प्रजापति जी, क्यों करा रहे हैं अपनी फजीहत

Mohit
Published on:

प्रजापति जी, क्यों करा रहे हैं अपनी फजीहत….
कांग्रेस सरकार के 15 माह के कार्यकाल में विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर एनपी प्रजापति जितने चर्चित रहे, उससे ज्यादा ख्याति स्पीकर पद से हटने के बाद हासिल कर रहे हैं। वजह है विधानसभा पूल का सामान, जिसे एक साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बावजूद उन्होंने वापस नहीं किया। प्रजापति स्पीकर रहने के दौरान कई निर्णयों के कारण चर्चित रहे हैं और आलोचना के केंद्र में भी। यह अस्वाभाविक नहीं है। स्पीकर का पद संवैधानिक होता है। इसे दलगत राजनीति से ऊपर माना जाता है। बावजूद इसके स्पीकर के कई निर्णय दलीय आधार पर हो जाते हैं। पद से हटने के बाद यदि इस पद पर रहा व्यक्ति मर्यादा के प्रतिकूल आचरण करे तो फजीहत स्वाभाविक है। हालात ये हैं कि विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ से प्रजापति द्वारा विधानसभा पूल का सामान वापस न करने की शिकायत कर चुके हैं। कहा गया था कि बेटे की शादी के बाद सामान वापस कर देंगे, इस वादे को भी पूरा नहीं किया गया। हालांकि विधानसभा पूल का सामान और बेटे की शादी दोनों अलग अलग बातें हैं। सामान वापस न आने के कारण विधानसभा अध्यक्ष के लिए नया सामान खरीदना पड़ा। प्रजापति जी सामान वापस न कर क्यों अपनी फजीहत करा रहे हैं, समझ से परे है।
लीजिए! फिर ‘सेल्फ गोल’ दाग बैठे कमलनाथ….

कोरोना महामारी के कारण माहौल भाजपा के खिलाफ है बावजूद इसके न जाने क्यों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ लगातार ‘सेल्फ गोल’ करने पर आमादा हैं। वे स्वीकार नहीं कर पा रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर हैं तो वजह सिर्फ वे खुद हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का पद यदि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप देते तो संभवत: प्रदेश में अब भी कांग्रेस की सरकार चल रही होती। कमलनाथ न पहले चेते और न अब सबक लेने को तैयार हैं। अब उन्होंने सरकार जाने का ठीकरा विंध्य अंचल पर फोड़कर एक और बड़े नेता को नाराज कर दिया। विंध्य के सबसे बड़े नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कमलनाथ के बयान का तगड़ा विरोध किया तो उनके समर्थक अजय के खिलाफ ही बयान देने लगे। लगता है कि कमलनाथ को गलतफहमी हो गई है कि पार्टी के दूसरे सभी नेता पार्टी छोंड़ जाए तब भी वे कांग्रेस को अकेले जिता कर सत्ता में ले आएंगे। यह सोच ही आत्मघाती है। वैसे भी कमलनाथ से जुड़े नेताओं को छोड़कर कोई अन्य नेता उनकी कार्यशैली से खुश नजर नहीं आता। कमलनाथ को इस पर आत्ममंथन कर आगे की रणनीति पर काम करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि एक बार फिर वे जीती बाजी हार जाएं।
सिंहस्थ पर भाजपा की लड़ाई में कूदे दिग्विजय….

उज्जैन में सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि के डायवर्सन को लेकर भाजपा के अंदर ही तलवारें खिंच गई हैं। आरोप है कि मंत्री मोहन यादव नए मास्टर प्लान के जरिए बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सिंहस्थ क्षेत्र में आने वाले कुछ गांवों की कृषि भूमि का डायवर्सन आवासीय कराना चाहते हैं। भाजपा के ही पूर्व मंत्री पारस जैन एवं सांसद अनिल फिरोजिया ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। इनका कहना है कि सिंहस्थ 12 साल बाद होता है। हर बार पहले की तुलना में ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। 2004 में 2151 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंहस्थ मेले का आयोजन हुआ तो 2016 में 4151 हेक्टेयर क्षेत्रफल में। अगले सिंहस्थ के लिए और ज्यादा जमीन की जरूरत होगी। ऐसे में सिंहस्थ से लगी कृषि भूमि का आवासीय में डायवर्सन अनुचित है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी भाजपा नेताओं की इस लड़ाई में कूद पड़े हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मसले को उठाने वाले पत्रकारों के उत्पीड़न का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा स्थली, महाकाल की नगरी और पवित्र सिंहस्थ भूमि को नष्ट करने से रोका जाना चाहिए। इससे हर सनातनधर्मी को ठेस लगेगी। इसलिए इस डायवर्सन पर तत्काल रोक लगाई जाना चाहिए।
भाजपा की कवायद के केंद्र में ज्योतिरादित्य….

भाजपा के प्रमुख नेताओं नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, वीडी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा आदि नेताओं की कमरा बंद मुलाकातों ने राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है। एक खबरची पर भरोसा करें तो नेताओं की यह पूरी कसरत ज्योतिरादित्य सिंधिया पर केंद्रित है। सिंधिया चाहते हैं कि उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में तो स्थान मिले ही, उनके साथ भाजपा में आए नेताओं को भी प्रदेश भाजपा और सरकार में एडजस्ट किया जाए। इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना एवं गिर्राज दंडोतिया की निगम-मंडलों में ताजपोशी के साथ मंत्री पद का दर्जा मिले। कांग्रेस सरकार में ये तीनों मंत्री थे लेकिन उपचुनाव हार कर घर बैठे हैं। सिंधिया यह भी चाहते हैं कि इनके स्थान पर उनके दूसरे समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाए। भाजपा के अंदर सिंधिया के इस प्रयास का बड़ा विरोध है। प्रमुख नेताओं का मानना है कि सिंधिया को और ताकतवर करना भाजपा के निष्ठावान नेताओं के साथ अन्याय होगा। लिहाजा, सिंधिया को रोकने की कसरत प्रमुख नेता कर रहे हैं। ये सभी अपने समर्थकों के लिए सरकार एवं संगठन में जगह चाहते हैं। वीडी शर्मा, सुहास भगत और हितानंद शर्मा की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
योजनाएं अच्छी, अमल में भी अव्वल रहना जरूरी….

कोरोना की दूसरी लहर को संभाल पाना प्रदेश सरकार के लिए मुश्किल भरा रहा। अस्पतालों में बेड, आक्सीजन एवं इंजेक्शन आदि के लिए कोरोना पीड़ित परेशान हुए और मौतों भी ज्यादा हुर्इं। बावजूद इसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना काल के दौरान जिन योजनाओं की घोषणा की, वे देश भर में अव्वल रहीं। इनकी तारीफ करना होगी। कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के लिए शिवराज सिंह ने खजाना ही खोल दिया। 21 साल की उम्र तक इन बच्चों को पांच हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन देने, मेडिकल एवं इंजीनियरिंग जैसी महंगी पढ़ाई का खर्च उठाने के साथ शिवराज ने यह अहसास कराने की कोशिश की बच्चे अकेले नहीं है। सरकार उनका पूरा ख्याल रखेगी। कई अन्य राज्य सरकारों ने भी अनाथ बच्चों का ख्याल रखा, पर शिवराज सिंह की तरह किसी ने नहीं। इसके अलावा जो कर्मचारी नियमित नहीं हैं, उनके आश्रितों को उसी पद पर अनुकंपा नियुक्ति एवं पेड़ लगाने की शर्त पर ही विल्डिंग परमीशिन देने की घोषणा करने वाला मप्र पहला राज्य बन गया। ये कुछ उदाहरण हैं। मुख्यमंत्री ने कोरोना पीड़ितों की पीड़ा हरने के लिए योजनाओं की झड़ी लगा दी। बस, योजनाएं अच्छी हैं तो इन पर अमल भी अव्वल होना चाहिए। इस ओर मुख्यमंत्री को ध्यान देना होगा ताकि हर प्रभावित को लाभ मिले। अस्पतालों में बेड, मरीजों को इंजेक्शन और अक्सीजन जैसी हालत न हो कि सरकार इनकी कमी न होने का दावा करती रहे और मरीज इनकी कमी के कारण दम तोड़ते रहे।