पिरामिड.. विधा की कविता

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महिमा शुक्ला
इंदौर

1. अनिश्चित

ये
नदी
गहरी
लहराती
जिंदगी जैसी
ना रुकी ना मुड़ी
अंतहीन यात्रा सी.

2.  मजबूर

वो
झुका
चेहरा
थके पैर
लड़खड़ाते
चली कान्धों पर
उठाये अपना बोझ..