शक्ति रूपा

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ईश्वर ने अपने
उपवन से
निकाल दिया था हमें

वासना रूप
धूर्त साँप की
बातों पर विश्वास
करने की सज़ा
मिली हमें ।

मुझे एकांकी
व खिन्न देख
सुना है , ईश्वर ने
मेरी फसली निकाल
तुझे गढ़ा था ।
उस दिन से लेकर
आजतक
वर्जित फल खाने की सज़ा
मिल रही हमें ।

तेरी शक्ति व सामर्थ
ने मेरे अहंकार को
चुपके से ललकारा था
मैं बुनने लगा
वर्जनाओं का जाल
तेरे इर्दगिर्द ।

बिंदी , कंगन
हार ,करधनी
बाजूबंद ,पायजेब
जैसे आभूषणों से
तुझे जकड़ता रहा ।

मोह ,ममता ,प्रेम
की देवी बना कर
तुझे छलता रहा ।

मैंने तुझे
तू
नही रहने दिया
बांट दिया
माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी में
तेरे सामर्थ को
निरंतर घटाता रहा ।

करने लगा मनमानी
यहाँ तक कि शोषण
करता रहा ।

आज तूने
उतार फेंके है सारे
आभूषण और बंधन
मैं फिर आज
तेरी शक्ति व सामर्थ
के आगे नतमस्तक
हो रहा ।

धैर्यशील येवले, इंदौर