विश्व गुरु और फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी का चोर रास्ता गरीबों की झोपड़ी और किसानों के खेतों से ही गुजरेगा.. ये तो गनीमत है कि 80 करोड़ गरीबों को घर बैठाकर 5 महीने मुफ्त राशन देने की योजना मोदी ने घोषित की अन्यथा कोई दूसरा होता तो सोशल मीडिया पर मुफ्तखोरी से लेकर टैक्स पेयर की राशि लुटाने पर बवाल मच जाता… 80 करोड़ गरीबों पर शर्म की बजाय गर्व करने वाला यह नया भारत है.. जो बिना दिमाग लगाए थाली, कटोरी बजाने और तालियां पीटने में मगन है… कर्फ़्यू- लॉकडाउन में तो गरीबों को मुफ्त राशन देना समझ आता है… मगर अब जब केंद्र से लेकर सारे राज्यों के मुख्यमंत्री दावे कर रहे हैं कि वे प्रवासी मजदूरों को अपने यहां ही भरपूर काम देंगे, तो फिर 80 करोड़ लोगों को और 5 महीने तक काम की बजाय मुफ्त राशन क्यों बांटा जा रहा है..? इस पूरी कवायद पर डेढ़ लाख करोड़ खर्च होंगे …ये बात अलग है कि सोशल मीडिया पर दिल्ली चुनाव ,दंगे और अभी कोरोना के चलते भक्त बिरादरी मुफ्तखोरी के ताने मारती नजर आती है… लेकिन 80 करोड़ को मुफ्त राशन बांटने की घोषणा पर सारे मुँह बन्द है… यानी दिल्ली की जनता मुफ्तखोर है और ये 80 करोड़ नहीं.. ये भी सच है कि गरीबी हटाओ का नारा देने वाली कांग्रेस 60 साल में गरीबी नहीं मिटा सकी और भृष्टाचार का वायरस ज्यादा फैलाया लेकिन 2014 के बाद तो उम्मीद थी कि मेक इन इंडिया जैसे नारे रोजगार बढ़ाने के साथ गरीबों की संख्या में भी कमी लाएंगे… लेकिन पहले नोटबंदी , फिर जीएसटी उसके बाद अब कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी और बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार भी हो गए..फ़िर भी ये आश्चर्य की बात है कि 135 करोड़ के देश में 80 करोड को घर बैठे खिलाना पड़ रहा है… हालांकि इसमें भी खूब भ्रष्टाचार होगा…क्योंकि हमारे आसपास के हर 10 में से 6 -7 लोग गरीब मान लिए गए है.. तो क्या उन्हें यह मुफ्त का राशन वाकई मिला है..? आत्मनिर्भर भारत नारे के उलट इस मुफ्तखोरी के पीछे भले ही चुनावी एजेंडा हो मगर इन गरीबों को कब खुद कमाने-खाने लायक आत्मनिर्भर बनाया जाएगा..? मद्यमवर्गीय परिवार तो बेचारे पहले से ही दो पाटन में पीस रहे है ..उनकी चिंता भले ही कोई न करें मगर 80 करोड़ की मुफ्तखोरी पर तो टैक्सपेयर मुँह खोले ..? @ राजेश ज्वेल
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