प्रदूषण बोर्ड की नियत पर उठे सवाल, क्या इसे भी प्रदूषित कर रहा “भ्रष्टाचार”,पढ़े पूरी खबर

Piru lal kumbhkaar
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वैसे तो प्रदूषण बोर्ड(pollution board) को प्रदूषण पर नियंत्रण करने हेतु बनाया जाता हैं लेकिन जब प्रदूषण बोर्ड ही प्रदूषण बढ़ाने लग जाए तो फिर किया ही क्या जाएँ प्रदूषण बोर्ड (Pollution Board) सालों से भ्रष्टाचार में लिप्त है। इसका हालिया मामला उदाहरण स्वरुप में देखा जा सकता हैं।

आपको बता दे कि कल उज्जैन (Ujjain) से साधु-संतों (Sadhus-Saints) का एक दल इंदौर कान्ह नदी में होने वाले जल प्रदूषण को देखने आया था, जो इंदौर से सांवेर होते हुए उज्जैन की प्रमुख और पवित्र नदी क्षिप्रा में जाकर मिलती हैं। साधु संतों का कहना था कि इंदौर और सांवेर का प्रदूषित जल सीधे उज्जैन की क्षिप्रा नदी में आकर इसे भी प्रदूषित कर रहा हैं। इसलिए वो मांग कर रहें हैं कि कान्ह नदी का जल क्षिप्रा में न मिले। इसके लिए इंदौर प्रशासन कुछ कार्यवाही करें। हालांकि संतों का दल निगम (Corporation) द्वारा उपचारित पानी को छोड़े जाने को लेकर संतुष्ट तो दिखा, मगर साथ ही क्षिप्रा (Kshipra) में इस पानी को छोड़े जाने पर आपत्ति भी जताई।

इसके बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हरकत में आया और 5 फैक्ट्रियों पर ताले लगा डाले, लेकिन प्रदूषण सिर्फ इन 5 फैक्ट्रियों से ही नहीं हो रहा था इसके अलावा भी दर्जन भर प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियां थी जिन पर बोर्ड ने कोई कार्यवाहीं नहीं की।

सांवेर रोड (Sanwer Road) और अन्य क्षेत्रों में जो फैक्ट्रियां चल रही हैं वे अपने दूषित पानी को बिना उपचारित किये ही छोड़ देती हैं जबकि उन्हें ये पानी उपचारित करने के बाद ही छोड़ना चाहियें। लेकिन समस्या ये हैं कि इसके लिए आवश्यक ईटीपी प्लांट बहुत ही कम लगे हैं साथ ही दूषित पानी को उपचारित कर छोड़े जाने वाला मीटर जो एक-डेढ़ लाख रुपए में लगता है वह भी सिर्फ आशा कन्फेशनरी में ही लगा है। आशा कन्फेशनरी के संचालक दीपक दरियानी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उनकी फैक्ट्री की पहले भी जांच हुई और प्रदूषण नहीं मिला था।