केमिकल वाले रंगों से होली खेलने पर जा सकती है आंखों की रोशनी, ऐसे समझें कैसे दूर करे बड़े खतरे को

pallavi_sharma
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होली का त्यौहार हमरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है इस बार होली 8 मार्च को पड़ रही है त्यौहार कोई सा भी हो जब नज़दीक आता है तो ज्यादातर घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं. ऐसे में होली के त्योहारक पर कुछ लोग होली पार्टी की प्लाननिंग कर रहे हैं.जिसमे वो अपने फेवरेट कलर्स को भी शामिल करेंगे ऐसे में बाजार में तरह-तरह के रंगों की बहार आई है.एक रिपोर्ट के अनुसार इन दिनों जिन सिंथेटिक रंगों का लोग होली में इस्‍तेमाल कर रहे हैं वे इंसानों के लिए काफी खतरनाक हैं. इनमें कई जहरीले धातु, अभ्रक, कांच जैसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो कान, नाक और गले ही नहीं, स्किन और अस्‍थमा जैसी बीमारियों की वजह तक बन सकता है.

पहले की होली थी सेफ

पहले के जमाने में लोग फूलों, मसालों और पेड़ों आदि से निकाले गए प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे, जिनमें औषधीय गुण होते थे. औषधीय गुणों वाले ये रंग त्वचा के लिए फायदेमंद होते थे. पहले रंगों को बनाने के लिए हल्‍दी, नील, मेंहदी आदि का इस्‍तेमाल किया जाता था, जो विषैले नहीं होते थे और वे ईको फ्रेंडली भी होते थे. अगर आप हर्बल रंगों का इस्‍तेमाल करें तो ये कई बीमारियों से हमें बचा सकता है.

कैमिलक वाले रंग से होते है ये नुकसान

होली के रंगों में विषाक्त पदार्थ होते हैं जो ईएनटी (कान, नाक, गले) की समस्‍याओं की वजह बन सकता है. होली में पानी के गुब्बारों का प्रयोग भी हमारे कानों और आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकता है और दुर्घटना हो सकती है. वॉटर-गन या पानी भरे गुब्बारों से गीली होली खेलने पर कान को नुकसान हो सकता है. पानी कान में प्रवेश कर सकता है और अंदर खुजली, दर्द या ब्‍लॉकेज की समस्‍या हो सकती है.कान में अगर पानी चला जाए तो टिम्पेनिक झिल्ली फट सकती है और कान में तेज दर्द हो सकता है. इसके अलावा, कान में दर्द, कान से खून आना, बहरापन, कानों का बजना आदि लक्षण हो सकते हैं. इसके लिए सर्जरी तक करानी पड़ सकती है.केमिकल वाले रंगों से सांस की बीमारी हो सकती है. हवा में फेंके जाने पर सूखे गुलाल में 10μm (माइक्रोन) कणों वाले भारी धातु होते हैं जो फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं. ये ड्राई केमिकल वाले गुलाल हमारे मुंह और स्‍वांस के साथ श्वसन नलिका में प्रवेश कर समस्या बढ़ा सकते हैं और अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी स्थितियों को बढ़ा सकते हैं. मुंह और स्‍वांस नलिका में केमिकल वाले रंग पहुंच जाने से घरघराहट, खांसी और बलगम होने की समस्‍या तक हो सकती है.