बारिश का टोटका: संकट में गधे ही क्यों याद आते हैं?

Akanksha
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अजय बोकिल

आपदा, टोटके और गधों के बीच क्या अंतर्संम्बन्ध है ? जिन गधों को इंसान उपहास और मजबूरी का पात्र समझता आया हो, वही गधे इंसान को संकट में याद क्यों आते हैं ? ऐसे मौके पर क्यों वो आशावाद का बूस्टर बनकर नमूदार होते हैं? ये सवाल इसलिए, क्योंकि मप्र में मानसून की बेरूखी के चलते रतलाम जिले के एक गांव में बारिश के लिए गधों का टोटका किया गया। गांव के पटेल को गधे पर उल्टा बिठाकर गांव की परिक्रमा कराई गई। साथ ही उस गधे पर तीन अलग-अलग लोगों को बिठाकर गांव के श्मशान के चक्कर भी लगवाए गए ताकि भूत भी डरें। मंशा यह थी कि कम से कम अब तो इंद्र देवता प्रसन्न हो जाएं। ऐरावत पर सवारी करने वाले देवराज गधों की मजबूरी पर ही रहम खा जाएं। पिछले साल तेलंगाना में अवर्षा की ऐसी ही स्थिति में स्थानीय लोगों ने गधों की शादी करा डाली थी। मानकर कि गधों का परिणय-प्रसंग देखकर ही मेघों का मन पसीज जाए। इसके लिए गधों को दूल्हा-दुल्हन बनाकर बाकायदा बारात निकाली गई। बैंड-बाजे के साथ लोग नाचे भी। गधा नवदम्पति दूर से ही यह सब देख-सोच कर मन ही मन खुश होते रहे कि असल में गधा कौन है?

हम भारतीयों की खूबी है कि गंभीर संकटों का हल भी हम टोटकों से करने में गुरेज नहीं करते। इसकी एक झलक हमने कोरोना के पूर्व काल में देखी थी। उत्साहवर्द्धन की शक्ल में हुए इस ताली- थाली वादन से कोरोना वायरस पर कोई असर नहीं हुआ और जब उसने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया तो हम टोटके छोड़ वैक्सीन का जाप करने में लग गए हैं।

किसी भी मर्ज का रामबाण उपाय करने की जगह टोटके किसने और क्यों शुरू किए, इसका कोई ठोस इतिहास और कारण ज्ञात नहीं है। लेकिन इसके पीछे सोच यह है ‍कि कुछ अटपटा और अतार्किक करने से कोई भी नैसर्गिक चक्र अपनी औकात में आ जाता है। संक्षेप में समझें तो यह मूर्खता या ठलुआई की फुलझड़ी से अंतरिक्ष में राॅकेट दागने की कोशिश है। चल गया तो तीर वरना तुक्का। जीवन में सौभाग्य और दुर्भाग्य की मान्यताएं भी कुछ इसी सोच का नतीजा हैं। वरना नैसर्गिक आपदा और गधों के बीच क्या‍ रिश्ता हो सकता है? सिर्फ बारिश की ही बात करें तो गधा कोई ऐसा प्राणी भी नहीं है, जो मोर की तरह काली घटाअों को देखकर नाच उठे या कोयल की तरह सावन में कूके। वह मेघदूत भी नहीं रहा। न ही हाथी की तरह पानी में मस्ती से नहाने का ही शौकीन है। अलबत्ता गधे धूल में लोटकर धूलि स्नान के मुरीद जरूर रहे हैं। इंग्लैंड की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में हुए शोध में यह बात सामने आई कि तेज हवा चलने पर ज्यादातर गधे घर या तबेले में ही रहना ही ज्यादा पसंद करते हैं। अब सवाल यह कि जब गधों की न तो मेघों से कोई दोस्ती रही है और न ही वे जल संवाहक ( गुजरे जमाने में कुम्हार उनकी पीठ पर पानी से भरी मशकें जरूर लादा करते थे) हैं। तो फिर गधों को आगे करने से मानसून मेहरबान कैसे होगा ?

चर्चित घटना में गांव के पटेल ने गधे के पृष्ठभाग की अोर अपना मुंह करके इंद्र देवता से बारिश की गुहार की। इस क्रिया की केवल वाॅट्स एप व्याख्या ही की जा सकती है। और तो और, वो बेचारा गधा गांव के तीन लोगों को अलग-अलग लादकर स्थानीय मरघट की परिक्रमा भी कर आया। अब इस टोटके को देखकर मेघराज हंसे होंगे या रोए होंगे, समझा जा सकता है।

वैसे टोटकाशास्त्र में बारिश के कुछ गदर्भेतर उपाय भी बताए गए हैं। मसलन कुत्ता-कुतिया का विवाह या फिर मेंढक-मेंढकी की शादी। ये आरोपित संस्कार इतनी धूमधाम से ‍िकए जाते हैं कि कम से कम इसे देखकर ही बादलों का दिल पसीज जाए। हालांकि हकीकत में ऐसा कम ही हुआ है। क्योंकि जल चक्र पूरा हुए बगैर तथा मानसून के लिए जरूरी दबाव के बिना पानी यूं ही नहीं बरसता। और गधों की गुहार पर तो शायद ही बरसता है।

बावजूद इसके गधों को हर मर्ज की दवा समझा जा रहा है तो इसे आप क्या कहेंगे? गधे इतने ही काबिल होते तो कब के घोड़ों से आगे निकल गए होते। गधों की एक खूबी जरूर है कि वो सवाल नहीं करते। जो कहा जाए, करते जाते हैं। फिर चाहे गांव की परिक्रमा हो, श्मशान की फेरियां हों या फिर गधी के साथ परिणय-प्रसंग। वो अपने लिए कुछ नहीं मांगते। उनको आगे कर के इंसान जरूर अपने लिए मांगता है।

गधे को गधा शायद इसीलिए कहा गया है क्योंकि उसकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा या अड़ीबाजी नहीं होती। वो दुलत्ती भी बहुत ज्यादा परेशान होने पर ही मारता है। वरना ‘जैसा चल रहा है, चलने दो, जितना सह सकता है, सहने दो’ दर्शन का वह सबसे बड़ा अनुयायी है। बिना नखरे दिखाए श्रम देवता की मौन आराधना करते चले जाने के बावजूद गधे को मानव समाज ने कभी मन से स्वीकार नहीं किया। कुछ लोगों का मानना है कि टोटके केवल एक मनोरंजन हैं। चिंता और हताशा को दूर ठेलने का सामूहिक प्रयास है। इसे उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जितना गधे बारिश को लेते हैं।

फिर भी टोटके तो टोटके हैं। तर्कवादी इसे महज अंधश्रद्धाभ मानते हैं। ये टोटके सिद्ध भी हों, यह कतई जरूरी नहीं हैं। लेकिन इसमें लीक से हटकर कुछ करने का भाव भी निहित है, भले ही उससे कोई लाभ हो न हो। अलबत्ता टोटके आस की चिनगारी को यह मानकर सुलगाए रखते हैं कि कोई चमत्कार तो होगा। इस उम्मीद को कायम रखने के लिए कुछ कर्मकांड भी तय होते हैं, जैसे कि गधों की शादी या फिर गधे की सवारी। शायद इसीलिए टोटके केवल प्राकृतिक शक्तियों को प्रसन्न करने के लिए ही नहीं ‍िकए जाते, क्रिकेट में बाउंड्री लगाने, दुश्मन को चित करने, जमीन से पानी निकालने के लिए भी किए जाते हैं। टोटका करने वालों का अपना एक शास्त्र और पद्धति है, जो अपने असफल होने की कोई कीमत नहीं मांगती। इसलिए टोटके युगों- युगों से चलते रहते हैं। इसमें गधों का रोल केवल इतना है कि वो स्वयं किसी टोटके में भरोसा नहीं करते। क्योंकि उन्हें अपनी ‍नियति का भान हमेशा रहता है। गधों को पता है कि उनके निमित्त से पानी अगर गिर भी गया तो भी इंसान उन्हें घोड़े का दर्जा कभी नहीं देगा।
वरिष्ठ संपादक