अश्क़

Shivani Rathore
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dheryashil

धैर्यशील येवले, इंदौर

दिल खोल कर रोना चाहता हूँ
पर रो नही पा रहा हूँ
आँसू बार बार बाहर आने को है
पर रोक नही पा रहा हूँ ।

मेरे आँसू मेरी कमजोरी का सबब न बन जाय
संगदिलों की बस्ती में हँसी का
सबब न बन जाय
चुपके चुपके तन्हा तन्हा पी रहा हूँ ।

आँखों मे समंदर लिए घूम रहा हूँ
हर किसी के दर्द को चूम रहा हूँ
तड़प उठता है दिल मेरा हर कराह पर
तेरी आस पर हर ज़ख्म पर मलहम लगा रहा हूँ

आ लग जा मेरे गले कुछ मेरा दर्द कम हो जाय
साँसे बहुत कीमती हो गई है
हर सांस दुआ हो जाय
कुछ जतन तू कर ले कुछ जतन मैं कर रहा हूँ ।