पीएम मोदी अयोध्या में लगाएंगे पारिजात का पौधा, जानें इसका महत्त्व

Ayushi
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PM narendra modi

5 अगस्त को अयोध्या में राममंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है। भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन होगा। अयोध्या राममंदिर भूमि पूजन का पुरे देश में उत्साह है। वहीं उसके बाद वह पूरे देश को संबोधित करेंगे। आपको बता दे, इस दौरान पीएम मोदी श्रीराम जन्मभूमि परिसर में पारिजात का पौधा लगाएंगे अब आप सोच रहे होंगे की आखिर क्या है परिजित का पौधे का महत्त्व और पीएम मोदी इस पौधे को क्यों लगेंगे। तो आज हम आपको इस खबर के द्वारा बताने जा रहे हैं इस खास वृक्ष के बारे में क्योंकि इस पौधे को भूमि पूजन समारोह का हिस्सा बनाया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार, पारिजात का पेड़ काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होता। क्योंकि पारिजात के पौधे के फूल भगवान हरि के श्रंगार में प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही परिजात का पौधा भगवान के श्रृंगार के साथ ही पूजन के लिए भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए इस मनमोहक और सुगंधित फूलों को हरश्रृंगार के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, इस पौधे का काफी ज्यादा महत्त्व माना जाता है। वहीं मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है। इसका पौधा कम से कम दस से पच्चीस फीट ऊंचा होता है।

इस वृक्ष में अधिक मात्रा में फूल लगते हैं वही 1 दिन में इसके जितने भी फूल तोड़े जाए अगले दिन फिर बड़ी मात्रा में फूल उग जाते हैं। ये फूल रात में ही खिलता है और सुबह होते ही इसके सारे फूल झड़ जाते हैं। इसलिए इसे रात की रानी भी कहा जाता है। इस वृक्ष को सबसे ज्यादा मध्यभारत और हिमाचल की नीचे उतर आया में पाया जाता है। यह सबसे ज्यादा वहीं पर उगता है। दुनिया भर में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। आपको बता दे, धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं। दरअसल, पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं।

एक मान्यता ये भी है क‍ि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता हर‍सिंगार के फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं। मान्यता है कि परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में लगाया था। जानकारी के मुताबिक, अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने पारिजात पुष्प से शिव पूजन करने की इच्छा जाहिर की थी। माता की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया था। तभी से इस वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती रही है।