पालिकाओं में भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। लिहाजा, भाजपा नेतृत्व नई व्यूह रचना में जुट गया है।

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ग्वालियर, मुरैना में जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी

कांग्रेस ने नगर निगम महापौर के चुनाव में पांच जगह जीत दर्ज की है। दो स्थानों बुरहानपुर एवं उज्जैन में पार्टी प्रत्याशी जीत के करीब पहुुच कर हार गए हैं। इस नाते कांग्रेस की बांछे खिली हुई हैं। इसे टिकट वितरण में कमलनाथ की पारखी नजर का कमाल माना जा रहा है। कांग्रेस ग्वालियर, मुरैना में जीत से सबसे ज्यादा गद्गद् है। यह जीत उसे चंबल-ग्वालियर अंचल में संजीवनी जैसी लग रही है। इसकी वजह हैं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। वे अपने समर्थक 19 विधायकों को लेकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए थे और कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई थी।

चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में पहले से भाजपा के कई कद्दावर नेता मौजूद हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि अंचल में अब कांग्रेस का कोई खेवनहार नहीं रहा। पर नगर निगम चुनाव में करिश्मा हो गया। कांग्रेस ने सिंधिया के असर वाली ग्वालियर नगर निगम के साथ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुरैना में जीत दर्ज कर कमाल कर दिया। मुरैना में कांग्रेस के पार्षद भी भाजपा से ज्यादा जीते हैं। कांग्रेस को लगने लगा है कि अच्छे प्रत्याशी और बेहतर चुनावी रणनीति के जरिए सिंधिया परिवार के बिना भी चंबल-ग्वालियर का किला फतह किया जा सकता है। इस दिशा में प्रयास शुरू भी हो गए हैं।

केजरीवाल-ओवैसी की दस्तक खतरे की घंटी

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम की निकाय चुनाव में दस्तक से भाजपा-कांग्रेस जैसे प्रमुख दलों के नेताओं की नींद उड़ गई है। प्रदेश में तीसरी ताकत का सपना देखने वाले सपा, बसपा की पेशानी पर भी बल पड़ गए हैं। भाजपा-कांग्रेस नेतृत्व ने पहले दिल्ली और इसके बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी का करिश्मा देखा है। इसके सामने इन दलों का एक भी नेता नहीं टिक सका। ऐसे में आप की महापौर के एक पद पर जीत, ग्वालियर जैसे शहर में महापौर प्रत्याशी को 45 हजार से ज्यादा वोट और आधा सैकड़ा पार्षदों की जीत ने खतरे की घंटी बजा दी है।

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कई स्थानों पर आप के पार्षद उम्मीदवार दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे हैं। यह दस्तक दोनों प्रमुख दलों भाजपा-कांग्रेस को चिंता में डालने वाली है। लिहाजा, दोनों आप को रोकने की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। एआईएमआईएम के कुछ पार्षद जीते हैें और लगभग 11 हजार वोट लेकर बुरहानपुर में कांग्रेस की महापौर प्रत्याशी की हार का कारण बना है। कांग्रेस के लिए अब तब खतरा सपा, बसपा से था, अब एआईएमआईएम से पैदा हो गया है। सपा-बसपा लंबे समय से मप्र में तीसरी ताकत बनने की होड़ में थे लेकिन आम आदमी पार्टी इनके मंसूबों पर पानी फेरती नजर आ रही है।

खट्टे-मीठे अनुभव छोड़ गया भोपाल ननि का चुनाव

भोपाल नगर निगम में भाजपा की महापौर प्रत्याशी मालती राय का चुनाव कई खट्टे-मीठे अनुभव छोड़ गया। भोपाल में यह उनकी सबसे बड़ी जीत है। उन्होंने कृष्णा गौर और आलोक शर्मा की जीत का भी रिकार्ड तोड़ दिया है। लेकिन तीसरी बार अपने ही वार्ड से हार कर उन्हें गम का घूंट भी पीना पड़ा। इससे पहले वार्ड से वे दो बार पार्षद का चुनाव हार चुकी हैं। इस चुनाव में एक तरफ जहां मंत्री विश्वास सारंग और विधायक रामेश्वर शर्मा ने पार्टी के अंदर अपनी चमक बिखेरी, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को एक और हार का सामना करना पड़ा।

मालती राय को विश्वास सारंग का कंडीडेट माना जा रहा था। खुद मालती ने एक मंच से मुख्यमंत्री एवं अन्य नेताओं के सामने कहा था कि विश्वास सारंग ने उन्हें प्रत्याशी बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। इसके लिए उन्होंने उनका आभार व्यक्त किया था। रामेश्वर इस मायने में चमके कि मालती सबसे ज्यादा मतों के अंतर से उनके विधानसभा क्षेत्र हुजूर से ही विजयी हुई हैं। कांग्रेस की यह पराजय दिग्विजय के खाते में मानी जा रही है क्योंकि विभा पटेल उनकी पंसद हैं। दिग्विजय ने उनके लिए सबसे ज्यादा मेहनत की थी, पर वे हार गईं। इस नाते लोकसभा चुनाव के बाद दिग्विजय की यह दूसरी बड़ी हार है।

‘न हम हारे, न आप जीते’ की तर्ज पर जश्न

प्रदेश के नगरीय निकायों के नतीजे इस बार जितने चौंकाने वाले हैं, इससे ज्यादा प्रमुख दलों के नेता चौंका रहे हैं। न भाजपा, कांग्रेस हार स्वीकार करने तैयार हैं, न आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम। नतीजा, ‘न हम हारे, न आप जीते’ की तर्ज पर जिस तरफ देखिए जीत के जश्न का माहौल है। भाजपा, कांग्रेस कार्यालय में ढोल-नगाड़े बज रहे हैं और आप, एआईएमआईएम खेमों में भी जीत की दुंदुभी की गूंज है। भाजपा नेता कहते हैं, पार्टी ने 80 से 90 फीसदी निकायों में जीत दर्ज की है।

जहां महापौर प्रत्याशी हारे हैं, एक को छोड़ वहां भी भाजपा की परिषद बन रही है। कांग्रेस खुश है क्योंकि उसने भाजपा से 5 महापौर पद छीन लिए हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि बदलाव की यह बयार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का कारण बनेगी। आम आदमी पार्टी ने सिंगरौली में महापौर पद जीत कर खाता खोला है। पार्टी के प्रदेश में लगभग आधा सैकड़ा पार्षद भी जीते हैं। नेताओं का कहना है कि यह शुरूआत हैं, देखते जाइए प्रदेश में ‘आप’ का ही भविष्य है। एआईएमआईएम के भी कुछ पार्षद जीते हैं और बुरहानपुर में उसके महापौर प्रत्याशी को 11 हजार वोट मिले हैं, इसलिए वे भी गद्गद् है। हैं न सब खुश, ऐसे चुनाव नतीजे किसी ने कभी नहीं देखे होंगे।