चुनाव से पहले प्लस – माइनस, भाजपा के पास ताकतवरों की फौज, तो कांग्रेस के पास दावेदारों का टोटा

Suruchi
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विपिन नीमा

इंदौर। लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन को लेकर भाजपा और कांग्रेस में लटकाने और अटकाने का खेल चल रहा है। मप्र में 29 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए भाजपा अपनी पहली सूची में 24 सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर चुकी है। जबकि दूसरी सूची आला कमान के पास अटकी पड़ी है। जबकि कांग्रेस ने मंगलवार को 43 प्रत्याशियों के नामों की सूची जारी की है, जिसमें मप्र के 10 प्रत्याशियों के नाम शामिल है। भाजपा को 5 और कांग्रेस को 18 प्रत्याशियों के नाम और जारी करना है।

सबसे बड़ी बात यह है की भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपनी सूचियों में इंदौर को शामिल नहीं किया है। इंदौर का प्रत्याशी कोई भी हो , लेकिन शहर के लोग दावेदार प्रत्याशियों के नामों से उब चुके है। अब लोगों में प्रत्याशियों के नाम पर कोई ज्ञियासा नहीं बची है। सम्भवत: कल यानी बुधवार को पता चल जाएगा की कौन होंगे आमने सामने। कांग्रेस ने अपनी सूची में प्रदेश के पांच महानगरों इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन सीटों के लिए प्रत्याशियोें के नामों का ऐलान नहीं किया है। इन सीटों पर सालों से भाजपा का कब्जा है। भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ने के लिए कांग्रेस मजबूत और ताकतवर प्रत्याशियों को उतारने के लिए बड़े नाम ढूंढ रही है।

10 दिनों से दोनों पार्टी
के दावेदारों के नाम सुन – *सुनकर हर कोई ऊब गया

इंदौर की सीट पर प्रत्याशियों के नाम पर अभी भी रहस्य बना हुआ है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे के चक्कर में प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं कर रहे है। अखबारों में अंौर सोशल मीडिया पर दोनों पार्टियों के दावेदारों के नाम इतने चल चुके है जैसे सभी को टिकट ही मिल जाएंगा। पिछले 10 दिनों से दोनों खेमों में एक ही बात बार बार निकलकर आ रही है की बस आज सूची जारी होने वाली है। अब लोग इन दावेदारों के नामों से इतने उब चुके है कोई यह जानना नहीं चाहता है की इंदौर से किसको टिकट मिल रहा है। फिलहाल कांग्रेस ने मप्र की 29 सीटों में से 10 सीटों का ऐलान किया है और 18 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम फिलहाल रोक लिए है। जबकि एक सीट खजुराहो कांग्रेस ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को दी है।

जो समय तैयारियो मे
लगाना था वो समय राहुल
की यात्रा में लगा दिया

जिस तरह से कांग्रेसी नेता पाला बदलकर भाजपा में जा रहे है उससे कांग्रेस की इमेज पर लगातार बुरा प्रभाव पड़ता जा रहा है। राजनैतिक विशेषज्ञ बताते है की 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के इतिहास का सबसे बुरा समय है। यह स्थिति इसलिए ऐसी बनी की जिस समय कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटना था तब वह राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हो गई।

चुनाव की चिंता छोड़कर एक तरफ राहुल गांधी की यात्रा पर निकल पड़े वहीं दूसरी और नरेंद्र मोदी अयोध्या में रामजी की प्राण प्रतिष्ठा करके देशवासियों का दिल जीत ले गए। जब भाजपा का चुनाव प्रचार चरम पर पहुंच चुका था तब कांग्रेस का अधिकांश समय राहुल की व्यवस्था में ही निकल गया। राहुल की यात्रा के कारण कांग्रेस प्रचार के मामले में भाजपा से काफी बिछड़ गई । चुनाव में कांग्रेस को क्या हासिल होगा ये तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन एक बात जरुर है की कांग्रेस की भ्िवष्य की राह दिन ब दिन मुिश्कल और जटिल होती जा रही है।

पांच महानगरों में
भाजपा के सामने नहीं
गली कांग्रेस की दाल

प्रदेश के पांच महानगरों इंदौर , भोपाल , जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन मजबूत भाजपा के सामने कांग्रेस की दाल नहीं गली। इन सभी शहरों की सीटें लम्बे समय से भाजपा के पास है। इन सीटों पर कांग्रेस जीत की तलाश में प्रत्याशियों को खोज रही है। कांग्रेस ने 18 सीटों का अभी ऐलान नहीं किया है। इन 18 सीटों में ये पांचों शहर भी शामिल है। आकड़ों के मुताबिक इंदौर और भोपाल में बीते 25 सालों से भाजपा लगातार चुनाव जीतती आ रही है। इंदौर – भोपाल के अलावा इंदौर के अलावा जबलपुर और ग्वालियर में भी यहीं स्थिति है। जबलपुर में 1996 और ग्वालियर में 2007 से भाजपा जीत रही है। उज्जैन सीट भी भाजपा के पास है, लेकिन बीच कांग्रेस के प्रेमचन्द्र गुड्डु ने सीट जीतकर भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ दिया था, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चला और फिर से भाजपा ने कब्जा कर लिया।
प्रदेश मे ऐसे निकली
भाजपा की विजय यात्रा
▪️1984 में इंदौर से कांग्रेस के पीसी सेठी आखरीबार जीते थे
▪️1989 से 2019 तक इंदौर की सीट पर भाजपा कब्ज़ा
▪️आठ बार ताई और एक बार लालवानी जीते
▪️1996 से जबलपुर सीट पर कब्जा
▪️2007 से ग्वालियर सीट भाजपा के पास है

कांग्रेस के पास दावेदारों
का टोटा तो भाजपा
के पास फौज

चुनाव आयोग ने भले ही 17 वीं लोकसभा चुनाव का ऐलान नहीं किया हो , लेकिन जो स्थिति बनी हुई है उससे साफ लग रहा है की लोकसभा चुनाव के सारे सूत्र भाजपा के पास है। चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के पास एक से बढ़कर एक दमदार नेताओं की फौज खड़ी हुई है। आलाकमान इस दुविधा में है की किसे टिकट दे और किसे नहीं। इस कारण वह धीरे धीरे प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर रहा है। कांग्रेस की स्थिति इसके ठीक विपरित है। कांग्रेस टिकट देने को तैयार है,लेकिन उसके पास चुनाव लड़ने वाले ताकतवर नेताओं का टोटा बना हुआ है। पार्टी के पास जो कुछ बड़े अनुभवी चैहरे , जो चुनाव लड़ने लायक थे, वे पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास मजबूत दमदार और ताकतवर नेताओं की संख्या कम ही है।