चीन की छाया में राजनीतिक गृहयुद्ध

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एन.के. त्रिपाठी
भोपाल- पिछले दो महीनो से पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ और सैन्य गतिविधियां तथा विशेष रूप से 15-16 जून की रात्रि को गलवान घाटी में चीन की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई के बाद देश की स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई है। गिरती अर्थव्यवस्था और कोरोना महामारी से ग्रस्त देश के लिए यह बहुत विकट चुनौती है। भारत चीन सीमा विवाद के संबंध में मैं दो बार पूर्व में लिख चुका हूँ जिसमें चीन के साथ विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भविष्य में भारत द्वारा की जाने वाली वांछित कार्रवाइयों के बारे में लिखा गया है।
अभी एक पूर्णतया निरर्थक और निरुद्देश्य राजनैतिक बहस कांग्रेस और बीजेपी के बीच में चल पड़ी है।प्रजातंत्र में विपक्ष को राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सरकार से प्रश्न करने का पूरा अधिकार है। यही अधिकार सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह रखने  के लिए मजबूर करता है और सरकार की नीतियों और कार्यों को पारदर्शी बनाता है। भारत की विपक्षी पार्टियाँ इस अधिकार का प्रयोग ट्विटर से लेकर संसद तक में करती हैं। भारत चीन सीमा पर हुईं घटनाओं के सिलसिले में प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गई सर्वदलीय बैठक में सोनिया गांधी ने सरकार से कठिन प्रश्न किये जबकि शेष सभी पार्टियों ने सरकार द्वारा वर्तमान और भविष्य में उठाए गए सभी कदमों का समर्थन करने का वादा किया। इस मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह कहना कि चीन की तरफ़ से कोई घुसपैठ नहीं हुई है बहुत ही आश्चर्यजनक था। अगले ही दिन सरकार को यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि उनका बयान केवल गलवान की घटना विशेष तक सीमित था।
इस स्पष्टीकरण के बावजूद प्रजातांत्रिक अधिकारों के अंतर्गत राहुल गांधी की तरफ़ से संवेदनशील मुद्दों पर प्रश्नों की एक श्रृंखला आ गयी। उनकी मदद के लिए उनकी पार्टी के सुप्रीम कोर्ट के वक़ील बारीक जिरह पर उतर आए।चीन की सरकार और वहाँ की मीडिया ने इसका पूरा लाभ उठाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति असमंजस की हो गई।राहुल गांधी गलवान की घटना की पूरी जानकारी चाहते हैं, जबकि देश के सामने घटना की काफ़ी स्पष्ट स्थिति आ चुकी है। कुल मिलाकर पिछले दो महीनों में चीन ने पूर्वी लद्दाख के कुछ सामरिक महत्व के क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया है जो क़रीब तीस से चालीस वर्ग किलोमीटर है।पंद्रह सोलह की रात को एक कायरतापूर्ण हमले में उसने बीस सैन्य कर्मियों की भी हत्या करदी। सीमा पर जारी विवाद के बीच,जहाँ सेना दुर्गम क्षेत्र में युद्ध के लिए तैयार खड़ी हो, वहाँ इससे ज़्यादा पारदर्शी जानकारी कोई  भी देश नहीं दे सकता है।राहुल गांधी प्राप्त जानकारी से संतुष्ट नहीं हैं।

Indian army at LOC

 

 

प्रश्नों की श्रृंखला के बाद राहुल गांधी ने अपना निर्णय देते हुए कहा कि मोदी ने भारत की भूमि चीन को समर्पित कर दी है और उन्हें सरेंडर मोदी के नाम से पुकारा। उल्लेखनीय है कि भारत की चीन द्वारा क़ब्ज़ाई गई भूमि पर अभी भी चीन से वार्ता चल रही है और भारत ने उस पर चीन का आधिपत्य स्वीकार नहीं किया है।यद्यपि राजनीतिक दृष्टि से यह राहुल का ज़ोरदार हमला था परंतु निश्चित रूप से गतिरोध के बीच में भारतीय सेना का मनोबल गिराने वाला है।
सरकार की तरफ़ से तो इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी परन्तु बीजेपी ने पलटवार करने के लिए पुराना फ़ार्मूला आजमाया। भारत में जब कोई पार्टी आरोप लगाती है तो तुरंत उसकी विरोधी पार्टी उसका पुराना इतिहास बताकर उसे आईना दिखाने का प्रयास करती है।इस प्रकार दोनों तरफ़ से ऐतिहासिक तथ्यों की झड़ी लगा दी जाती है। चीन की बात चली तो सबसे पहले बीजेपी ने नेहरू का नाम लिया। नेहरू के समय चीन ने लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र का एक बड़ा भाग अपने क़ब्ज़े में कर लिया था और उस पर सड़क तक बना डाली और इसकी भनक भी भारत को नहीं लगी। नेहरू जी ने देश को समझाने का प्रयास किया कि अक्साई चिन एक ऐसी जगह है जहाँ घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होता है। इसके प्रतिकार मे उनके ऊपर हुई कटु आलोचना के कारण उन्होंने बौखलाहट में बिना सैन्य ताक़त के फॉरवर्ड पॉलिसी के अंतर्गत सीमा के बिल्कुल अग्रिम क्षेत्रों में बॉर्डर पोस्ट बना दी। इससे उत्तेजित होकर चीन ने 1962 में हमला करदिया और भारत को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।भारत ने 38,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र नेहरू के नेतृत्व में खो दिया।नेहरू का उल्लेख इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके नाम से ही राहुल का परिवार अगर देश नहीं तो कम से कम कांग्रेस के ऊपर राज करने का दैविक अधिकार पाता है।कांग्रेस और बीजेपी के आरोप प्रत्यारोप में और भी बहुत सी बातें आयी हैं।बीजेपी को भी यह अवश्य सोचना चाहिए कि दूसरों की ऐतिहासिक भूलों को बताकर वह अपने वर्तमान को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती हैं।
आज की आरामदायक विपक्षी राजनीति में केवल ट्वीट करना पर्याप्त होता है और उसके बाद स्वयं अगली कार्रवाई चलती रहती है। ट्वीट को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत बड़ा आकार देकर भारी शोर के साथ TRP के लिए चटख़ारे लेकर उसका प्रयोग किया जाता हैं। हमारे सर्वज्ञ एंकर राजनीतिक प्रवक्ताओं और तथा कथित विषय विशेषज्ञों से लंबी बहस करते हैं। यही विषय जब सोशल मीडिया में पहुँच जाता है तो  वहाँ तो कोहराम मच जाता है। सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े विचार प्रस्तुत करने वाले महान ज्ञानियों की टीप देखकर स्टीफ़न हॉकिंग का एक वाक्य याद आ जाता है ‘The greatest enemy of knowledge is not ignorance. It is the illusion of knowledge.’ यहाँ पर मैं अभद्र और और अशालीन टिप्पणियों की तो बात भी नहीं करना चाहता।
2014 के चुनाव प्रचार औरपराजय के बाद से ही राहुल और मोदी मैं भी ग़ौर आपसी वैमनस्यता आ गई है। राहुल के कटाक्ष में राजनैतिक विरोध से अधिक यही वैमनस्यता दिखाई देती है।कांग्रेसी संस्कृति की ही उपज शरद पवार,जो कि स्वयं रक्षा मंत्री रह चुके हैं, ने संयत तरीक़े से केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि चीन के क़ब्ज़े में गई हुई ज़मीन को वापस प्राप्त करने के लिए पूरे प्रयास किए जाए।राहुल को यह ध्यान रखना चाहिए कि राष्ट्रीय संवेदनशील मुद्दों पर की गई अनावश्यक और गैरज़िम्मेदाराना बयानबाज़ी से उनकी पार्टी को कोई लाभ नहीं होगा और न ही इससे उन्हें अतिरिक्त वोट और सत्ता प्राप्त होने का अवसर मिलेगा।