भोपाल गैस त्रासदी के कचरे के भय से प्रभावित पीथमपुर, लोग घर छोड़ने को मजबूर, कई घरों में लगे ताले

Abhishek singh
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शनिवार सुबह अमर उजाला की टीम पीथमपुर की रामकी कंपनी से महज 200 मीटर दूर स्थित एक गांव में पहुंची। टीम का उद्देश्य यह जानना था कि 24 घंटे के हंगामे के बाद पीथमपुर का माहौल कैसा है। लेकिन जो दृश्य सामने आया, वह हैरान करने वाला था। गांव की गलियां सुनसान पड़ी थीं और कुछ लोग अपने परिवार के साथ मकान की छतों पर खड़े होकर उन 12 कंटेनरों को देख रहे थे, जो रामकी कंपनी में खड़े थे। गांववाले इन कंटेनरों के बारे में आपस में चर्चा कर रहे थे। इस दृश्य को देखकर अमर उजाला की टीम जब आगे बढ़ी, तो कुछ घरों की चौखट पर ताले लटके हुए मिले।

क्यों खाली हो रहा है 1500 आबादी वाला गांव?

यह बात वाकई चौंकाने वाली थी, क्योंकि इस गांव की कुल आबादी महज 1500 है और यहां करीब 300 परिवार रहते हैं। फिर अचानक इतनी कम आबादी वाला गांव क्यों खाली हो रहा है? इस सवाल की जांच अमर उजाला की टीम ने की, और सामने आया कि पीथमपुर की रामकी कंपनी में 337 टन जहरीला कचरा निपटान के लिए लाया गया है, जिससे लोगों में डर का माहौल बना हुआ है। इस वजह से लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं, और जो कुछ परिवार यहां अभी भी रह रहे हैं, वे या तो अन्य स्थानों पर बसने की सोच रहे हैं, या फिर अपने घरों को छोड़कर कहीं और जाने की तैयारी कर रहे हैं।

गांव वालों के डर की मुख्य वजह यह है कि 2008 में यहां दस टन कचरा दफनाया गया था, जिसके कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसका असर यह है कि नदी का पानी काला पड़ चुका है।

संतोष कुमार की मुश्किलें, इलाज का खर्च और जहरीला कचरा

संतोष कुमार इस गांव में पिछले पांच साल से रह रहे हैं, और वे मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि परिवार में अक्सर कोई न कोई बीमार रहता है, और इलाज पर होने वाला खर्च उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा खा जाता है। अब यहां 337 टन कचरा और आ गया है, जिससे हालात और भी मुश्किल हो गए हैं। उनका कहना है, “हम जीवन यापन के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन इस जहरीले कचरे के बीच रहना अब नामुमकिन हो गया है, इसलिए मैंने अपने परिवार को गांव भेज दिया है।”

वहीं, स्किन रोग से पीड़ित विजेंद्र शाह का कहना है कि उनके पैरों में दो बार चमड़ी से जुड़ी बीमारी हो चुकी है। वे मानते हैं कि यहां के पानी की गुणवत्ता बिगड़ चुकी है। उन्होंने बताया, “पंद्रह साल पहले यहां सिर्फ कंपनी थी, लेकिन बाद में इसे ट्रेंचिंग ग्राउंड में बदल दिया गया। अगर कचरा जलाना ही था, तो सरकार को तारापुर गांव को दूसरी जगह बसाना चाहिए था।”

गांववाले बताते हैं कि पहले हम लोग जमीन के नीचे से बोरिंग से निकला पानी पीते थे, लेकिन अब वह पानी भी पीने लायक नहीं रहा। सरकार भले ही विभिन्न जांचों में पानी के दूषित न होने का दावा करती हो, लेकिन गांव के लोग इसे मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि पानी पीने के अलावा, नहाने और बर्तन धोने के लिए भी वही पानी इस्तेमाल होता है, जिससे उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं। खासकर, यहां के ग्रामीणों के बीच चमड़ी से जुड़ी बीमारियों की शिकायत अधिक है।

रात में जलाए जाते हैं जहरीले कचरे

गांववालों का कहना है कि रामकी कंपनी में अन्य शहरों से भी खतरनाक अपशिष्ट लाकर निपटान के लिए डाला जाता है। अक्सर रात के समय कंपनी के भस्कम में कचरा जलाया जाता है, जिससे कई बार रात के वक्त विषैले धुएं के कारण उनकी नींद उड़ी रहती है। वहीं, पलायन के बारे में तहसीलदार अनिता बरेठा ने बताया कि गांववालों में भय का माहौल है, यही कारण है कि वे पलायन की बात कर रहे हैं। उन्हें यह समझाया गया है कि किसी भी कंटेनर से कचरा खाली नहीं किया गया है, और डरने की कोई वजह नहीं है।