प्रभाष जोशी के घर खूब मनी भुट्टे के भजिए की पार्टी

Mohit
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prabhash ji

अर्जुन राठौर

देश के जाने-माने पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी का आज जन्मदिन है और ऐसे में उनसे जुड़ा एक किस्सा मुझे याद आ रहा है बात उन दिनों की है जब मैं अक्सर दिल्ली जाया करता था और जनसत्ता में मेरे लेख भी प्रकाशित होते थे । उन्हीं दिनों झाबुआ में कलेक्टर रहे दाहिमा का एक मामला बड़ा चर्चा का विषय बना हुआ था असल में दाहिमा का इश्क छाया नाम की एक महिला के साथ चल रहा था और यह मामला उस समय बेहद चर्चित हुआ इस पर केंद्रित मेरी रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जनसत्ता में लगभग आधा पेज की ।

जनसत्ता में उन दिनों छपना बड़ा प्रतिष्ठा पूर्ण माना जाता था बहरहाल हाल उन्हीं दिनों मेरा दिल्ली जाना हुआ और मेरे पत्रकार मित्र तथा प्रभाष के छोटे भाई गोपाल जोशी भी उन दिनों दिल्ली में ही थे मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने कहा कि यमुना पार घर पर ही आ जाओ दादा से ही तुम्हारी मुलाकात हो जाएगी दादा याने प्रभाष जोशी से। बहरहाल शाम के समय मैं यमुना पार स्थित प्रभाष के घर पहुंचा प्रभाष उस समय आराम कर रहे थे । गोपाल जोशी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि आज दादा का मन भुट्टे के भजिए खाने का है उनके कुछ मेहमान भी शाम को आएंगे इसलिए चलो अपन मंडी चल कर भुट्टे ले आते हैं मुझे बड़ी खुशी हुई हम दोनों दिल्ली की मंडी में पहुंचे और वहां थैला भरके हमने भुट्टे खरीदे भुट्टे लेकर घर लौटे तब तक दादा उठ चुके थे दादा से मेरी मुलाकात हुई और उन्होंने इंदौर के कई लोगों के हाल-चाल मुझसे पूछे ।

इसके बाद भुट्टे के भजिए खाने का दौर शुरू हुआ दादा से थोड़ी देर बात करने के बाद गोपाल और मैं अलग कमरे में चले गए इसी बीच प्रभात के मित्रों का आगमन शुरू हो गया जिनमें कई जाने-माने पत्रकार और राजनेता शामिल थे मुझे याद है कि रात को 10:00 बजे तक भुट्टे के भजिए बनते रहे और उनका स्वाद तो बहुत गजब का था भुट्टे के भजिए की यह पार्टी वाकई अविस्मरणीय और यादगार बन गई ।

उसके बाद मेरी एक बार और मुलाकात उनसे कड़ाव घाट स्थित निवास पर हुई प्रभाष के साथ सबसे बड़ी बात यह थी कि वे जितने बड़े थे उतने ही सरल स्वभाव के भी थे और दो टूक बात करना पसंद करते थे प्रभाष ने जनसत्ता में मेरे कई आर्टिकल प्रकाशित किए उन दिनों जनसत्ता अपने पत्रकारिता के अलग तेवर के लिए पहचाना जाता था । असल में जनसत्ता उन दिनों हिंदी पत्रकारिता को एक अलग ही दिशा देने में जुटा हुआ था और प्रभाष इसका नेतृत्व कर रहे थे भाषा के उपयोग से लेकर खबरों के हेडिंग तक में जनसत्ता ने अपना एक अलग ही तेवर दिखाया यही वजह है कि जनसत्ता उन दिनों सर्वाधिक लोकप्रिय हिंदी अखबार बन गया ।